बनो सूरज सा
अभी घर से निकला हूँ,धीरे - धीरे आगे चलूँगा।
मैं किसी का गुलाम नही,जो सबके हुक्म झेलूँगा।।
कुछ लोगो को गुमान है,वो सूरज को रास्ता दिखाते है।
बड़े बेशर्म है ,उसकी रौशनी में ही आगे बढ़ते जाते है।।
वो जो समन्दर को कहते है , कि वो खारा है।
वो लोग समन्दर में उतरने से घबराते है।।
आईना बस दुसरो पर आरोप ही लगा सकता है।
अपनी चेहरे की धूल को वो खुद ना हटा पाता है।।
कोई कुछ भी कहे किसी को ये आसान है सबके लिए,
अपने शब्दों को भला खुद पर कौन आजमाता है।
करूँगा खुद पर यकीन अब ना सुनूँगा किसी की भी,
हर कोई खुले आकाश में सूरज सा कहाँ बन पाता है।
नीरज त्यागी
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