अब भविष्य की चिंता 

अब भविष्य की चिंता 




अंकित सिंह" खड्गधारी "
ये बात सौ प्रतिशत सत्य है कि वर्तमान है तभी भविष्य है ,जान है तो जहान है,और हमनेऔर हमारे सरकारी  तंत्र ने भी यही समझाऔर इसे कहीं से भी गलत नहीं कहा जा सकता क्यूंकि जब भारत वर्ष में भी इस कोविड19 ने अपना कदम बढ़ायाऔर कुछ ही दिनों में अचानक से अपने पैर ज़माने लगा तो सरकार केलिए लॉकडाउन एक मज़बूरी बन गयी क्यूंकि इसकी बढ़ती रफ़्तार पे लगाम लगाने का भारत तो छोड़िये पूरे विश्वके पास लॉक डाउन के अलावाअभी तक कोई विकल्प नहीं आ सका हैऔर यही वजह हैकि भारत ही नहींअपितु समस्त विश्व लॉकडाउन की बेड़ियों में जकड़ा नज़र आ रहा है भारत में यह22 मार्च  को शुरू हुआऔर आनेवाली 18 मईतक स्थितिऐसी हीरहनी है कोरोना संकट में सब की सबसे पहली चिंता यही है कि खुद को औरअपने प्रियजनों को इस बीमारी से बचाकर रखते हुए जिंदगी कैसे चलाई जाए?और इसी सोच के चलते सभी ने खुद को घर मेंकैद कर लिया लेकिन असल समस्या तो लॉकडाउन के बाद शुरू हुई जब सरकार के सुझाव के बावजूद कुछ कंपनियों ने आधी सैलरी ही अपने कर्मचारियों को दी और इसकी वजहें वर्क फ्रॉम होम को बताया गया और कुछ कंपनियों ने तो कुछ ऐसे डाक्यूमेंट्स तैयार किये जिस से वे किसी भी तरह के लीगल मेटर में न फंस आ जाये 
और कितनो की दुकाने बंद होने से उनके वहां जो वर्कर काम करते थे उन्हें कैसे वेतन दिया जाए ये सब से बड़ी समस्या सामने आ गयी क्यूंकि जब खुद दुकानदारों के पास ही पैसे नहीं तो फिर ऐसे में वैसे अपने कर्मचारियों को कितना वेतन दे सकते है और ऐसे में अगर किसी व्यापारी ने किसी कर्मचारी को आधा वेतन भी दिया तो ये भी काबिलेतारीफ ही है कि ऐसी विपरीत परिस्थितिओं में भी उन्होंने अपने कर्मचारियों का साथ दिया ऐसे में सभी वर्ग परेशान दिखे जो लोग कारोबार कर रहे हैं, उनके लिए कारोबार को पटरी पर लाने की चिंता। जो नौकरी कर रहे हैं, उन्हें नौकरी बचाने, तनख्वाह कटने या उसके न बढ़ने की चिंता। जिनको किराया, कर्ज की किस्तें या कोई और भुगतान करना है, उन्हें उसका इंतजाम करने की चिंता। घर का खर्च, बच्चों के स्कूल की फीस, तरह-तरह के बिल और कहीं कोई मुसीबत आ पड़ी, तो ये सारी चिंताएं तो हैं ही। जिनके पास अच्छी खासी सेविंग्स है खैर वे तो ये समय काट लेंगे लेकिन मौजूदा समय किस के पास कितनी सेविंग है ये चीजे सड़को पर पालयन करते हुए मजदूरों को देखकर पता चल ही जाता है क्यूंकि ये दौर ऐसा रहा निम्न वर्गों के लिए कि वे एक महीना भी घर बैठकर खाना खाने की स्थिति में नहीं यही और यही कारण रहा है के इतनी बड़ी तादाद में शहरों से अपने गाँवों के लिया पलायन करते नज़र आ रहे है ऐसे में सरकार  का लॉक डाउन फोर में फैक्ट्रियो और कंपनियों का खुलने के आदेश एकदम सही नज़र आते है क्यूंकि यही एक तरीका है जिस से बुझती हुई अर्थव्यवस्था और मंडी में डूबे बज़्ज़ार को इस बाहर निकला जा सकता है और साथ ही निर्माण कार्यो के सहारे ,मजदूरों को फिर से रोजगार मिलने लगेगा और कम्पनियो के खुलने से मजदूरों को अब अपने घरो को पलायन नहीं करना पड़ेगा 
वो अलग बात है कि सरकार ने जिन भी संस्थानों को खोलने की इजजत्त दी है उन सभी को सुरक्षा के सभी मानकों पर खरे उतरना होगा क्यूंकि हम इसी तरह अपने भविष्य को बचा सकते है और अब वो समय भी आ गया है कि हम खुद ही खुद को अनुशंसान में राखे और सभी जरुरी निर्देशों का पालन करे तभी हम अपनी भविष्य की चिंता उबर सकेंगे 


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