उत्तर भारत में लू का प्रकोप: तापमान, मानसून और बुनियादी ढांचे पर बढ़ता दबाव

 



अंकित सिंह "खड्गधारी "
उत्तर भारत पिछले 15 वर्षों में सबसे लंबे समय तक चलने वाली लू का प्रकोप झेल रहा है। कुछ राज्यों में दिन का न्यूनतम तापमान लगातार 45 डिग्री सेल्सियस से ऊपर बना हुआ है, जबकि अपेक्षाकृत ठंडे राज्यों में साल के इस समय में तापमान सामान्य से कम से कम तीन से छह डिग्री सेल्सियस ज्यादा है। यहां तक कि रात का तापमान भी लगातार सामान्य से तीन से छह डिग्री सेल्सियस ऊपर बना हुआ है, जो नमी और बारिश के लगभग अनुपस्थित रहने का नतीजा है।
मानसून की सुस्ती ने स्थिति को और गंभीर बना दिया है। जल्दी शुरुआत के बाद, मानसून 12 जून से ठहरा हुआ है और मध्य भारत में अटका हुआ है। केरल में मानसून की शुरुआत से पहले, भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) ने जून में बारिश ‘सामान्य’ रहने का अनुमान लगाया था। अब इसने अपने अनुमान को अद्यतन करते हुए बारिश के ‘सामान्य से कम’ या मात्रात्मक दृष्टि से, महीने की अपेक्षित मात्रा 16.69 सेंटीमीटर से कम से कम आठ फीसदी कम रहने की बात कही है। हालांकि, यह अपडेट मानसून की प्रगति के बारे में जानकारी नहीं देता है।
उत्तर-पश्चिमी और उत्तरी राज्यों में मानसून के आगमन की सामान्य तारीखें 25 जून से 1 जुलाई तक की हैं। यह देखना अभी बाकी है कि क्या मानसून की मौजूदा रुकावट इन तारीखों को और भी आगे बढ़ाएगी। लंबे अंतराल का मतलब इन राज्यों में बुनियादी ढांचे पर और भी ज्यादा भार हो सकता है।
बीते 17 जून को, विद्युत मंत्रालय ने बताया कि उत्तर भारत में बिजली की मांग बढ़कर 89 गीगावॉट (89,000 मेगावाट) हो गई है, जो एक दिन में सबसे ज्यादा है। बिजली की इस जरूरत को पूरा करने के लिए, लगभग 25 फीसदी-30 फीसदी बिजली को अन्य चार क्षेत्रों - दक्षिण, पश्चिम, पूर्व और उत्तर-पूर्व - और संभवतः भूटान से “आयात” करना पड़ा। इसका सटीक विस्तृत विवरण (ब्रेक-अप) प्रदान नहीं किया गया।
भले ही मंत्रालय ने मांग को पूरा करने का श्रेय लेने का दावा किया है, लेकिन इससे अप्रत्यक्ष रूप से बुनियादी ढांचे पर दबाव का पता चलता है। उत्तर भारत में बिजली की स्थापित क्षमता 113 गीगावॉट (1,13,000 मेगावाट) है और अगर उत्तरी ग्रिड को अभी भी बिजली आयात करने की जरूरत पड़ रही है, तो यह इसकी पूरी क्षमता का इस्तेमाल करने में असमर्थता को दर्शाता है। उसी दिन दिल्ली के अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डा पर आधे घंटे तक बिजली गुल (ब्लैकआउट) रही और इसका मतलब यह है कि लंबे समय तक चलने वाली गर्मी और शीतलन की मांग सिर्फ ग्रिड पर और दबाव ही डालेगी।
इससे जुड़ा जल संकट भी है, जिसकी चपेट में दिल्ली है। अब जबकि पानी की चोरी एक आम समस्या है, गर्मी ने मांग बढ़ा दी है और दिल्ली के लिए पानी के प्रमुख स्रोत हरियाणा ने अपनी बाधाओं का हवाला देते हुए आपूर्ति बढ़ाने से इनकार कर दिया है।
अब वक्त आ गया है कि राजनीति को किनारे रखा जाए और लंबी गर्मी के दौर को केंद्र एवं राज्यों द्वारा समग्र रूप से एक प्राकृतिक आपदा के रूप में देखा जाए। यह आवश्यक है कि सभी संबंधित पक्ष मिलकर समाधान निकालें ताकि इस गंभीर स्थिति से निपटा जा सके और जनसाधारण को राहत प्रदान की जा सके।

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