ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे सफल नेता का पार्टी छोड़ना ,कांग्रेस के लिए बड़ा झटका



अंकित सिंह खड्गधारी 


ज्योतिरादित्य सिंधिया


ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे सफल नेता का पार्टी छोड़ना ,कांग्रेस के लिए बड़ा झटका 
ज्योतिरादित्य सिंधिया  लम्बे समय से कांग्रेस के एक सफल नेता रहे है और अगर सच में आज कांग्रेस के यदि मजबूत खम्बो की बात करे तो उसमे सब से ज्यादा अहम् सिंधिया ही नज़र आते है लेकिन यह खबर कांग्रेस के लिए बिलकुल भी अच्छी नहीं है कि सिंधिया भाजपा का दामन थाम चुके है ,जैसा कि उनके खानदान में ज्यादातर लोग भाजपा व जनसंघ से ही जुड़े रहे है ऐसे में सिर्फ ज्योाओं की ज्योतिरादित्य सिंधिया ही अकेले नेता रहे है जो कांग्रेस पार्टी में दिल लगाकर काम करते देखे जाते रहे है 
लेकिन कांग्रेस के वही कारनामे लम्बे समय से जारी है जैसे प्रियंका गाँधी को समय पर अच्छा पद देकर आगे न करना और कांग्रेस के अध्यक्ष पद का संकुचित रहना और बस गाँधी परिवार पर ही निर्भर रहना , लगातार बड़े बड़े नेताओं के अनदेखी करना ,
और ऐसा ही कुछ उन्होंने ज्योतिरादित्य सिंधिया  जी के साथ किया राजनीति भले ही देश सेवा से होकर जाती हो लेकिन उसमे भी पद और तरक्की  चाह रखना बिलकुल भी गलत  नहीं है 
और ऐसा ही ज्योतिरादित्य सिंधिया  ने किया है उन्हें जैसे ही मौका मिला उन्होंने भी कांग्रेस का साथ छोड़ दिया जैसा कि लम्बे समय से कांग्रेस में रिवाज जैसा चला आ रहा है 
इसलिए सिंधिया का  भाजपा में शामिल होना कांग्रेस के लिए एक बड़ा झटका है। यदि मध्य प्रदेश की कमलनाथ सरकार खुद को बचा नहीं सकी तो यह झटका और बड़ा हो सकता है। ज्योतिरादित्य तभी से असंतुष्ट से दिख रहे थे जबसे कमलनाथ मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बना दिए गए थे। कमलनाथ ने उनके कुछ समर्थकों को मंत्री अवश्य बनाया, लेकिन वह खुद खाली हाथ रहे। राजनीति में महत्वाकांक्षा कोई बुरी बात नहीं, लेकिन इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि मध्य प्रदेश में कांग्रेस की जीत में कमलनाथ के साथ ही दिग्विजय सिंह की भी भूमिका थी।माना जाता है कि प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष पद न मिलने और राज्यसभा जाने के आसार कम हो जाने के बाद ज्योतिरादित्य का असंतोष और बढ़ गया। शायद इसी असंतोष के चलते उन्होंने बतौर कांग्रेसी नेता अपनी उपलब्धियों पर गौर नहीं किया। जो भी हो, उनके भाजपा में आते ही जिस तरह उन्हें राज्यसभा का प्रत्याशी घोषित कर दिया गया उससे यह सवाल तो उभरा ही कि कहीं वह येन-केन-प्रकारेण उच्च सदन जाने के लिए आतुर तो नहीं थे?ज्योतिरादित्य मौकापरस्ती की राजनीति का परिचय देने के आरोप से बच नहीं सकते। उन्हें भाजपा से तालमेल बैठाने में भी मुश्किल हो सकती है। आखिर यह छिपी बात नहीं कि अभी हाल तक वह भाजपा और मोदी सरकार की तीखी आलोचना करने के लिए जाने जाते थे। वैसे उनके कांग्रेस छोड़ने के साथ ही पूरा सिंधिया परिवार भाजपा का हिस्सा बन गया है। ज्योतिरादित्य का भाजपा में आना इसलिए अप्रत्याशित नहीं, क्योंकि उनके पिता माधवराव सिंधिया ने भी जनसंघ से अपने राजनीतिक जीवन की शुरूआत की थी। उनकी दादी विजयाराजे सिंधिया जनसंघ की नेता रहने के साथ ही भाजपा की संस्थापक सदस्य भी थीं। एक तथ्य यह भी है कि ज्योतिरादित्य ने अनुच्छेद 370 हटाने को उचित बताया था।फिलहाल वर्तमान समय में मध्य प्रदेश सरकार को सिंधिया के चले जाने की भरपाई कैसे करनी है इस पर गंभीरता से काम करने की जरुरत है क्यूंकि ये सरकार कब तक टिकेगी ये बागी विधायक ही तय करेंगे क्यूंकि उनके मत के बिना ऐसी सरकार ज्यादा दिन चलना मुश्किल है और वही सिंधिया के लिए एक नयी पारी की  सकारात्मक शुरुआत हो चुकी है 


 


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