अंकित सिंह 'खड्गधारी '
जातिवादी जंजीरे
दो हाथ दो पैर पूरा जिस्म एक सा एक सा दोनों में रक्त प्रवाह फिर कहाँ से आया भेदभाव , हमे बनाने वाले ने जब कोई भेदभाव नहीं किया तो फिर इस कर्मप्रधान विश्व में ये जातिवाद कैसे पनप और फल फूल रहा है ?
जबकि स्वयं हमारे पुराणों में भी करम पर ही जोर दिया गया है , और समय समय पर हमारे देश में पैदा हुए महापुरषो ने भी यही सीख दी ,
आपको स्कंद पुराण में लिखी हुई बात बताता हूँ ,
जन्मना जायते शूद्र संस्कारात द्विज उच्यते।
जिसका मतलब है हर इंसान शूद्र पैदा होता है और संस्कारों से ही उसका दूसरा जन्म होता है।
और ऐसी ज्ञानवर्धक बात जानने के बाद भी अगर समाज अपने विचार नहीं बदल सका है तो सिर्फ एक या दो जाति ही नहीं अपितु सारा समाज ही पिछड़ा है और लगातार पिछड़ता ही जा रहा है
जन्म से ही नीच व अछूत घोषित करने का पूरा का पूरा खेल उन चालाक धूर्त जातिवादी तत्वों का है, जो ईश्वर के नाम पर लाभ उठा रहे हैं। जातिवादी-कट्टरपंथी तत्वों ने नियमों के विरुद्ध जाकर जातिवादी व्यवस्था को बनाया-बचाया है। दरअसल, जन्म के आधार पर श्रेष्ठता का कोई तार्किक-वैज्ञानिक कारण नहीं है। कोई धर्म ऐसा कैसे हो सकता है कि जिसमें इंसान को इंसान नहीं माना जाता, बल्कि जन्म से ही उसे नीच और अछूत बता दिया जाता है। ऐसे धर्म की रूढ़ियों को हमें पूरी तरह से इनकार करना चाहिए और ऐसे धर्माचार्यों और जातिवादी ताकतों का विरोध करना चाहिए।यहाँ ये मेरा बिलकुल भी उद्देश्य नहीं , कि आप अपने अतीत पर गर्वे ना करे या फिर अपने जन्म को महत्तव न दे , लेकिन खुद को महत्तव देने के चक्कर में आप किसी का अपमान करे दे या फिर दूसरे पक्ष को हमेसा कम आंके ये तो ईश्वर की सर्वश्रेठ रचना का ही घोर अपमान है और यकीन मानिये इस आचरण से ईश्वर भी नाराज़ ही होगा
जातिवादी विचारो के मामलो में जितना दोषी समाज है उस से भी ये अधिक जातिवादी नेतागण है , पिछडो और अतिपिछड़ों को पिछले घोसित करने वाले ऐसे नेता स्वयं है , अरे ऐसा दबाव सरकारों पर बनाया ही क्यों जाए कि वे जातिगत योजनाए लाये , या फिर जो समाज के वर्ग इस श्रेणी में रक्खे गए है उन्हें पिछड़ा या फिर अतिपिछड़ा घोषित करने की जरुरत ही क्या है ? क्यूंकि इसी तर्क से ही उनपर जन्म से ही पिछड़ा होने का इलज़ाम लग जाता है और ये खायी धीरे धीरे गहरी ही होती जाती है , इस तो ये सब से अच्छा उपाय है कमजोर वर्गों को आर्थिक दृष्टि से कमजोर घोसित किया जाए जिस से ये व्यवस्था किसी जाती विशेष की श्रेणी से बाहर आ सके और जो भी वर्ग ऐसी योजनाओ से लाभान्वित होते है वे भी समाज में तर्क कर सके , कि हम आर्थिक रूप से कमजोर है सिर्फ और सिर्फ इसीलिए ऐसी योजनाओ का लाभ ले रहे है ,और ऐसे जो संपन्न वर्ग है उन्हें भी कोई खास आपत्ति नहीं होने वाली ,
ये मंशा राजनैतिक रूप जब तक नहीं लेगी तब तक ये सभी चर्चाये और लेख निष्क्रिय ही रहेंगे ,
वर्तमान स्थिति की बात करेंगे तो ये व्यवस्था और भी ज्यादा मजबूत होती नज़र आ रही , एक तरफ तो देश डेजी से आगे बढ़ने के प्रयास में लगा है लेकिन दूसरी ओर सिर्फ और सिर्फ पिछड़ापन है और वो भी जाति व्यस्था को लेकर
स्थिति इतनी गंभीर है कि मान लीजिये यदि कोई युवान आपसी सहमति से एक दूसरे को पसंद करते है और वे कानूनी रूप से सक्षम है , कि वे विवाह कर के सकुशल साथ ,में हंसी ख़ुशी जीवन बिता सके , और उनकी जातीय अलग अलग होते हुए भी वे दोनों एक दूसरे को ख़ुशी से स्वीकार करते है तो भी ये समाज उनका दुश्मन बन जाता है , वे ऐसे लोगों को सब से पहले चरित्रहीन बताएँगे , अरे ये कलया व्यवस्था है जहाँ एक बालिग़ यह भी फैसला नहीं कर सकता कि उसका जीवन साथी कैसा हो ?
ये तो पूरे समाज के लिए प्रश्न है ? कि जब वे अपनी बच्चों के लिए शादी का रिश्ता खोजते है तो वे ना जाने कितनी दफा सम्बन्धियों के चक्कर लगते है ना जाने कितने बिचौलियों की सलाह और गारंटी लेते है और उसके बाद भी कभी कभही उन्हें मन माफिक घर नहीं मिलता , और अगर बच्चे इस चीज को आसान करने की कोशिश करे , कि वे स्वयं ही अपने हिसाब से अपने हिसाब का जीवनसाथी तलाश कर ले और वह सच में उन दोनों के लिए ब्वढिया तो फिर पता नहीं घरवालों को क्या हो जाता है उन्हें ऐसा महसूस होने लगता है कि उनकी पगड़ी भरे समाज में उछाल दी गयी , अरे आप जिस बच्चे के कपड़ो से लेकर बाइक तक बाइक से कार तक पढाई तक सब कुछ उसकी पसंद का ही करते है तो फिर जोस चीज जिंदगी ,में सब से अधिक मायने रखती है जीवन साथी का चुनाव तब आपको सब को क्या हो जाता है क्यों नहीं ये समझते कि आने वाला समय और जीवन दोनों इन बच्चो का है और ये ही हमसे ज्यादा अच्छा तय कर सकते है कि उन्हें क्या करना हैं .
मेरा ये इरादा बिलकुल भी नहीं कि आप इस मामले में पड़े ही नहीं लेकिन अगर सब कुछ सही तो फिर आप किसी को सिर्फ और सिर्फ उसकी जन्मजात जाति को लेकर तो किसी से कम नहीं आंक सकते है
इसीलिए जरुरी और बहुत ज्यादा जरुरी है कि सिर्फ हम डिगिरया लेकर ही ना बैठे रहे समाज में फैली कुव्यस्था को समाप्त करने के प्रयास करे , याद रखिये सबको बनाने वाला एक है और खासकर मानवजाति जिसे ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ रचना की संज्ञा प्राप्त है उसकी अपमान करना , ईश्वर का अपमान करने के समान है उठिये जागिये और ये जातिवादी जंजीरो को तोड़ कर फेकिये , इसी में देश का भला है नहीं तो अनेकता में एकता सिर्फ और सिर्फ भारत में नाम भर के लिए होकर रह जायेगी
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