रिजर्व बैंक के उपायों का अर्थव्यस्था पर प्रभाव  


अंकित सिंह "खड्गधारी "


रिजर्व बैंक के उपायों का अर्थव्यस्था पर प्रभाव 
कोरोना  संक्रमण के चलते भारत ही नहीं अपितु ,पूरे विश्व के जितने भी देश इस के चपेट में है सभी के सामने लॉक डाउन ही पहला और अंतिम प्रभावी इलाज बचता है ऐसे में भारत ने भी निरंतर लॉक डाउन को लागू करने का निश्चय किया है और प्रधानमंत्री के आदेश के बाद से ही आज के समय में अगले माह की तीन तारिख तक पूरा भारत लॉक डाउन है आपको बतात्ते चले कि इसके पहल भी माननीय प्रधानमंत्री जी ने इक्कीस दिनों का लॉक डाउन घोसित किया था ऐसे संक्रमण के समय में जितना चिंताजनक स्वस्थ्य सम्बन्धी सेवाएं है उतनी ही चिंता जनक स्थिति देश की अर्थव्यवस्था की भी है क्यूंकि कोरोना संक्रमण के पहले भी देश की व्यापारिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी और बेरोजगारी भी चरम पर ही थी और इस लॉक डाउन के चलते अब व्यापारिक स्थिति तो और ज्यादा विचारणीय हो जाएगी क्यूंकि आज के समय में पूरा देश अपने घरो के अंदर बंद है ऐसे में बाजारों में उत्साह लाना व्यापारियों के लिए खुली चुनौती है रिजर्व बैंक ने देश की अर्थव्यवस्था को महामारी कोविड-19 के दुष्प्रभावों से बचाने के लिए जिन उपायों की घोषणा की उनका आम तौर पर स्वागत हुआ है, लेकिन बात तब बनेगी जब इन उपायों का सकारात्मक असर जमीन पर भी दिखाई देगा।क्यूंकि इसके पहले रिजर्व बैंक की तरफ से यह बात आयी थी कि किसी भी प्रकार की क़िस्त अब अगले तीन महीने न कटे लेकिन उसे भी भारतीयों बैंको ने इस प्रकार लागू किया कि उस योजना का जमीनी असर देखने के लिए किसी सूक्ष्मदर्शी की आवश्यकता है और उसके बाद भी यह तय करना मुश्किल ही रहेगा कि ग्राहकों को इस योजना का लाभ मिला भी या नहीं ?
इस देशव्यापी लॉक डाउन में एक चीज और है जो बहुत ज्यादा चिंताजनक है ,कि लॉक डाउन में सिर्फ जनता को ही लॉक डाउन किया गया है ,उस पर जो बोझ पड़ा वह किसी भी सूरत में लॉक डाउन नहीं होता सकता ,जैसे मासिक किस्ते ,बिजली का बिल ,गाड़ी का बीमा ,टीवी का बिल फ़ोन का बिल इंटरनेट का बिल ये सभी अपनी गति से लागू है ऐसे में जनता परेशान होती है और मजबूर होकर घर से बाहर  निकलती है और जब वह बाहर निकलती है तो फिर कानून के रक्षको को अपना फ़र्ज़ भी अदा करना पड़ता है 
और यही स्थिति देश के व्यापारियों की है जैसे उन्हें इस लॉक डाउन के समय में कही से भी पैसा नहीं आना है ,और उन्हें अपनी फर्मो के बिजली के बिल जो कि एक मोती रकम होती है बड़ी कंपनियों पर तो इसका कोई खासा  असर नहीं होगा लेकिन ,छोटे व्यापारियों के लिए बिजली ,टेलीफोन ,इंटरनेट इत्यादि का बिल जमा करना एक बड़ा लक्ष्य है ऐसे में उनके पास जो बची हुई राशि है वह इन सब में चली जानी है,ऐसी स्थिति में सरकार  को चाहिए कि जो मासिक किस्ते सरकार के अधिकार  क्षेत्र में आती हो उन पर तो रोक लगा ही दी  जाए जैसे बिजली का बिल, सरकारी  कंपनी  द्वारा बीमे की किस्तों पर अगर ये दो खर्चे भी सरकार वहन कर ले तो स्थिति कुछ अच्छी हो सकेगी 
फिलहाल वापिस अर्थव्यवस्था पर रिजर्व बैंक के उठाये कदमो की चर्चा पर आते है रिजर्व बैंक की ओर से उठाए गए कदमों से पूंजी बाजार में नकदी की उपलब्धता तो आसान होगी, लेकिन इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि कोरोना वायरस से उपजी महामारी के पांव पसारने के पहले ही भारतीय अर्थव्यवस्था सुस्ती के दौर से गुजर रही थी।रिजर्व बैंक ने बैंकों को कर्ज वितरण के लिए प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से रिवर्स रेपो दर में कटौती करने के साथ ही एनपीए से संबंधित प्रावधानों में भी ढील दी है। इससे बैंकों को कर्ज देने में आसानी अवश्य होगी, लेकिन देखना यह होगा कि कारोबारी कर्ज लेकर अपना उद्यम बढ़ाने के लिए आगे आते हैं या नहीं? वे तो तभी उत्साहित होंगे जब मांग बढ़ेगी।और ये उत्साह कब अपने रूप को विकराल कर भारतीय अर्थव्यस्था में जान फुकेगा ये तो लॉक डाउन ही बातयेगा और , ये लॉक डाउन भी कब जाएगा  ये तो मौजूदा कोरोना संक्रमण की स्थिति ही बताएगी ,तो फिलहाल रिजर्व बैंक ने जो दो कदम उठाये है एक तो पहले मासिक किस्तों को लेकर और दूसरा बैंको को क़र्ज़ देने में सहूलियत देकर , इसका लाभ बाजार कैसे उठायेगा ये तो भविष्य की ही मुट्ठी में है 


 


Post a Comment

Previous Post Next Post

प्रेस विज्ञप्ति व विज्ञापन के लिये ,हमें ईमेल करे editordharasakshi@gmail.com