शब्दों के उस्ताद खिलाड़ी प्रसून जोशी ने कहा है कि महान संगीत की रचना के लिये कवि के पद्य और संगीतकार की लय के बीच विवाह सरीखे मधुर सम्बंध होने चाहिये। श्री जोशी 53वें भारत अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव के दौरान आज गोवा में आयोजित एक संवाद-सत्र में बोल रहे थे। उन्होंने कहा, “गीतकार और संगीतकार के बीच का रिश्ता दो विपरीत प्राणियों का एक साथ रहने जैसा होता है, लेकिन दोनों को हमेशा एक-दूसरे का पूरक होना चाहिये।”
“आर्ट एंड क्राफ्ट ऑफ लिरिक राइटिंग” विषयक संवाद-सत्र को सम्बोधित करते हुये जाने-माने कवि और गीतकार ने कहा कि ‘प्रामाणिकता’ एक गीतकार का सबसे महत्त्वपूर्ण गुण होता है। उन्होंने कहा, “आप जैसा कोई नहीं है। आप अनोखे और बेमिसाल हैं। एक गीतकार को हमेशा अपनी शैली में लिखने की, अपने शब्दों को पिरोने की कोशिश करनी चाहिये।”
अपने लेखन के सार के बारे में प्रसून ने कहा कि उनके ज्यादातर शब्द उनकी अपनी मिट्टी और संस्कृति से आते हैं। उन्होंने कहा, “हमारे पालन-पोषण और संस्कृति का बड़ा गहरा असर हमारे लेखन पर पड़ता है। मैं अपने ज्यादातर शब्द और रूपक अपनी क्षेत्रीय भाषा और संस्कृति से लेता हूं। कोशिश होनी चाहिये कि हमारी क्षेत्रीय भाषा के शब्द कभी विलुप्त न हों।”
लेखन पर कृत्रिम बौद्धिकता के प्रभाव के बारे में प्रसिद्ध गीतकार ने कहा कि कृत्रिम बौद्धिकता चाहे जितनी उन्नति कर ले, वह कभी भी मानवजाति की रचनात्मकता और बौद्धिकता का स्थान नहीं ले सकती।
आज के भद्दे गीतों पर प्रसून ने कहा कि बाजार का दर्शन है कि अगर कोई चीज नहीं बिकेगी, तो वह नहीं बनाई जायेगी। उन्होंने कहा, “रचनाकारों की तरह ही पाठक और दर्शक भी बराबर के जिम्मेदार होते हैं।”
संवाद-सत्र का संचालन वरिष्ठ पत्रकार और लेखक अनंत विजय ने किया।
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