एनडीआरएफ ने पेश की मिसाल
जब प्रकृति अपना बदला इंसानो से लेती है तो ऐसी भयानक वारदात को प्रकृति आपदा की संज्ञा दी जाती है , और जब ये आपदाये मानव जीवन के पीछे पड़ती है तो पूरी की पूरी कायनात ही छोटी मालूम होती है
जब प्रकृति अपना बदला इंसानो से लेती है तो ऐसी भयानक वारदात को प्रकृति आपदा की संज्ञा दी जाती है , और जब ये आपदाये मानव जीवन के पीछे पड़ती है तो पूरी की पूरी कायनात ही छोटी मालूम होती है ऐसे में क्या किया जाए या फिर क्या ना किया जाए कह पाना बहुत मुश्किल होता है , लेकिन पूर्वानुमान और की सूचना सटीक मिलने से मानव काफी हद तक अपना बचाव कर पाने में अब सक्षम नज़र आने लगा है , क्यूंकि वह इस आपदा को तो नहीं रोक सकता हाँ लेकिन यदि सतर्क रहा जाए तो जान और माल के नुक्सान को काफी हद तक कम किया जा सकता है और ऐसा ही हाल में ओडिशा में, जो खतरनाक तीव्रता वाले तूफान फणि से दो-चार (मुक्कालात )हुआ।उसके सामने तो बिना किसी व्यवस्था के यदि हम खड़े होते तो शायद वहां सब कुछ बराबर ही हो जाता अनुमान लगाने भर के लिए भी कुछ बच पाटा ऐसा कहना मुश्किल था
ये तूफ़ान इतना अधिक प्रचंड था कि इसका असर ओडिशा के साथ-साथ आंध्र, तेलंगाना और पश्चिम बंगाल समेत पूर्वोत्तर के भी कुछ इलाकों में देखने को मिल रहा है, लेकिन यह स्पष्ट ही है कि सबसे अधिक प्रभावित ओडिशा ही है। यह तूफान कितना प्रचंड था, इसका अनुमान एक तो इससे लगता है कि ओडिशा में इसकी तीव्रता करीब दो सौ किलोमीटर प्रति घंटे की आंकी गई और दूसरे इससे कि देश के अन्य अनेक इलाकों में भी मौसम ने करवट ली।यह संतोषजनक है कि ओडिशा में पुरी शहर के तट से टकराने वाले इस तूफान के प्रचंड वेग से निपटने के लिए वे सभी उपाय किए गए जो आवश्यक थे। दस लाख से अधिक लोगों को केवल उनके घरों से निकाला ही नहीं गया, बल्कि उन्हें रहने के लिए सुरक्षित ठिकाने भी उपलब्ध कराए गए। फणि तूफान का मुकाबला करने के लिए राहत और बचाव के जो व्यापक प्रबंध किए गए उसके चलते ही कहीं अधिक कम जनहानि हुई। और ये पूरी सटीक तयारी राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन बल यानी एनडीआरएफ द्वारा की गयी जो वाकई मिसाल पेश करने जैसा था , क्यूंकि ज़रा सी चूक , कुछ भी न छोड़ती लेकिन पूरे मौके को बहुत अच्छी तरह से सहेजा गया और , अपना सर्वस्व देने को तत्पर दिखे एनडीआरएफ के कर्मचारी
इसी तरह की घटना पहले भी लगभग दो दशक पहले 1999 में ओडिशा जब फणि से कहीं कम तीव्रता वाले तूफान से दो-चार हुआ था तब करीब दस हजार लोगों की मौत हुई थी। यह अच्छा हुआ कि उस तूफान के चलते हुए विनाश और फिर 2004 में सुनामी के कहर से सबक लेकर संस्थागत स्तर पर जरूरी उपाय किए गए। और हमारी एजेंसियों ने भरपूर प्रयास किया कि जो पहले घटित हुआ वह अब दुबारा न होने पावे और वे इसमें कामयाब भी हुए आज की बात करे एनडीआरएफ हर तरह की आपदा की स्थिति में भरोसे का बल ही नहीं, देश की एक ताकत भी है। बीते कुछ वर्षों में इस बल ने तूफान, बाढ़ के साथ-साथ बड़ी दुर्घटनाओं में राहत और बचाव के जो कार्य किए हैं उससे एक मिसाल कायम हुई है। इस बल ने अब तक साढ़े चार लाख से अधिक लोगों को बचाने का ही काम नहीं किया है, बल्कि राहत और बचाव संबंधी तंत्र को भी सुदृढ़ किया है। यह एनडीआरएफ की कड़ी मेहनत और मजबूत रणनीति का ही नतीजा है कि विश्व के कई देशो ने भारत की प्रबंधन प्रणाली की जमकर तारीफ की क्यूंकि , हम मानव है और पूरी तरह से प्रकृति पर ही आश्रित है , ऐसी में हमारे अंदर इतना सामर्थ्य कहाँ कि हम पृकृति को चुनौती दे सके , लेकिन हम चूंकि मानव है तो हाथ पर हाथ रखकर तो नहीं बैठ सकते ऐसे में बचाव ही एक मात्रा रास्ता था और इस रास्ते पर कैसे चलना है भारत ने एक मजबूत उदहारण समस्त विश्व के सामने रख दिया है
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