एक बैंक कर्मी का दुखड़ा 


एक बैंक कर्मी का दुखड़ा 
एक बैंककर्मी को क्या करना चाहिए?
कौन सा ग्राहक कहा से आया है, कुछ पता नही।
बैंक के एटीएम को कहा का आदमी प्रयोग कर रहा है, कुछ पता नही।
कैश काउंटर पर बैठा कैशियर कहा-कहा से आयी नोट को गिन रहा है,कुछ पता नही।
बैंक का गार्ड जो हर जाने-अनजाने से डायरेक्ट सम्पर्क में है।
परसो एक जनाब बैंक में आये थे, अच्छे-खासे दिख रहे थे... गार्ड साहब ने गेट खोला, उन्हें सेनेटाइजर देते हुए कहा कि मुँह में मास्क,रुमाल या गमछा लगा लिजीये..
वो साहब सीधा बोले: नही है।
गॉर्ड: तो अंदर मत जाइए,पहले मास्क लगाकर आइये।
साहब: तुम मुझे रोकोगे? ये कहते हुए अंदर आ गए।
अब कैशियर साहब भी गार्ड साहब पर गुस्साते हुए बोले "किसी को अंदर मत आने दीजिये, वरना आप ही आकर कैश लीजिये"
वो साहब भी नही माने बोले कि अब आ गया हूँ तो पेमेंट लेकर ही जाऊंगा, भले अगली बार से मास्क लगाकर आऊंगा...
भाई....कोई क्या करें, बड़ी आफत है।
ये जो दिल्ली-बम्बई-गुजरात वाले लोग आ रहे, ये घर पर नहा धोकर-गुड़-पानी पीकर सबसे पहले अपने नजदीकी बैंक या एटीएम पर ही जाते है।
अलग-थलग लगे बिना गार्ड वाले एटीएम की क्या सुरक्षा है, वहां किसने सेनेटाइजर रखा है।
जबकि दिनभर धक्का-पेल करके एक ही कीबोर्ड्स, और एक ही स्क्रीन पर न जाने कितनी अंगुलियां पड़ती है।
मैं शाम को घर आता हूँ तो पहले घर से बाहर ही नहाता हूँ कपड़े बदलता हूँ फिर अंदर जाता हूँ।
मुझे लगता है ये काफी नही.... मैं नहाउ,रोज बैग को धोया करूँ,जुता,बेल्ट,घड़ी या अपनी कार को रोज धोया करूँ....
क्या करूँ....बैंक तो जाना ही है क्योंकि हम अशेनशियल सर्विस सेक्टर वाले है।
मुझे लगता है हर बैंककर्मी का यहीं हाल है।



मिंकु मुकेश सिंह


ये लेखक के निजी विचार है 




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