एक फिल्म जिसने एडिटिंग टेबल पर आकार लिया। निर्देशक की पारसी रंगमंच में गहरी रुचि थी। उन्होंने बिना ज्यादा सोचे समझे कई दिग्गज पारसी थियेटर कलाकारों के साक्षात्कार लिए थे। उन फुटेज को अपने स्टोरेज बैंक में रखकर वह भूल गईं।
फिल्म निर्माता दिव्या कोवासजी और उनके भाई जाल कोवासजी ने इफ्फी-53 में पीआईबी द्वारा आयोजित एक बातचीत में अपने वृत्तचित्र 'दि शो मस्ट गो ऑन' के तैयार होने की दिलचस्प कहानी साझा की। फ्रांसीसी वृत्तचित्र शैली में बनी यह फिल्म लंबे समय बाद फाइनल शो के लिए एक पुराने पारसी रंगमंच के कलाकारों के साथ आने की कहानी कहती है।
करीब 30 वर्षों की खामोशी के बाद, 2017 में पारसी रंगमंच के उम्रदराज दिग्गजों ने एक आखिरी शो के लिए मंच पर लौटने का फैसला किया। जिस निर्देशक को इसकी सूचना मिली, वह बॉम्बे चले गए। उन्होंने कुछ समय शूटिंग की और फुटेज को सुरक्षित रख लिया। हालांकि उम्रदराज और मौज-मस्ती करने वाले पारसी थियेटर के कलाकारों के बीच बिताए आनंददायक पलों ने उन्हें उनका दीवाना बना दिया, लेकिन मंच के पीछे क्या हो रहा था! उन्होंने कहा, 'मैं उनके जज्बात से काफी प्रभावित हुई। उनकी गहरी दोस्ती, बूढ़े और नौजवानों के बीच संबंध विशेष थे और उनमें से कोई भी जीवन को चिंतित होकर नहीं जी रहा था।'
निर्देशक-निर्माता-सिनेमैटोग्राफर दिव्या कोवासजी कहती हैं, 'मेरे पास 100 घंटे से ज्यादा की फुटेज थी। यह नहीं पता था कि इसका क्या करना है!' फिर अचानक उन्हें कई साल पहले अपनी पहली फिल्म की शूटिंग के दौरान लिए गए कुछ फुटेज मिले, जिसमें एक कपल एक नाटक में अपने अनुभव के बारे में बात कर रहा होता है, जहां मंच पर पत्नी की मौत हो जाती है और पति बिल्कुल अकेला रह जाता है। वह पल मेरे लिए दिल को छू लेने वाला रहा।
इसके बाद उन्होंने अपने भाई के साथ बात की, जो एक प्रशिक्षित सिनेमैटोग्राफर हैं। जाल कहते हैं, 'हमारे एडिटिंग शुरू करने से पहले, मैंने तीन महीने तक सभी फुटेज को अलग-अलग विषयों के आधार पर 25-30 अलग-अलग टाइमलाइन में बांटकर रख लिया। एक बार जब हमने उसे विषय के हिसाब से व्यवस्थित कर लिया तब हमने महसूस किया कि इसमें कुछ बेहद खास है। इस तरह से फिल्म ने धीरे-धीरे आकार लिया।' जाल इस वृत्तचित्र के संपादक, सह-निर्माता और सह-निर्देशक भी हैं।
भाई-बहन की जोड़ी की फिल्म 'दि शो मस्ट गो ऑन' 53वें भारतीय अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (आईएफएफआई) के भारतीय पैनोरमा गैर-फीचर श्रेणी में पहली फिल्म थी।
पारसी थियेटर के बारे में बोलते हुए दिव्या कोवासजी ने कहा, 'एक समय, पारसी थियेटर मुंबई में इतना लोकप्रिय हुआ करता था कि रविवार सुबह मुंबई आने वाली 'थियेटर एक्सप्रेस' कही जाने वाली एक ट्रेन गुजराती भाषी दर्शकों से भरी होती थी। यह समुदाय खुद काफी जिंदादिल है, वे बिना किसी रोकटोक के जिंदगी का आनंद लेते हैं, उनके हास्य सुनकर लोग भी अपनी चिंताओं को भूलकर मुस्कुरा देते हैं।' उन्होंने आगे बताया कि हालांकि कुछ नाटककारों ने गंभीर और दुखद नाटक लिखने की कोशिश की लेकिन यह पारसी थियेटर के दर्शकों को पसंद नहीं आया।
दिव्या कोवासजी ने कहा, 'इनमें से कई अभिनेता कई वर्षों के बाद मंच पर लौटे तो वे व्हीलचेयर, वॉकर और दूसरे बुजुर्गों के सहायक उपकरणों के साथ थे। लेकिन मंच पर दोबारा अभिनय करने के मिले मौके ने उन्हें इतना उत्साहित किया कि वे गा रहे थे और नाच रहे थे। यही पारसी भावना है।'
जाल कोवासजी ने कहा, 'हमें एक साथ फिर से जुटना और सहयोग करना पसंद है।' दिव्या कोवासजी एक फोटोग्राफर हैं और एक पुरस्कार विजेता वृत्तचित्र फिल्म निर्माता हैं। उन्होंने 'किस्सा-ए-पारसी' के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार (2015) जीता था। उनकी फिल्में कई अंतरराष्ट्रीय समारोह में प्रदर्शित हो चुकी हैं।
दि शो मस्ट गो ऑन का वर्ल्ड प्रीमियर फिल्म साउथएशिया 2022 में नेपाल में हुआ था।
फिल्म का सार इस प्रकार है: नाटक के मंचन से पहले अभिनय की तस्वीरों के साथ, यह वृत्तचित्र आखिरी बार मंच पर लौटने की कहानी है। इस रिहर्सल की रचनात्मक उथल-पुथल उनके रिश्तों, विशिष्ट संवेदनाओं और अद्वितीय हास्य का चित्रण प्रस्तुत करती है। लेकिन फाइनल शो की पूर्व संध्या पर कलाकारों के साथ एक बड़ी त्रासदी हो जाती है। क्या यह सब कुछ बदल देगा? या शो चलता रहेगा?
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