कोरोना : धर्मान्धता बनाम राष्ट्रवाद

दुनिया बीते कुछ महीनों से कोरोना वायरस से उपजी कोविड-19 नामक एक ऐसी महामारी का सामना कर रही है जिसके बारे में कभी सोचा नहीं गया था । भारत सहित पूरी दुनिया के लोग भविष्य को लेकर आशंकित है , क्योंकि इस वायरस के संक्रमण का शिकार होने वालों की संख्या तेजी से बढ़ रही है।  कुछ दिनों पहले तक जो बीमारी चीन, ईरान और इटली के साथ चंद अन्य देशों में सीमित दिख रही थी उसने देखते ही देखते महामारी का रूप धारण कर लगभग 190 देशों  को अपनी चपेट में ले लिया है । दुनिया भर में संक्रमित लोगों की संख्या दस लाख पार कर गयी है । मरने वालों का आंकड़ा भी सत्तर हजार के करीब पहुंच गया है ।  चीन, अमेरिका , इटली, जर्मनी , ब्रिटेन सहित कई देशों में इस बीमारी के भीषण प्रकोप के चलते वहां की अति विकसित स्वास्थ्य व्यवस्थाएं और अर्थव्यवस्था भी चरमरा चुकी है तथा भारी संख्या में मौतों की भयावहता को देखने से ही विश्व घबराया हुआ है  । 

हालांकि भारत पहले ही विश्व स्तर के अनुभवों से बहुत कुछ सीख चुका था और देश ने इस वायरस से निपटने की पहले ही अपनी तैयारियां कर ली थी । जहां चीन सहित अधिकांश देशों में संक्रमण तीसरी स्टेज तक फैलने के बाद ही लॉक डाउन का निर्णय लिया गया लेकिन भारत में यह अच्छी बात रही कि यह निर्णय दूसरी स्टेज पर ही ले लिया गया । लेकिन भारत में इसी समय बहुत कुछ ऐसा हो रहा है जो यह इंगित करता है कि  धर्मान्धता , जड़ता और संकीर्णता से देश को इतनी आसानी से मुक्ति मिलने वाली नहीं है जिससे कोरोना वायरस से भारत की लड़ाई का मोर्चा तब कमजोर पड़ गया जब बीते दिनों दिल्ली के निजामुद्दीन इलाके में तब्लीगी जमात के एक आयोजन में करीब तीन हजार लोग इकट्ठे हो गए   । इनमें देश के विभिन्न हिस्सों से आये लोगों के साथ- साथ दुनिया के अलग-अलग भागों  से आए मजहबी प्रचारक भी शामिल थे।  इनमें लगभग पन्द्रह सौ जमाती कोरोना वायरस से संक्रमित मिले । इस जमात ने अपने जमावड़े के दौरान जरूरी सावधानी बरतने से इन्कार करने के साथ दिल्ली सरकार , पुलिस और भारत सरकार के निर्देशों की अनदेखी भी की । इस मरकज के मौलाना साद के बयान के अनुसार मुसलमानों को कोरोना का कोई डर नहीं और फिर मरने के लिए मस्जिद से अच्छी जगह और क्या हो सकती है।  ऐसे बयान देकर इस मौलाना ने एक तरह से जानबूझकर कोरोना वायरस का संक्रमण बढ़ाने का काम किया । ऐसे बयान कई जमातियों की संक्रमण से मौत के बावजूद दिए जा रहे हैं।  तब्लीगी जमात की इस हरकत के भयानक नतीजे सामने आए । साफ है कि जमातियों ने कोरोना संकट को गहरा दिया ।   अगर तब्लीगी जमात की बात की जाए तो यह  मुस्लिम समुदाय का करीब सौ साल पुराना संगठन है । इसकी जड़ें दक्षिण एशिया के साथ दुनिया के अन्य तमाम देशों में है । यह दकियानूसी तौर-तरीके वाले मजहबी व्यवहार पर जोर देता और उसके प्रचार का काम करता है । 

 इस जमात के लोगों ने देश में आतंक फैला दिया है । जिसके तरह हैदराबाद , इंदौर , नागपुर सहित कई शहरों में जमातियों द्वारा स्वास्थ्यकर्मियों के साथ बदसलूकी , पुलिस पर थूकने व नमाज पढ़ने से मना करने पर पुलिस पर हमला करने जैसी शर्मनाक हरकतें देखने को मिली । आज कोरोना के भयावह संकट में इसी अंध धार्मिकता की गहरी बैठी हुई सामाजिक दृष्टि ने देश को अकल्पनीय संकट में डाल दिया है। 

इससे जमातियों और दूसरे कोरोना संक्रमित व्यक्तियों के जरिये संक्रमण फैलने का सिलसिला तेज़ हो चुका है ।  अगर ऐसा सिलसिला  चलता रहा तो भारत दूसरे चरण को पार कर तीसरे दौर में प्रवेश कर जाएगा । ऐसे में भारत जैसे कम संसाधन सम्पन्न देश जहां विश्व की दूसरी सबसे बड़ी आबादी रहती है , यह महामारी कितनी तबाही मचा सकती है इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। 

भारत सहित दुनिया के तमाम देश जब एक अनजाने , अपरिचित और भयावह वायरस से समग्र मानव जाति को बचाने के रास्ते तलाश रहे है तो इस तलाश में मजहबी पंथ, धर्म आदि को साधक बनना चाहिए , बाधक नहीं। 

आमतौर पर विपत्ति के समय हर कोई अपने मतभेद भुलाकर उसका सामना करने में जुटता है और अपनी सामर्थ्य भर योगदान देता है , लेकिन तब्लीगी जमात सहयोग की बजाय देश को उल्टे संकट में डाल रही है।  धर्म के नाम पर विज्ञान का प्रतिरोध मनुष्य को जड़ता और अज्ञानता के अंधकार में ले जाते है।  उपासना की कोई भी प्रणाली जो मानवता की हानि की कीमत पर ईश्वर साधना का रास्ता बताती है , वह धर्म नहीं हो सकती । धर्माचरण के नाम पर मनुष्य के जीवन को संकट में डालना , उसकी प्रगति पथ में मृत्यु , रोग और विपत्ति के कांटे बोना शैतानी सभ्यता को प्रशस्त करता है ।  धर्म और दीन सिखाता है कि आपदा के समय उचित कदमों या सरकार के दिशानिर्देशों के प्रति न सिर्फ लोगों को जागरूक किया जाए बल्कि खुद  भी उसका पालन करके समाज के सामने एक मिसाल पेश की जाए।  अफसोस, तब्लीगी जमात से जुड़े लोगों ने इसका कतई पालन नहीं किया ।  इस किस्म के दकियानूसी संगठनों से आगे भी ऐसी अपेक्षा रखना बेकार है कि वे देश को किसी विपरीत परिस्थिति में सहयोग करेंगे । 

चूंकि कोई भी देश लम्बे समय तक लॉक डाउन में नहीं रह सकता और भारत सरीखा दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाला देश तो और भी नहीं । लोगों को यह समझना होगा कि भारत विशाल आबादी वाला देश है और हमारा स्वास्थ्य ढांचा इतना मजबूत नहीं है कि इतनी बड़ी आपदा के सामना कर सके । यदि हालात बिगड़े तो उन्हें सम्भालना कठिन हो सकता है ।यह समय संयम और अनुशासन का परिचय देने का है , न कि धर्मान्ध बनने, अफवाहों पर ध्यान देने और सरकारी तंत्र की खामियां गिनने का। यह वह लड़ाई है जिसे लोगों के सहयोग के बिना जीतना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है।  

क्योंकि कोरोना का कोई इलाज नहीं है और उसका टीका बनने और पूरी दुनिया की पहुंच में होने में एक साल से अधिक का समय लग सकता है सो इसकी रोकथाम के लिए शारीरिक दूरी को एकमात्र रामबाण इलाज बताया जा रहा है जिसका पालन हमें राष्ट्रवाद की भावना के साथ करना चाहिए।

बहरहाल आज जब सरकार अपने नागरिकों की सुरक्षा के लिए इतना बड़ा बलिदान कर रही है तो देश के  प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य है कि वह सरकार के साथ सहयोग करे तथा लॉकडाउन का लोग सख्ती से इसका पालन करें । इसके लिए स्व अनुशासन जरूरी है  । जिससे देश में कोरोना वायरस को दूसरे स्टेज पर ही मात दी जा सकेगी और भारत का यह प्रयास दुनिया के सामने मार्गदर्शक सिद्ध हो सकता है ।



By - Ritendra kanwar shekhawat (रीतेन्द्र कंवर शेखावत )


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