राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन के तहत इस्पात क्षेत्र में पायलट परियोजनाओं का शुभारंभ

केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन अंतर्गत इस्पात उत्पादन में हाइड्रोजन के उपयोग के लिए तीन पायलट परियोजनाओं को मंजूरी दी है। इससे पहले नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय ने इस मिशन के तहत इस्पात क्षेत्र में पायलट परियोजनाओं के कार्यान्वयन के लिए दिशा-निर्देश जारी किए थे।

इस योजना का उद्देश्य पायलट परियोजनाओं के माध्यम से इस्पात निर्माण में हरित हाइड्रोजन के उपयोग के लिए उन्नत प्रौद्योगिकियों की पहचान करना था। ये पायलट परियोजनाएँ तकनीकी व्यवहार्यता एवं प्रदर्शन को मान्यता देते हुए तथा उनकी आर्थिक व्यवहार्यता का मूल्यांकन करते हुए हरित हाइड्रोजन-आधारित इस्पात निर्माण प्रक्रियाओं का सुरक्षित संचालन कर सकती हैं जिससे कम कार्बन वाले लौह और इस्पात का उत्पादन हो सके। इसी के अनुरूप तीन घटकों के लिए प्रस्ताव आमंत्रित किए गए थे (i) ऊर्ध्वाधर शाफ्ट का उपयोग करके 100 प्रतिशत हाइड्रोजन का उपयोग करके डीआरआई का उत्पादन करने के लिए पायलट परियोजना, (ii) कोयला/कोक की खपत को कम करने के लिए ब्लास्ट फर्नेस में हाइड्रोजन का उपयोग और (iii) ऊर्ध्वाधर शाफ्ट आधारित डीआरआई बनाने वाली इकाई में हाइड्रोजन का प्रयोग।

प्राप्त प्रस्तावों के मूल्यांकन के आधार पर नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय ने इस्पात क्षेत्र में कुल तीन पायलट परियोजनाओं को मंजूरी दी है  (ए) मैट्रिक्स गैस एंड रिन्यूएबल्स लिमिटेड (कंसोर्टियम के सदस्य: जेनसोल इंजीनियरिंग लिमिटेड, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान भुवनेश्वर, मेटसोल एबी, स्वीडन) जिसकी पायलट प्लांट क्षमता 50 टन प्रति दिन (टीपीडी) है, (बी) सिम्प्लेक्स कास्टिंग्स लिमिटेड (कंसोर्टियम के सदस्य: बीएसबीके प्राइवेट लिमिटेड, टेन एट इन्वेस्टमेंट, आईआईटी भिलाई) जिसकी पायलट प्लांट क्षमता 40 टीपीडी है और (सी) स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (रांची) जिसकी प्लांट क्षमता 3200 टीपीडी है।

इसमें केंद्र सरकार द्वारा उपलब्ध कराई जाने वाली कुल वित्तीय सहायता 347 करोड़ रुपए होगी। इन पायलट परियोजनाओं के अगले 3 वर्षों में शुरु होने की संभावना है जिससे भारत में ऐसी प्रौद्योगिकियों के विस्तार का मार्ग प्रशस्त होगा।

योजना के दिशानिर्देश देखने के लिए यहां क्लिक करें-

राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन वित्त वर्ष 2029-30 तक 19,744 करोड़ रुपए के बजट के साथ 04 जनवरी 2023 को शुरू किया गया था। यह स्वच्छ ऊर्जा के माध्यम से भारत के आत्मनिर्भर बनने के लक्ष्य में योगदान देगा और वैश्विक स्तर पर स्वच्छ ऊर्जा परिवर्तन के लिए प्रेरणा का काम करेगा। इस मिशन से अर्थव्यवस्था का डीकार्बोनाइजेशन होगा, जीवाश्म ईंधन के आयात पर निर्भरता कम होगी और भारत को हरित हाइड्रोजन में प्रौद्योगिकी और बाजार नेतृत्व संभालने में सक्षम बनाया जाएगा।

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