प्रसिद्ध वन्यजीव फिल्मकार श्री सुब्बैया नल्लामुथु ने आज 18वें मुंबई अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (एमआईएफएफ) के मौके पर आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन में अपनी अंतर्दृष्टि साझा की और अपनी नवीनतम अभूतपूर्व परियोजना की घोषणा की। श्री सुब्बैया नल्लामुथु ने कहा, “फुटेज हासिल करना आसान होता है, लेकिन एक मोहक और आकर्षक कहानी को पहचानना कठिन होता है क्योंकि सभी फुटेज कहानी नहीं कहते।”मीडिया को संबोधित करते हुए, श्री नल्लामुथु ने वन्यजीवों पर आधारित फिल्मों के निर्माण में सम्मोहक कहानी कहने के महत्व पर जोर दिया और कहा, “किसी भी वास्तविक नायक के बजाय मेरे लिए कंटेंट ही असली नायक है।”
अपनी प्रस्तुतियों के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रशंसित सुब्बैया नल्लामुथु ने अपनी पहली महत्वाकांक्षी फीचर फिल्म, जो बाघों की विस्मयकारी यात्रा पर केन्द्रित एक इको-थ्रिलर है, के बारे में जानकारी दी। यह रचनात्मक फिल्म जंगल में एक दशक से अधिक अवधि में कैद किए गए बाघों के वास्तविक फुटेज को एक कहानी में पिरोयेगी, जो हिंदी सिनेमा का एक अविस्मरणीय क्षण होगा। इस फिल्म का उद्देश्य वन्यजीवों पर आधारित कंटेंट के प्रति अपने अनूठे दृष्टिकोण, प्रेरक गीतों और एक्शन से भरपूर दृश्यों के मिश्रण से जमीनी और वैश्विक स्तर के दर्शकों को लुभाना है। उत्साहित नल्लामुथु ने कहा, “हम वास्तविक फुटेज को मनोरंजक कहानी कहने की कला के प्रारूप में ढाल रहे हैं। मुझे खुशी है कि गुलजार साहब, शांतनु मोइत्रा और दर्शन कुमार जैसे फिल्म उद्योग के दिग्गज कलाकार इस फिल्म में काम करने के लिए सहमत हो गए हैं।”
एमआईएफएफ 2024 में वी. शांताराम लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार विजेता इस फिल्मकार ने अपने पात्रों के प्रति गहरा भावनात्मक संबंध व्यक्त करते हुए बाघों पर फिल्म बनाने के अपने रोमांचक अनुभव साझा किए। उन्होंने कहा, “मैंने कभी भी बाघों को जानवर या मात्र पात्र के रूप में नहीं माना है। मैं हमेशा बाघों को इंसान के रूप में देखता हूं। मैं उनकी सभी भावनाओं और गतिविधियों को इंसानों से जोड़ता हूं।”
वृत्तचित्रों के निर्माण में उभरती प्रवृत्ति पर चर्चा करते हुए, श्री नल्लामुथु ने गैर-काल्पनिक सामग्री की विशिष्टता और दर्शकों का ध्यान खींचने के लिए इसे एक आकर्षक एवं मनोरंजक फीचर फिल्म के प्रारूप में प्रस्तुत करने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला। उन्होंने वन्यजीव फिल्मकारों के सामने आने वाली महत्वपूर्ण चुनौतियों पर भी चर्चा की, जिसमें फंडिंग, वितरण प्लेटफॉर्म और जंगल में शूटिंग की लॉजिस्टिक्स संबंधी कठिनाइयां शामिल हैं। उन्होंने स्पष्ट किया, “वन्यजीवों पर आधारित फिल्मों के निर्माण के दौरान, आपको अलग-अलग समय और स्थान पर एक वास्तविक चरित्र का अनुसरण करने की आवश्यकता होती है, जोकि एक बड़ी चुनौती है। इसके अलावा, आपको सरकारी मानदंडों और विनियमों का पालन करने की आवश्यकता होती है।”
चर्चा का समापन हुए, उन्होंने मिथकों और गलतफहमियों को दूर करने के लिए वन्यजीवों के बारे में अधिक जागरूकता की आवश्यकता पर जोर दिया ताकि इस विधा की और अधिक सार्वजनिक सराहना हो सके। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि इस तरह की जागरूकता से वन्यजीवों पर आधारित फिल्मों के प्रति रूचि बढ़ेगी और वे संरक्षण संबंधी प्रयासों में योगदान देंगी।
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