एक नयी मुसीबत 


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अंकित सिंह "खड्गधारी "


एक नयी मुसीबत 
इन दिनों हम कुछ ज्यादा ही व्यस्त रहे ,ये हम शब्द हमारे और आपके लिए ही नहीं अपितु ,सभी राज्य सरकारों और केंद्र सरकार के लिए भी है , क्यूंकि फिलहाल देश में ,सीएए के प्रोटेस्ट का सीजन जैसा चल रहा है और इसी सीजन के चलते अभी हाल ही में दिल्ली में जो डोनाल्ड तृम्फ की उपस्थिति में हुआ वह चौकाने वाला और बेहद चिन्ताजनक था ,कि जब देश में मेहमान आया हो ऐसे समय में ऐसी स्थिति ,वाकई बहुत हैरान करने वाली है
लेकिन अभी हाल ही में,देश के सामने जो नयी समस्या आयी है वह बहुत ज्यादा गंभीर मसला है और वो है कोरोना वायरस जिसे पूरे विश्व को डरा रक्खा है ,और भारत जैसे देश के लिए ये  और भी ज्यादा गंभीर मामला है क्यूंकि , हमारे यहाँ ऐसे वायरस से बचाव के उपाय या ये कह ले कि आम जनता कितनी अधिक सावधान नज़र आती है वो आप यहाँ के मौजूदा स्वस्थ्य मंत्रालय के विज्ञापनों  को देखकर लगा सकते है ,जैसे अभी जिस देश में आज भी शौचालय प्रयोग करने के विज्ञापन प्रसारित किये जा रहे हो वहां कोरोना वायरस जैसे मामले तो भारत जैसे देश के लिए बेहद चिंताजनक है , लेकिन इस बात से मै काफी ज्यादा अच्छा महसूस कर रहा हूँ कि मौजूदा सरकार इस मामले को बहुत ज्यादा गंभीरता से ले रही है
कोरोना वायरस या कोविड-19  45 से ज्यादा देशों में फैल चुका है और पहले ही दो हजार से ज्यादा लोगों की जान ले चुका है। ऐसा लग सकता है कि उसने भारत को अपेक्षाकृत उस तरह से प्रभावित नहीं किया है। अब तक देश में मौजूद नागरिकों में से केवल केरल के तीन छात्रों में कोरोना वायरस के संक्रमण की पुष्टि की गई है। इन तीनों को भी अब अस्पताल से छुट्टी मिल गई है और वे स्वस्थ बताए जा रहे हैं, लेकिन देश के कई हिस्सों में कमजोर स्वास्थ्य प्रणाली और अप्रभावी निगरानी को देखते हुए मामले का पता लगाना आसान नहीं है और यह समय ही बताएगा कि क्या हमने बीमारी के बोझ को ठीक ही कम करके आंका है। ओआरएफ के शोध पत्र में बताया गया है कि 'हालांकि व्यवस्था को मजबूत करने के बजाय भारतीय सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रतिष्ठान ने अक्सर प्रकोपों को लेकर मीडिया के दबाव में बिना सोचे-समझे त्वरित प्रतिक्रिया दी है, जैसा कि निपाह के मामले में देखा गया था, जहां इसे दुर्भाग्य से भारतीय अनुसंधान संस्थानों के विदेशी सहयोगियों के मत्थे डालकर दबा दिया गया।' इस संदर्भ को देखते हुए कोविड-19 के मामले में केरल की प्रतिक्रिया उल्लेखनीय रही। केरल ने निपाह के संक्रमण के समय में भी प्रशंसनीय कार्य किया था। मगर नए कोरोना वायरस के संक्रमण के समय केरल क्या कर रहा है?
ओआरएफ की रिपोर्ट बताती है कि केरल रोजाना अलग वार्ड, जांच एवं मरीजों की भर्ती के संबंध में रिपोर्ट प्रकाशित कर रहा है। जो तीन छात्र संक्रमित हुए थे, वे अब खतरे से बाहर हैं। हालांकि अस्पताल और समुदाय, दोनों जगह संदिग्ध मरीजों को अलग रखने का प्रयास सक्रिय रूप से जारी है। इस समय देश के 34 राज्यों/ केंद्र शासित प्रदेशों में 11,500 लोगों को सामुदायिक निगरानी में रखा गया है, जिनमें से करीब एक तिहाई अकेले केरल में हैं।


अस्पतालों में अलग वार्ड में रखे गए संदिग्ध मरीजों में से कई को छुट्टी दे दी जाती है और उन्हें सामुदायिक निगरानी में भेज दिया जाता है, क्योंकि जांच के परिणाम नकारात्मक होते हैं और रोग के लक्षण कम हो जाते हैं। ओआरएफ की रिपोर्ट बताती है कि बीती सात फरवरी को केरल सरकार ने कोविड-19 के तीन मामलों के मद्देनजर पूर्व में जारी की गई 'राज्य आपदा' चेतावनी को वापस ले लिया है, क्योंकि सक्रिय निगरानी के बावजूद संक्रमण के किसी नए मामले का पता नहीं चला है।


कोविड -19 के प्रभाव जानने के लिए भारत सरकार को अलग वार्डों और परीक्षणों पर नियमित रूप से राज्य-वार आंकड़े जारी करने चाहिए, जिसे वह रोजाना इकट्ठा करती है, ताकि मीडिया अटकलों से बचा जा सके। ओआरएफ की रिपोर्ट बताती है कि निपाह और अब कोविड -19 के मामले में केरल सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या को हल करने के लिए केंद्र सरकार को एक सांचा प्रदान करता है। तार्किक रूप से कहा जा सकता है कि मुख्य रूप से साक्षर आबादी होने के कारण केरल को बहुत फायदा होता है। इससे सार्वजनिक स्वास्थ्य से संबंधित संदेशों को प्रसारित करने में आसानी होती है। लेकिन केरल के पास बेहत स्वास्थ्य प्रणाली भी है। केरल ऐसे संकटों से निपटने के लिए तैयार है, क्योंकि उसकी स्वास्थ्य व्यवस्था संकट की स्थिति न रहने पर भी बेहतर ढंग से काम करती है।
मगर केरल ही एकमात्र राज्य नहीं है, जिसका संपर्क चीन से है। उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में भी इसके कई मामले शामिल हो चुके है इसीलिए ये बहुत जरुरी है कि इस मसले पर केंद्र व राज्य सरकार परस्पर समन्वय बनाकर एक सटीक योजना से इस मुसीबत से सम्पूर्ण राष्ट्र को बचाये  


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