पूर्णबन्दी और भुखमरी

पूर्णबन्दी और भुखमरी


 शुभम पांडेय गगन

आज समस्त विश्व कोरोना नामक महामारी से गुजर रहा और पूरा विश्व पूर्णबन्दी में है ।सारे रोजगार बंद सारा व्यापार मंद हुआ पड़ा है और ये सबको पता है एक तबका अर्थात जिन्हें कलंकित करने के लिए गरीब कहा गया वो भुखमरी की हालत पर है। इस धरती और शायद गरीब होना ही सबसे बड़ा पाप है तभी कुछ भी हर प्रभाव उसी पर पड़ता है लेकिन हमारी समस्या है कि हम जान कर गरीब या उसमे पैदा नहीं होते और ये समाज हमें दयनीय और सबसे अलग दृष्टि से देखता है।


यह सब महज इस कोरोना की वजह से ही नही अपितु संसार मे फैली हर एक महामारी मानव जीवन को कष्ट और भुखमरी के मोड़ पर खड़ी कर देती है।

महामारी सिर्फ बीमारी की नहीं होती चाहे वो महंगाई में महामारी हो या आर्थिक या कुदरत का बरपता कहर जैसे भूकम्प,भूस्खलन, बाढ़ की महामारी भी मानव जीवन की कमर तोड़ती है।

दो वक्त की रोटी जुटा पाना मुश्किल कर देती है और हमारा दुर्भाग्य है कि हम कुछ कर नही सकते ।

क्या हमें ऐसे महामारी हेतु पहले से तैयार रहना चाहिए लेकिन महामारी कोई बता कर तो आती नहीं ।

आती है और अपने अट्टहास करने हुए अंदाज़ में मानव जीवन की धज्जियां उड़ा देती है। 

अभी तो कोरोना महामारी का आतंक न केवल गरीब देश बल्कि विश्व के सारे बड़े देश अमेरिका,रूस,जापान, इटली आदि घुटनो पर है और बेसहारा लग रहे। अभी न जाने क्या क्या दिखाएगी ये बीमारी लेकिन गरीबो की कौन बात कर रहा वो तो वैसे भी मरी हालात में थे बस अब शव गिना जा रहा।

ये हमारी कूटनीतिक राजनीति और अधिक पाने की लालसा का परिणाम है या सच मे यह एक आने वाली बड़ी आफ़त का महज संदेश ख़ैर जो भी लेकिन मानव जीवन का अंत और अंत की स्थिति तो बनी है।

मानव का सारा कार्य, व्यापार पर ताले है और खुलने के आसार अभी कोशों दूर दिखाई पड़ रहे और इससे बचने की उम्मीद समय के साथ धूमिल होती जा रही।

बस सब उम्मीद लगाए है अब सही हो या तब सही हो जाये । कुदरत के आगे हर कोई शक्तिहीन लगता है लेकिन यह कहा कुदरत का बनाया वायरस था या किसी लैब का जो भी था इसने यह सिद्ध कर दिया कि हम कितना आगे बढ़ जाये लेकिन महामारी के श्राप से बचना बहुत मुश्किल है ये अमीर गरीब विकसित या अविकसित नहीं देखती बल्कि संपूर्ण मानव जाति को प्रभावित करती है जिसका चित्रण बड़ा ही भयावह होता हैं। आज पूरा विश्व आर्थिक रूप से 5 साल तो पीछे हो ही गया और मरने वालों की संख्या की गिनती नहीं । हमें ये समझना होगा कि हम विज्ञान को इतना आगे ले जाएं जहां तक वो हमारे लिए लाभकारी हो न कि विनाशकारी रूप धर ले।

कुदरत को परेशान करते करते आदमी यह भूल गया वह अपना बचाव हेतु एक बार परेशान की तो पूरा विश्व अपना विज्ञान और ज्ञान भूला बैठा है और घरों में बंद है।

(ये लेखक के निजी विचार है )

 

 


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