स्वास्थ्य की बुनियादी जरूरते 


अंकित सिंह खड्गधारी 


स्वास्थ्य की बुनियादी जरूरते 
यदि आप देश में दिल्ली छोड़कर कहीं और रह रहे है तो आपने अक्सर ही सुना होगा कि यहाँ इस रोग का इलाज़ नहीं होने वाला दिल्ली ही चलना पड़ेगा ,कैसा भी रोग हो उनमे से ज्यादातर का इलाज़ दिल्ली में बहुत ही अच्छे ढंग से किया जाता रहा है और शसयद इसीलिए हमेशा से ही दिल्ली को सम्मान की दृष्टि से देखा गया ,और कुछ ऐसी ही स्थिति मुंबई की भी रही है लेकिन जब से वैश्विक महामारी कोरोना ने हमारे देश में दस्तक दी तभी से पूरे देश में अलर्ट घोसित हुआ लॉक डाउन भी लागू हुआ वो काफी लम्बा लेकिन इस के बाद भी हमारी सरकार इसे इतना नहीं रोक सकी जिस पैमाने पर आज इसे होना चाहिए था ,अपितु यहाँ तो उल्टा है आज के समय में कोरोना संक्रमण इस हद तक बढ़ चूका है कि इसने तो भारत को एशिया  में नंबर एक में लाकर खड़ा कर दिया है और वर्तमान समय में जब लॉक डाउन खोल दिया गया है तो स्थिति और भी ज्यादा गंभीर होती जा रही है हर प्रदेश में रेड स्पॉट बढ़ते ही चले जा रहे है 
और इसे बढ़ते संक्रमण में हमारी क्या तयारी है वो आज सुप्रीम कोर्ट का निर्णय साफ़ दर्शा देता है कि हम जहाँ थे वही खड़े है हमें किसी भी स्थिति से कोई फरक नहीं पड़ता हम वैसे ही रहेंगे जैसे है 
सरकारी अस्पतालों की बदहाली का और क्या कहा जाए कि आज कोर्ट को खुद ही सरकारों को निर्देश देने पड़ गए है कि स्वस्थ्य व्यवस्थाओं पर ध्यान दिया जाए 
वर्तामन जिस प्रकार से देश भर से कोरोना के मरीजों की शिकायते बढ़ रही है उस हिसाब से तो यही लगता है कि  सरकारी स्वास्थ्य ढांचा चरमराकर टूटने ही वाला है। सबसे बड़ी विडंबना यह है कि सरकारी अस्पतालों का सबसे बुरा हाल दिल्ली और मुंबई में देखने को मिल रहा है।यदि देश की प्रशासनिक और वित्तीय राजधानी में स्वास्थ्य ढांचे का इतना बुरा हाल है तो फिर यह अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है कि अन्य शहरों में हालात कितने दयनीय होंगे। दुर्भाग्य से अनुमान लगाने की जरूरत नहीं, क्योंकि देश के अन्य शहरों के सरकारी अस्पतालों के खराब और डरावने हालात को बयान करने वाली खबरों का सिलसिला थम नहीं रहा है। ऐसी खबरें देश की बदनामी का कारण भी बन रही हैं।और सब से बड़ी दिक्कत तो यही है कि ऐसा सिर्फ कोरोना संक्रमितत मरीजों के साथ नहीं हो रहा है अपितु और भी जो रोगी है वे बेमौत मर रहे है और जो ज़िंदा है वे बदहाली का इंतज़ाम झेल रहे है पहली बात तो मौजूदा समय में कोरोना के अलावा किसी और रोगी के लिए तो कहीं और कोई इंतज़ाम नज़र नहीं आता ,ये बात समाज से परे है कि जब इसका अंदेशा मार्च माह में ही उभर आया था कि लाखों लोग कोरोना वायरस से संक्रमित हो सकते हैं और उनके उपचार के लिए अस्पतालों में बड़ी संख्या में बेड के साथ अन्य संसाधन भी चाहिए होंगे तब फिर राज्य सरकारें युद्ध स्तर पर जुटकर पर्याप्त व्यवस्था क्यों नहीं कर सकीं? शायद समुचित व्यवस्था बनाने से अधिक ध्यान बड़े-बड़े दावे करने में दिया गया और इसीलिए आज यह देखने-सुनने को मिल रहा कि कहीं कोरोना मरीजों को भर्ती करने से इन्कार किया जा रहा है, कहीं भर्ती के बाद उन्हेंं उनके हाल पर छोड़ दिया जा रहा है और कहीं-कहीं तो उनके शवों को कचरे वाले वाहनों में ले जाया जा रहा है। यह अकल्पनीय भी है और अक्षम्य भी।अभी आज ही मैंने सोशल मीडिया में एक तस्वीर देखि जिसमे एक गर्भवती ने दम तोड़ दिया इलाज़ न मिलने के कारण ,ये सब बाते एक प्रश्न उठती है पूरी व्यवस्था पर कि आज आखिर हम जो चाँद तारो पे जाने की बाते कर रहे है वे भला कैसे पूरी करेंगे ,जब हम स्वस्थ्य सम्बन्धी विभागों में बुनियादी सुविधाएँ भी जुटा पाने में असमर्थ नज़र आते है फिलहाल दिल्ली के लिए तो यही उम्मीद की जाती है कि केंद्र सरकार राज्य सरकार के साथ मिलकर इस समस्या से निदान दिलाएगी और जल्दी ही जो इल्तज़ाम कम है उन्हें जल्दी ही पूरे किये जायेंगे और इसी की तर्ज़ पर देश के अन्य हिस्सों में भी बराबर सारी व्यवस्थाएं  कर  दी जाएंगी 


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