पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (एमओईएस) के साथ साझेदारी में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने आज श्रीहरिकोटा में सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (एसडीएससी) के अपने फर्स्ट लॉन्च पैड से अन्य उपग्रहों के साथ महासागरों पर नजर रखने के लिए तीसरी पीढ़ी के भारतीय उपग्रह जिसे औपचारिक रूप से भू प्रेक्षण उपग्रह-6 (ईओएस-6) का नाम दिया गया है, को लॉन्च किया।
महासागरों के अध्ययन का ये मिशन क्रमशः 1999 और 2009 में लॉन्च किए गए ओशनसैट-1 या आईआरएस-पी4 और ओशनसैट-2 का अगला कदम है। भरोसेमंद प्रक्षेपण यान पीएसएलवी (ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण वाहन) की 56वीं उड़ान (पीएसएलवी-एक्सएल संस्करण की 24वीं उड़ान) के जरिए उपग्रह को प्रक्षेपित किया गया था। पीएसएलवी-सी54 के रूप में डिजाइन किए गए आज के प्रक्षेपण में ओशनसैट-3 के साथ अन्य छोटे उपग्रहों को भी भेजा गया।
ओशनसैट-3 को समुद्र तल से करीब 740 किलोमीटर की ऊंचाई पर ध्रुवीय कक्षा में स्थापित किया गया। करीब 1100 किलोग्राम के वजन के साथ जबकि यह ओशनसैट -1 की तुलना में सिर्फ थोड़ा सा ही भारी है, इस श्रृंखला में पहली बार इसमें 3 निगरानी सेंसर यानि ओशन कलर मॉनिटर (ओसीएम-3), सी सर्फेस टेंपरेचर मॉनिटर (एसएसटीएम) और केयू बैंड स्कैट्रोमीटर (एससीएटी-3) लगाए गए हैं। इसमें एक एआरजीओएस पेलोड भी है। भारत की ब्लू इकोनॉमी से जुड़ी आकांक्षाओं के लिए इन सभी सेंसर का अपना खास महत्व है।
360 मीटर स्थानिक रेज़लूशन और 1400 किमी चौड़ी पट्टी पर नजर रखने की क्षमता के साथ उन्नत 13 चैनल ओसीएम रोजाना पृथ्वी के दिन पक्ष का निरीक्षण करेगा और समुद्री शैवाल के वितरण पर महत्वपूर्ण आंकड़े प्रदान करेगा जो समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र के भीतर खाद्य श्रृंखला का आधार है। उम्मीद है कि उच्च सिग्नल-टू-नॉइज अनुपात के साथ ओसीएम-3 फाइटोप्लांकटन की दैनिक निगरानी, मत्स्य संसाधन के प्रबंधन, महासागरों के द्वारा कार्बन अवशोषण, हानिकारक शैवाल में तेज बढ़त की चेतावनी और जलवायु अध्ययन सहित परिचालन और अनुसंधान संबधी अनुप्रयोगों की विस्तृत श्रृंखला में पहले से बेहतर सटीकता प्रदान करेगा।
एसएसटीएम समुद्र की सतह के तापमान की जानकारी देगा जो मछलियों के समूह से लेकर चक्रवात उत्पत्ति और उनकी चाल सहित विभिन्न पूर्वानुमान प्रदान करने के लिए एक महत्वपूर्ण महासागरीय मानदंड है। प्रवाल भित्तियों के स्वास्थ्य की निगरानी और यदि आवश्यक हो, प्रवाल विरंजन की चेतावनी प्रदान करने के लिए तापमान एक प्रमुख मानदंड है। ईओएस-6 पर स्थापित केयू-बैंड पेंसिल बीम स्कैट्रोमीटर समुद्र की सतह पर उच्च रिजॉल्यूशन विंड वेक्टर (गति और दिशा) प्रदान करेगा, एक ऐसी जानकरी जिसके बारे में कोई भी नाविक जानना चाहेगा, चाहे वह मछुआरा हो या शिपिंग कंपनी। पूर्वानुमान की सटीकता में सुधार के लिए समुद्र और मौसम के मॉडल में तापमान और हवा के आंकड़े जोड़ने बेहद महत्वपूर्ण हैं। एआरजीओएस एक संचार पेलोड है जिसे फ्रांस के साथ संयुक्त रूप से विकसित किया गया है और इसका उपयोग लो-पावर (ऊर्जा-कुशल) संचार के लिए किया जाता है, जिसमें समुद्र में मौजूद रोबोटिक फ़्लोट्स (ऑर्ग फ़्लोट्स), मछलियों पर लगने वाले टैग, ड्रिफ्टर्स और खोज और बचाव कार्यों के प्रभावी संचालन में उपयोगी संकट चेतावनी उपकरण शामिल हैं।
केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी एवं पृथ्वी विज्ञान राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) और पीएमओ, कार्मिक, लोक शिकायत, पेंशन, परमाणु ऊर्जा और अंतरिक्ष राज्यमंत्री, डॉ जितेंद्र सिंह ने जम्मू से एक संदेश में सफल प्रक्षेपण के लिए इसरो और एमओईएस टीमों को बधाई और धन्यवाद दिया।
माननीय मंत्री ने कहा, जबकि इसरो उपग्रह की कक्षा और आंकड़े पाने और उन्हे सुरक्षित रखने आदि से जुड़ी मानक प्रक्रियाओं को जारी रखेगा, इस उपग्रह के प्रमुख परिचालन उपयोगकर्ता एमओईएस के संस्थान जैसे भारतीय राष्ट्रीय महासागर सूचना सेवा केंद्र (आईएनसीओआईएस), हैदराबाद और राष्ट्रीय मध्यम अवधि मौसम पूर्वानुमान केंद्र नोएडा होंगे जो कि देश भर में लाखों हितधारकों को हर दिन कई तरह की सेवाएं प्रदान करते हैं।
डॉ जितेंद्र सिंह ने जानकारी दी कि इस उद्देश्य के लिए, आईएनसीओआईएस ने राष्ट्रीय सुदूर संवेदन केन्द्र (इसरो-एनआरएससी), हैदराबाद के तकनीकी सहयोग से अपने परिसर के भीतर एक अत्याधुनिक उपग्रह डेटा रिसेप्शन ग्राउंड स्टेशन भी स्थापित किया है। उन्होंने यह भी कहा कि इस तरह समुद्र का निरीक्षण भारत की ब्लू इकोनॉमी और ध्रुवीय क्षेत्र की नीतियों के लिए मजबूत आधार के रूप में काम करेगा।
एमओईएस के सचिव डॉ. एम. रविचंद्रन ने इसरो को बधाई देते हुए कहा कि ओशनसैट-3 का आज का प्रक्षेपण इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यूएन सतत विकास के लिए महासागर विज्ञान का दशक (यूएनडीओएसएसडी, 2021-2030) की शुरुआत के बाद से यह भारत की ओर से किया जाने वाला पहला प्रमुख महासागरीय उपग्रह प्रक्षेपण है। उन्होंने कहा, इस उपग्रह में महासागर के रंग, एसएसटी और समुद्री सतह की हवाओं का समवर्ती मापन करने की क्षमता होगी, और उम्मीद है कि ये महासागर दशक के उद्देश्यों को पूरा करने में दुनिया भर के वैज्ञानिक और परिचालन समुदायों की सागर को समझने की क्षमताओं को एक महत्वपूर्ण बढ़त प्रदान करेगा।
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