रोगी से प्राप्त रक्त के थक्का बनाने वाले घटकों के साथ धातु-आधारित नैनोमेडिसिन से निर्मित संयुक्त चिकित्सीय प्रत्यारोपण शल्यचिकित्सा के बाद स्थानीय ट्यूमर के दोबारा उत्पन्न होने की प्रवृत्ति को घटाता है।इस प्रौद्योगिकी का उपयोग एक चिकित्सीय किट बनाने के लिए किया जा सकता है, जो कैंसर रोगियों के लिए फायदेमंद हो सकती है। यह किट हाथों में रखकर इस्तेमाल किए जाने वाले होमोजीनाइजर और सेंट्रीफ्यूज जैसे सरल उपकरणों का उपयोग करके स्वचालित रूप से हाइब्रिड इम्प्लांट को उत्पन्न कर सकता है।ठोस ट्यूमर के उपचार में सर्जरी और कीमोथेरेपी अपरिहार्य हैं। हालांकि ट्यूमर के बचे हुए तत्वों के कारण इसके दोबारा उत्पन्न होने और विशिष्ट प्रकार की दवा नहीं मिलने के कारण होने वाली विषाक्तता ये महत्वपूर्ण तरीके उपचार में सक्षम नहीं हो पाते हैं। नैनो प्रौद्योगिकी से बने उपकरण विषाक्तता को कम करने और कीमोड्रग्स की घुलनशीलता में सुधार करने में आशाजनक परिणाम देते हैं, लेकिन खराब ट्यूमर की जैव उपलब्धता (इंजेक्शन से दी गई खुराक का <0.7 प्रतिशत) और रेटिकुलो एंडोथेलियल सिस्टम से तेजी से निकासी के कारण उनकी प्रगति धीमी हो जाती है। इसमें एक प्रमुख बाधा 'प्रोटीन कोरोना' कहलाने वाले नैनोकणों की सतह पर पहले से मौजूद सीरम प्रोटीन का अवशोषण भी है।प्रोटीन कोरोना को हाल ही में एक मरीज के आणविक फिंगरप्रिंट के रूप में पाया गया है और माना गया है कि इसे भविष्य में किसी व्यक्ति के उपचार की रणनीति के अंतर्गत नैनोकणों के मूल डिजाइन में एकीकृत किया जा सकता है। वहीं दवा दिए जाने के ठीक बाद सीरम प्रोटीन को सब से पहले उस के अणु से जोड़ने के उद्देश्य से वैज्ञानिक कोरोना प्रोटीन को सटीक नैनोमेडिसिन और डायग्नोस्टिक टूल के निर्माण की दिशा में सकारात्मक रूप से उपयोग करने के लिए उपयुक्त तरीके विकसित करने की कोशिश कर रहे हैं।विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के स्वायत्त संस्थान नैनो विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्थान (आईएनएसटी), मोहाली के वैज्ञानिकों ने आईआईटी रोपड़, एम्स बिलासपुर और पीजीआईएमईआर चंडीगढ़ के शोधकर्ताओं के साथ मिलकर एक स्वदेशी इंट्रा-ऑपरेटिव संयोजन उपचार विकसित किया है और उसका परीक्षण किया है, जिसमें दवा और धातु-आधारित नैनोमेडिसिन शामिल हैं। उसे रोगी से प्राप्त सीरम प्रोटीन कोरोना द्वारा स्थिर किया जाता है, जिसे नैनो-माइक्रो-सीरा (एनएमएस) कहा जाता है। उसे किसी जगह पर दोबारा उत्पन्न होने वाले ट्यूमर की शल्य चिकित्सा के बाद उसके उपचार में सहायता के लिए स्वचालित फाइब्रिन में इस्तेमाल किया जाता है।हाइब्रिड फाइब्रिन इम्प्लांट अवशिष्ट ट्यूमर बेड में क्षतिग्रस्त ऊतक के साथ तेजी से जुड़ जाता है। शल्यचिकित्सा वाली जगह को बंद करने के बाद वहां पर कीमो-फोटोथेरेपी, इम्युनोजेनिक सेल डेथ (आईसीडी) की मध्यस्थता वाले डेंड्राइटिक ऊतक की परिपक्वता और टी-सेल सक्रियता के माध्यम से उस ट्यूमर को दोबारा उत्पन्न होने से रोक देती है।हालांकि फाइब्रिन सीलेंट व्यावसायिक रूप से उपलब्ध हैं, लेकिन स्वचालित रूप से प्राप्त फाइब्रिन गोंद का उपयोग शल्यक्रिया, मैक्सिलोफेशियल और नेत्र संबंधी सर्जरी के दौरान भी अनुकूल रूप से किया जाता है। ऐसी नैदानिक प्रक्रियाओं के लिए इसके व्यापक उपयोग के कारण, नैनो-माइक्रो-सीरा (एनएमएस) को शामिल करके चिकित्सीय कार्यक्षमता के साथ इसे और मजबूत करना अत्यधिक आवश्यक है।शोधकर्ताओं द्वारा विकसित स्वचालित हाइब्रिड फाइब्रिन गोंद से बार-बार होने वाले स्तन ट्यूमर को रोकने में उल्लेखनीय तालमेल और बेहतर परिणाम देखे गए हैं। नैनोस्केल पत्रिका में प्रकाशित इस विशिष्ट-पोषक दृष्टिकोण के अंतर्गत सावधानीपूर्वक न्यूनतम संसाधनों का उपयोग किया गया है। पारंपरिक उपचारों की सीमाओं को देखते हुए इसका उपयोग विभिन्न आर्थिक स्थितियों वाले रोगियों के लिए सुनिश्चित किया जा सकता है।भारत में ठोस ट्यूमर से पीड़ित रोगियों की बड़ी संख्या को देखते हुए, स्थानीयकृत शल्य चिकित्सा के बाद उसके प्रबंधन के लिए सस्ते उपचार की पद्धति से प्राथमिक ट्यूमर को दोबारा उत्पन्न होने की प्रवृत्ति को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ेगा। इस प्रकार इसके स्थानीय और दूरस्थ रूप-परिवर्तन की संभावना को भी प्रभावित किया जा सकेगा।
प्रकाशन लिंक: डीओआई: 10.1039/d4nr01076k
यह चित्र नैनो माइक्रो सीरा (एनएमएस) की तैयारी और हाइब्रिड फाइब्रिन गोंद के साथ ट्यूमर बेड पर इसके अनुप्रयोग के लिए कार्य प्रवाह को दर्शाता है, जो अवशिष्ट कैंसर कोशिकाओं पर समवर्ती कीमो-फोटो थर्मल आक्रमण शुरू करता है और प्रतिरक्षा कोशिकाओं को और अधिक सक्रिय करता है। नैनोथेरेप्यूटिक फाइब्रिन इम्प्लांट के संयोजन (iv-एनएमएस) ने नियंत्रण समूहों (i-ऑटोलॉगस इम्प्लांट, ii-कीमोथेरेप्यूटिक दवा और फोटोथर्मल एजेंट लोडेड फाइब्रिन इम्प्लांट का संयोजन और iii-इम्यूनोएडजुवेंट लोडेड फाइब्रिन इम्प्लांट) की तुलना में शल्य चिकित्सा के बाद ट्यूमर के पुनर्विकास को प्रभावी ढंग से कम किया, जिससे समग्र उत्तरजीविता में सुधार हुआ
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