लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था 

 



 लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था 
आज मन मे जिज्ञासा कुछ और लिखने की थी पर मेरा विश्व के साथ मेरा देश भी आज संकट में है, एक ऐसी अदृश्य शक्ति के जाल में फंसा है कि निकलने के सारे रास्ते बंद नजर आ रहे है।
मानव की कुशाग्र मस्तिष्क ने जिस विज्ञान की बदौलत इंसान को जंगल, आग, बैलगाड़ी, मकान, दुकान और मंगल तक पहुचाया आज वही विज्ञान अपने ही एक दूसरे अविष्कार के सामने नतमस्तक है...आज विज्ञान ही मानव का दुश्मन बन सामने कोरोना के रूप में खड़ा है।मेरी आशंकाए स्कूल के दिनों से ही विज्ञान के प्रति दोहरा मापदंड रखती थी मैं जिस विज्ञान को मानव विकास की कड़ी मानता था उसी विज्ञान को मानव के विनाश का कारक भी मानता था।क्योंकि हमने गणित और विज्ञान में सबकुछ "मान" कर ही किया है।
"मान" कर ही करने का परिणाम है कि एक तरफ हम मंगल और चाँद पर है तो दूसरी तरफ उसी पृथ्वी पर कोरोना के चलते डरे-सहमे अपने घर मे छिपे है।खैर..
विकसित एवं शक्तिसम्पन्न राष्ट्रों ने दुनिया में अपना आधिपत्य स्थापित करने के लिये नये तरह के युद्धों को इजाद किया है, उनके भीतर नयी तरह की क्रूरता जागी है, उन्होंने दुनिया को विनाश देने के नये-नये साधन विकसित किये हैं, जिससे अनेक बुराइयां एवं संकट बिन बुलाए दुनिया में व्याप्त हो गये। इसी विकृत सोच से आतंकवाद जनमा। जिससे आदमी-आदमी से असुरक्षित हो गया। अब एक नये तरह के आतंकवाद को दुनिया में फैलाने के लिये तरह-तरह के वायरस विकसित हो रहे हैं। जिससे चेहरे ही नहीं चरित्र तक अपनी पहचान खोने लगे हैं। नीति और निष्ठा के केंद्र बदलने लगे हैं। आस्था की नींव कमजोर पड़ने लगी है।ऐसा ही है कोरोना वायरस, जो चीन में विकसित किया गया। लेकिन यह चीन का दुर्भाग्य ही रहा कि वह इसका प्रयोग विरोधी राष्ट्रों पर करता, उससे पहले स्वयं उसका शिकार हो गया।कोरोना वायरस से समूची दुनिया में इंसानी जीवन पर खतरा व्याप्त हुआ है बल्कि इसके चलते दुनिया की अर्थ-व्यवस्था चैपट हो गयी है। चीन ही नहीं भारत और बाकी दुनिया की अर्थव्यवस्था को भी बड़ी चपत लगी है।
देर-सबेर कोरोना वायरस अन्य महामारियों की तरह अंतत: बिदा तो हो जाएगा, लेकिन वह भारत जैसे देश के लिए कुछ सबक भी छोडक़र जाएगा। पिछले कुछ वर्षों में चीन पर हमारी व्यवसायिक और औद्योगिक निर्भरता विदेशी पूंजी के लालच में काफी ज्यादा बढ़ी है। अभी तक भारत बड़े पैमाने पर वे वस्तुएं चीन से आयात कर रहा है । ऐसे में अब भारत को उत्पादन के मामलें में आत्मनिर्भर होना पड़ेगा ।
संपूर्ण मानवता इस समय एक वैश्विक संकट से जूझ रही है। शायद यह हमारी पीढ़ी का यह सबसे बड़ा संकट है।
अगले कुछ सप्ताहों में आम लोग और सरकारें जिस तरह का निर्णय लेंगी वह शायद यह तय करेगा कि आनेवाले वर्षों में दुनिया की तक़दीर कैसी होगी। ये निर्णय न केवल हमारी स्वास्थ्य व्यवस्था को नया आकार देगा बल्कि हमारी अर्थव्यवस्था, राजनीति और संस्कृति को भी नए तरह से गढ़ेगा।
मित्रो... कोरोना भले ही 21 दिन में या 3 महीने में चला जाये पर भारत को बेरंग कर के जाएगा।
मुझे इस चीज का आभास है और मुझे भारत का भविष्य अगले 2 साल तक लड़खड़ाता दिख रहा है।



मिंकु मुकेश सिंह


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