खड्गधारी - संवाद
इस संसार का स्वभाव परिवर्तनशील है। समय के साथ-साथ यहाँ हर चीज़ बदलती रहती है - मौसम, पेड़-पौधे, मानव सभ्यताएँ, तकनीक, और हमारी जीवनशैली। आधुनिक युग में हम देखते हैं कि कैसे विज्ञान और तकनीक ने हमारे जीवन को पूरी तरह से बदल दिया है। लेकिन इन सभी भौतिक परिवर्तनों के बीच, एक चीज़ जो स्थिर रहती है, वह है हमारी आत्मा, हमारा स्वभाव और हमारा वास्तविक स्वरूप।
आत्मा, जिसे सनातन और अमर माना जाता है, संसार के किसी भी परिवर्तन से प्रभावित नहीं होती। यह परमात्मा का अंश है और इसीलिए यह अदृश्य, अमर और अटल होती है। आत्मा का कोई रूप या आकार नहीं होता, न ही इसका कोई रंग या रूपांतरण होता है। जब भी हम बाहरी दुनिया में परिवर्तन देखते हैं, वह सिर्फ हमारे शरीर, समाज और भौतिक तत्वों पर होता है। आत्मा का स्वभाव अपरिवर्तनीय है और यह समय, स्थान या परिस्थितियों के बंधन से मुक्त है।
हमारा स्वभाव भी, चाहे समय के साथ परिस्थितियों के अनुसार थोड़ा-बहुत बदल सकता है, लेकिन उसका मूल तत्व हमेशा वैसा ही रहता है। जैसे जल का स्वभाव ठंडक देना और अग्नि का स्वभाव जलाना होता है, वैसे ही मानव का स्वभाव भी उसकी आत्मा के गुणों से प्रभावित होता है। चाहे कितनी भी भौतिक सुख-सुविधाएँ मिल जाएं, या संसार में कितने भी बदलाव आ जाएं, हमारा स्वाभाविक स्वरूप नहीं बदलता।
वास्तविक स्वरूप वह है, जिसे हम अपनी आंतरिक सच्चाई कहते हैं। यह वही है, जो हमारे जन्म से पहले भी था और मृत्यु के बाद भी रहेगा। यह हमारे कर्म, हमारी सोच और हमारे दृष्टिकोण के रूप में प्रकट होता है। हम चाहे कितनी भी बाहरी सुंदरता या सफलता प्राप्त कर लें, हमारे अंदर की वास्तविकता वही रहती है, जो सदा से है।
संसार का यह परिवर्तन हमें हमेशा नए अनुभव और सीख देता है, लेकिन हमारी आत्मा हमें हमेशा सत्य, प्रेम, और दया की दिशा में प्रेरित करती है। हमें यह याद रखना चाहिए कि संसार के बदलाव के साथ बहकने की बजाय, हमें अपनी आत्मा की आवाज़ को सुनना चाहिए। यही हमारी सच्ची पहचान है, जो हमें हर परिवर्तन से ऊपर उठकर शांति और स्थायित्व का अनुभव कराती है।
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