केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री श्री अमित शाह ने नई दिल्ली के विज्ञान भवन में श्री लचित बोरफुकन की 400वीं जयंती के उपलक्ष्य में आयोजित समारोह को संबोधित किया। इस अवसर पर असम के मुख्यमंत्री डॉ. हिमंत विश्व शर्मा और केन्द्रीय मंत्री श्री सर्बानंद सोनोवाल सहित अनेक गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।
अपने सम्बोधन में श्री अमित शाह ने कहा कि अगर लचित बोरफुकन ना होते तो आज पूरा पूर्वोत्तर भारत का हिस्सा ना होता क्योंकि उस वक्त उनके द्वारा लिए गए निर्णयों और उनके साहस ने ना केवल पूर्वोत्तर बल्कि पूरे दक्षिण एशिया को धर्मांध आक्रांताओं से बचाया। उन्होंने कहा कि लचित बोरफुकन के उस पराक्रम का उपकार पूरे देश, सभ्यता और संस्कृति पर है।
श्री अमित शाह ने कहा कि पूर्वोत्तर की सीमाओं के बाहर भारत माता के महान सपूत श्री बोरफुकन के नाम को पहुंचाने का काम असम के मुख्यमंत्री डॉ हिमंत विश्व शर्मा ने किया है। श्री शाह ने कहा कि जिस देश की जनता को अपने इतिहास पर गौरव होने का बोध ना हो, वो अपना सुनहरा भविष्य कभी नहीं बना सकती। उन्होंने कहा कि अगर देश का स्वर्णिम भविष्य बनाना है तो देश के इतिहास पर गौरव होना बहुत ज़रूरी है।
केन्द्रीय गृह मंत्री ने कहा कि हमारे देश के सबसे कठिन समय के दौरान बोरफुकन जी ने देश के कोने में जिस वीरता का परिचय दिया, उससे देश के हर हिस्से में धर्मांध औरंगज़ेब के खिलाफ एक लड़ाई शुरू हुई थी। उन्होंने कहा कि जिस समय दक्षिण में शिवाजी महाराज स्वराज की भावना को ताकत दे रहे थे, उत्तर में दसवें गुरू गुरू गोविंद सिंह जी और पश्चिम में राजस्थान में वीर दुर्गादास राठौड़ लड़ रहे थे, उसी कालखंड में लचित बोरफुकन भी पूर्व में मुग़ल सेना को परास्त करने के लिए लड़ रहे थे।
श्री अमित शाह ने कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा अकादमी (NDA) में 1999 से बेस्ट कैडेट को लचित बोरफुकन गोल्ड मेडल दिया जाता है ताकि हमारे देश के सभी जांबाज़ जवान इस योद्धा से प्रेरणा ले सकें। श्री शाह ने कहा कि आज देश में सबसे अक्षुण्ण संस्कृति कुदरती सौंदर्य से भरपूर नॉर्थईस्ट में पाई जाती है, वहां की भाषा, संस्कृति, गायन, वादन, वेशभूषा और खानपान अक्षुण्ण रहे हैं। उन्होंने कहा कि अकबर हो या औरंगज़ेब, कुतुबद्दीन ऐबक हो या इल्तुतमिश, बख्तियार खिलजी हो या इवाज़ खिलजी, मोहम्मद बिन तुग़लक हो या मीर जुमला, इनमें से हर एक को यहां पराजय का मुंह देखना पड़ा।
केन्द्रीय गृह मंत्री ने कहा कि लचित बोरफुकन के जीवन ने साहस की व्याख्या पूरी दुनिया के सामने की है। उन्होंने कहा कि जिस काम को करने में डर लगता है उसे करने का नाम ही साहस होता है और उसी साहस के दम पर बोरफुकन जी ने इतनी बड़ी मुगल फौज के सामने प्रतिकूल परिस्थितियों में उस सदी की सबसे बड़ी विजय प्राप्त की। श्री शाह ने कहा कि बोरफुकन जी ने बहुत अच्छे तरीके से असम की सभी जनजातीय सेनाओं को इकट्ठा करने का काम किया। उन्होंने कहा कि यहां लगाई गई प्रदर्शनी से देश के पूर्वोत्तर में लड़ी गई देश की स्वतंत्रता की लड़ाई के बारे में पता चलता है। उन्होंने कहा कि हो सकता है कि हमारे इतिहास को ग़लत तरीके से लिखा गया हो लेकिन हमारे इतिहास को गौरवमयी तरीके से लिखने से अब हमें कोई नहीं रोक सकता। उन्होंने कहा कि हमें हमारे इतिहास को गौरवमयी तरीके से विश्व के सामने रखना होगा। श्री शाह ने कार्यक्रम में उपस्थित इतिहासकारों और इतिहास के विद्यार्थियों से आह्वान किया कि आप 30 बड़े साम्राज्यों, जिन्होंने 150 सालों से ज़्यादा देश के किसी भी हिस्से पर शासन किया है, और 300 ऐसी विभूतियां जिन्होंने देश की स्वतंत्रता के लिए अपना बलिदान दिया, उनके बारे में अनुसंधान कीजिए।
गृह मंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में वर्तमान सरकार देश के गौरव के लिए किए गए किसी भी पुरुषार्थ की समर्थक है। उन्होंने कहा कि हमें इतिहास को तोड़ मरोड़ कर पेश किए जाने वाले विवाद से बाहर निकलकर इतिहास को गौरवमयी बनाकर पूरे संसार के सामने रखना चाहिए। उन्होने कहा कि हमारे स्वतंत्रता के इतिहास के नायकों के बलिदान और साहस को देश के कोने- कोने में पहुंचाने से हमारी आने वाली पीढ़ी को प्रेरणा मिलेगी।
श्री अमित शाह ने कहा कि इतिहासकारों के अनुसार सरायघाट की लड़ाई में लचित बोरफुकन ने मुगलों की बड़ी-बड़ी तोपों और जहाजों का सामना अपनी छोटी-छोटी नावों और हथियारों से लैस सेना के बल पर किया। लचित बोरफुकन की सेना राष्ट्रभक्ति की भावना से ओत प्रोत थी जबकि मुगल सेना में इसका अभाव था यही वजह थी कि संख्या, युद्ध की जानकारी, संसाधनों और हथियारों की दृष्टि से असमानता होते हुए भी लचित बोरफुकन की सेना ने लड़ाई में विजय प्राप्त की और अहोम राज्य की संप्रभुता, संस्कृति और सभ्यता को बचाया। उन्होने कहा कि बंगाल से लेकर कंधार तक कई युद्ध जीतने वाले रामसिंह ने लचित बोरफुकन की सेना से हारने के बाद आश्चर्य जताते हुए कहा था कि उन्होने नाव चलाने, तीर चलाने, खाइयाँ खोदने, बंदूकें और तोपें चलाने में माहिर असमिया सैनिकों की बहुमुखी प्रतिभा वाली ऐसी सैन्य टुकड़ी अपने जीवन में पहले कभी नहीं देखी। श्री शाह ने कहा कि एक सजग और साहसी सेनापति ही ऐसी बहुमुखी प्रतिभा वाली सैन्य बना सकता है। लचित बोरफुकन ने सेनापति बनने के बाद बहुत कम समय में अपनी सेना को सभी प्रकार के युद्धों में माहिर बनाया। ब्रह्मपुत्र के माध्यम से असम में लड़ाई लड़ने के लिए मजबूत नौसेना तैयार करने के लिए लचित बोरफुकन ने सेना के प्रत्येक जवान को नौसेना में पारंगत बनाया।
केंद्रीय गृह मंत्री ने कहा कि लचित बोरफुकन ने मुगलों के हमले के समय किलेबंदी की जिम्मेदारी अपने मामा को सोंपी जिनका समय पर जवाब न आने के कारण देश प्रेम को स्वजन प्रेम से ऊपर रखते हुए लचित बोरफुकन ने अपने मामा का सर कलम कर दिया था। देशभक्ति की ऐसी मिसाल कहीं नहीं मिलती। देशभक्ति के रंग में पूरी तरह रंगा व्यक्ति ही ऐसा कर सकता है। इस घटना ने लचित बोरफुकन की पूरी सैन्य टूकड़ी में देशभक्ति की ज्वाला को प्रज्ज्वलित किया। श्री अमित शाह ने कहा कि लचित बोरफुकन शिद्दत के साथ युद्ध जीतने के लिए संकल्पवान थे। सरायघाट युद्ध से पहले बीमार होते हुए भी लचित बोरफुकन ने युद्ध का फैसला किया। उनके कुछ सैनिकों ने उन्हें निर्बल मान सुरक्षित जगह पर ले जाने का प्रयास किए जाने के बाद भी बोरफुकन जी ने मुगलों के खिलाफ युद्ध किया और विजय प्राप्त कर मुगलों के साथ पहले हुए युद्ध में अहोम साम्राज्य को नीचा दिखाने वाली अपमान जनक पराजय का इतनी वीरता के साथ बदला लिया कि इसके बाद किसी भी मुस्लिम आक्रांता ने तक असम पर हमला करने का साहस नहीं किया।
श्री अमित शाह ने असम के मुख्यमंत्री डॉ हिमंत विश्व शर्मा से अनुरोध किया कि लचित बोरफुकन के चरित्र का हिन्दी और देश की 10 अन्य भाषाओं में अनुवाद किया जाना चाहिए जिससे देश का हर बच्चा लचित बोरफुकन के साहस और बलिदान से अवगत हो सके। गृह मंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने इसीलिए आजादी का अमृत महोत्सव मनाने का निर्णय ताकि हमारे युवाओं, बच्चों और नई पीढ़ी का आजादी के गुमनाम शहीदों और योद्धाओं से परिचय कराया जा सके और वे इससे प्रेरणा लेकर आजादी की कीमत समझें। इस मौके पर श्री अमित शाह ने प्रसिद्ध इतिहासकार सूर्यकुमार भूरिया का स्मरण करते हुए कहा कि भूरिया जी ने लचित बोरफुकन के जीवन से जुड़े इतिहास का संपादन, अनुवाद और प्रकाशन कर उन्हें अमर करने का काम किया है। इसे देश के हर राज्य और हर भाषा में पहुंचाने की जरूरत है।
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