प्रवासियों का लॉक डाउन 

प्रवासियों का लॉक डाउन 
वैसे  तो लॉक डाउन ने पूरे भारत ही नहीं अपितु समस्त विश्व को ही प्रभावित किया है समाज कोई वर्ग वर्क फ्रॉम होम से संतोष कर रहा है तो किसी ने अपनी दुकाने बंद कर दी तो किसी ने कुछ दिनों का काम से अवकाश ही ले लिया है लेकिन समाज का एक वर्ग ऐसा भी है जो न तो  छुट्टी पर जा सकता है न वर्क फ्रॉम होम कर सकता है और न किसी तरह का अवकाश ले सकता है क्यूंकि उसे तो रोज कामना और रोज ही खाना है ,और भारतीय समाज का वह बर्ग है प्रवासी मजदूर 
ये वे लोग है को कुछ कमाने और बचाने की आशा लेकर अपने घरो को छोड़कर दूसरे शहरों को चले जाते है और जब उनके गाँव घर में खेती बाड़ी का काम शुरु होता तो वे फिर गाँव के जमीदारो या फिर बड़े लोगो के खेतो में आकर पसीना बहते है और इसी तरह गाँव और शहर दोनों जगह कड़ी मेहनत कर के अपने जीवन का गुजर बसर करते है वो भी बस इसी आशा में कि शायद कल कुछ अच्छा हो जाए 
जब से पूरे देश में लॉक डाउन शुरू हुआ तब से लेकर आज तक प्रवासी मजदूर सिर्फ दर दर की ठोकरे खाते टीवी स्क्रीन ,सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ,कहीं कहीं पर आप सभी ने लाइव भी देखा ही होगा ,पहले तो लॉक डाउन में सख्ती की गयी तो ये प्रवासी वही रुके रहे जहा ये थे लेकिन जब उनके खाने पिने के वांदे हो गए तो फिर वे सड़को पर आकर भटकने को मजबूर हो गए ,
खैर इन सब के बीच प्रशासन ने भी इस गंभीर मसले को अपने संज्ञान में लिया और सरकार तो इनकी समस्यें पहुंचाई और फिर सरकारों द्वारा इनके खाने पिने के सभी इंतज़ाम किये गए 
लेकिन मजदूरों की संख्या और उसमे किसे क्या सहायता चाहिए इन सर विसयों पर प्रशासन पूरी तरह सफल नहीं हो सका और कुछ प्रवासियों ने अपने घरो को जाने का निश्चय कर लिया 
जिन्हे साधन मिले साधन जिसे कुछ न मिला वे पैदल ही अपने घरो को निकल पड़े और इधर सरकार के सामने भी कोई विकल्प नहीं था उन्होंने गाँवों को कोरोना संक्रमण से बचाने के लिए पहले वहां प्रशासन को सतर्क कर रक्खा था कि यदि किसी भी प्रकार का कोई भी प्रवासी गाँव में आता है तो उसे कारण्टीन कर दिया जाए और यही हुआ भी जब ये बेचारे प्रवासी पैदल किसी तरह अपने गाँव पहुंचे तो अपने अपने घरो से दूर कर दिए गए 
और जब इन प्रवासियों का बहुत बड़ा तबका जो आज भी अपने घरो की ओर निकलने का रास्ता  देख  रहा था उनकी ख़ुशी का ठिकाना न रहा जब सरकार ने तय किया कि अब सभी प्रवासियों को उनके घरो तक पहुँचाया जायेगा और इसी कड़ी में देश के अलग-अलग कोनों में फंसे श्रमिकों को घर पहुंचाने के लिए रेलवे ने विशेष ट्रेनों का परिचालन शुरू किया है. इस योजना के तहत रोज तीन से चार प्रवासी स्पेशल रेलगाड़ियां बिहार भी आ रही हैं. मगर इनको लेकर इन दिनों अलग तरह का विवाद शुरू हो गया है. विवाद यह है कि मजबूरी में फंसे इन प्रवासी श्रमिकों ( से रेल किराया क्यों लिया जा रहा है. कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी  की इस घोषणा के बाद कि इन श्रमिकों का किराया कांग्रेस की तरफ से वहन किया जाएगा, देश में पक्ष-विपक्ष के बीच राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप की बौछार शुरू हो गई है. हालांकि कुछ न्यूज क्लिपिंग में मजदूर खुद यह शिकायत करते नजर आ रहे हैं कि उनसे न सिर्फ पूरा किराया वसूला गया है, बल्कि कुछ अतिरिक्त शुल्क भी लिए गए हैं. एकाध वीडियो में तो मजदूरों ने यह भी कहा है कि उनके कई साथी महज किराया नहीं होने के कारण यात्रा नहीं कर पाए. स्टेशन से वापस लौट गए. और सोशल मीडिया के माध्यम से लोगो ने भी सरकार रूपये लेने की प्रक्रिया को अन्याय बताया है और जब से कांग्रेस ने इसका एलान किया है कि वे प्रवासियों के रेल टिकट का खर्च वहां करेगी उसके बाद मायावती की ओर से भी यूपी में ऐसा ही प्रस्ताव दिया गया है फिलहाल इसको लेकर राजनीति भी गर्म होती नज़र आ रही है अभी ये भी जानकारी मिली है कि इन्हे फ्री  पहुंचाने के भी इंतज़ाम किये जा रहे है लेकिन फिलहाल जब तक प्रवासी अपने घरो तक सुरक्षित न पहुँच जाए तब तक उनकी समस्या हल होती नज़र नहीं आ रही है 


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