वास्तु उपाय-अपना आशियाना बनाते समय रक्खे इन बातो का ध्यान 


वास्तु उपाय-अपना आशियाना बनाते समय रक्खे इन बातो का ध्यान 
पंडित रामेन्द्र मिश्र
घर बनाने की प्रक्रिया में सबसे पहले भवन का नक्शा तैयार किया जाता है, यानी भवन की रूप रेखा तैयार किया जाता है। इस प्रक्रिया में ध्यान रखना आवश्यक है के कौनसा कमरा किस दिशा में हो, मुख्यद्वार किस दिशा में हों, रसोईघर कहा बनाया जाए।भवन निर्माण करते समय दिशाओं का ध्यान रखना बहुत आवश्यक होता है क्योंकि सहीं दिशा हमारे घर की सुख-समृद्धि को बढ़ाता है वहीँ इसके विपरीत गलत दिशा में बना हुआ भवन घर में शोक, रोग, कलह आदि लेकर आता है।
घर बनाने में हर कक्ष का, हर द्वार का अलग महत्व होता है। वास्तु के अनुसार हर दिशा और कोण को ध्यान रखना चाहिए।
इन बातो का रखे ध्यान 


    किसी भी भवन का का नक्शा बनाते समय सबसे पहले भवन के मुख्य द्वार निश्चित किया जाता है।
    भूखण्ड के उत्तरी ईशान कोण (पूर्व दिशा और उत्तर दिशा) में मुख्यद्वार बहुत उत्तम माना जाता है।
    उत्तरी ईशान कोण में द्वार बनाने से गृह स्वामी को बहुत लाभ मिलता है।
    भूमि के पूर्वी ईशान कोण पर बनाया गया मुख्य द्वार पुरे परिवार के लिए लाभदायक होता है।
    भवन के दक्षिणी आग्नेय कोण में बनाया गया द्वार भी लाभप्रद होता है।
    भूखण्ड के पश्चिमी वायव्य कोण पर बनाया गया मुख्यद्वार भी उच्चकोटि का होता है।
    भूमि के पूर्वी आग्नेय कोण में बनाया गया मुख्यद्वार सही नहीं होता।
    पूर्वी आग्नेय कोण में बनाये गए मुख्यद्वार के परिणाम अच्छे नहीं होते।
    दक्षिणी नैऋत्य कोण में भी मुख्यद्वार बनाना हानिकारक और घर के लोगो के लिए अस्वस्थकारी होता है।
    पश्चिमी नैऋत्य कोण में बनाया गया मुख्यद्वार भी परिवार के मुखिया के लिए हानिकारक होता है।
    भूमि के उत्तरी वायव्य कोण में बनाया गया मुख्यद्वार, घर में रहने वाले लोगो के मन को हमेशा विचलित रखता है।
    मुख्यद्वार का आकर भवन के अन्य द्वारों की अपेक्षा बड़ा होना चाहिए।
    दरवाजों को खोलते समय कोई भी आवाज नहीं होनी चाहिए।
    किवाड़ अपने आप खुले या बंद हो तो यह भयदायक होता है।


    अगर मकान पूर्ण वास्तु के अनुसार बनाया जा रहा है, तो दरवाजों की संख्या सम हो विषम कोई फर्क नहीं पड़ता।
    यदि भवन में चारों दिशाओं में द्वार बनवाने है तो उच्चकोटि के स्थान पर ही प्रवेश द्वार बनवाये।
    भवन की तीनों दिशाओं में द्वार बनाना हो तो उत्तर दिशा और पूर्व दिशा में द्वार बनाना जरुरी है।
    भवन में दो प्रवेशद्वार बनाना हों, तो शुभफल प्राप्त करने के लिए पूर्व और दक्षिण दिशा में बनवाना चाहिए।
    पूर्व और पश्चिम दिशा में ही दो दरवाजें लगवाना शुभ नहीं होता।


    मुख्यद्वार के सामने कोई भी विघ्न आता है जैसे की द्वार के सामने खम्भा, सीढ़ी, बड़ा पेड़, मशीन या कोल्हू द्वारवेध माना जाता है।
    भवन के मुख्यद्वार के समक्ष बड़े पेड़ का होना बच्चों के लिए दोषकारक होता है।
    मुख्यद्वार के समक्ष कुआं होने से घरवालों को मिर्गी रोग हो सकता है।
    अगर मार्ग भवन के मुख्यद्वार पर आकर खत्म होता हो तो यह भी द्वारवेध होता है। गृहस्वामी के लिए अशुभ होता है।
    मुख्यद्वार के समक्ष मंदिर होना भी द्वारवेध होता है, इससे गृहस्वामी विनाश की और बढ़ता है।
    मुख्यद्वार के सामने हमेशा पानी का बहना, धन का अपव्यय कराने वाला होता है।
    प्रवेशद्वार के समक्ष कीचड़ रहने से घर शोक बना रहता है।
    यह सभी द्वारवेध भवन की ऊंचाई के दोगुना दुरी पर स्थित है तो इनका प्रभाव नहीं होता।


    उत्तर दिशा में खिड़कियाँ परिवार में धन-धन्य की वृद्धि करती है और लक्ष्मी और कुबेर की दृष्टि बनी रहती है।
    खिड़कियों का निर्माण सन्धि स्थल में नहीं होना चाहिए।
    द्वार के समक्ष खिड़कियों को बनवाने से चुंबकीय चक्र पूर्ण होता है, घर में सुख शान्ति बने रहती है।
    खिड़कियों की संख्या सम होनी चाहिए।
    खिड़कियों के पल्ले अंदर की और खुलने चाहिए।
    पश्चिमी, पूर्वी और उत्तरी दीवारों पर खिड़कियों का निर्माण करना शुभ होता है।
    खिड़कियां सदैव दीवार में एक ही सीध में बनानी चाहिए।


    बॉलकनी और बरामदा खुले स्थान के अंतर्गत आते है।
    उत्तर-पूर्व यानी ईशान कोण में बॉलकनी या बबरामदा अधिक रखना चाहिए।
    पश्चिमी दिशा में बॉलकनी या बरामदा का निर्माण नहीं करवाना चाहिए।
    दोमंजिला ईमारत में ऊपरी मंजिल में बॉलकनी और बरामदा पूर्व या उत्तर दिशा में रखना चाहिए।


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