राजस्थान इंटरनेशनल सेंटर, जयपुर में अधिवक्ताओं के लिए आकाशवाणी पुस्तकालय के उद्घाटन समारोह में उपराष्ट्रपति के संबोधन का लिखित रुप (अंश)

राजस्थान हाई कोर्ट के माननीय मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एमएम श्रीवास्तव एक बेहद विलक्षण व्यक्तित्व हैं। क्या शुरुआत की है आपने, दिवाली का तोहफा अपने तरीके से दे दिया। महोदय, इस बार के सदस्य के रूप में, मैं आभारी हूं।माननीय जस्टिस इंदरजीत सिंह का काम करने का अपना तौर-तरीका है। मुझे अदालत में उनके समक्ष मिलने का अवसर नहीं मिला, लेकिन अदालत के बाहर, वह एक सज्जन व्यक्ति हैं।एडवोकेट पवन शर्मा और एडवोकेट राज कुमार शर्मा, वह क्या कहते हैं जय और वीरू, इनको सब नुस्खे पता है। आज के दिन मेरा आना बहुत मुश्किल था| मैं कर्नाटक में था दो दिन, IIT जोधपुर का कार्यक्रम था, गुवाहाटी में मेरा कार्यक्रम है, पर यह ऐसे व्यक्ति को लेकर आ गए। रमेश शर्मा जी का निर्णय पहले कर लिया था, मुझे तो मोहर ही लगानी पड़ी। बार काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष एडवोकेट भुवनेश शर्मा, मुझे बार काउंसिल ऑफ राजस्थान का सदस्य बनने का अवसर मिला है। एक नियम के कारण मैं अध्यक्ष नहीं बन सका और मैं बार काउंसिल ऑफ इंडिया का प्रतिनिधि नहीं बन सका। हाई कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष एडवोकेट प्रहलाद शर्मा जी, अगर वे मौजूद नहीं है तो उनकी अनुपस्थिति में मैं उनका अभिनंदन करता हूं।मेरे समय में मेट्रो-1, मेट्रो-2 जयपुर ज़िले में नहीं थे। मैं पुराने समय का व्यक्ति हूं, लेकिन ज़िला न्यायाधीशों, इस मौके पर मौजूद न्यायपालिका के सदस्यों से मैं कहना चाहता हूं कि मैं इस वक्त बेहद प्रभावित हूं।जब मैं देश का उपराष्ट्रपति बना, तो पहले ही हफ्ते में मुझे सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन ने आमंत्रित किया था। मैं काफी समय से उस बार का सदस्य रहा हूं। बल्कि वरिष्ठ अधिवक्ता नामित होने से कुछ समय पहले ही मैं उस बार का सदस्य बन गया। तो उस बार से मेरा संबंध लगभग तीन दशक या उससे अधिक का था। पर मैं तो आपका हूं और कहते हैं ना नाखून उंगलियों से अलग नहीं हो सकता।मुझे इस बार ने बनाया है। मेरा परम सौभाग्य था कि मैंने ऐसे अधिवक्ता के कार्यालय को अपनी कर्मभूमि बनाया। स्वर्गीय एन एल टिबरेवाल, जिनके बहुत ऊंचे नैतिक मानक थे। मैं कहूंगा कि यह अब तक का सबसे ऊंचा स्थान है। जब ईमानदारी की बात आती है तो बिल्कुल भी समझौता नहीं करना चाहिए। उनके दफ्तर से कोई खाली हाथ नहीं गया। जिस दिन बहस करते थे, मौके पर फीस की बात नहीं करते थे। बहस के बाद ही करते थे, यह उनका सिद्धांत था। उन्होंने पेशे के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को अपने बैंक बैलेंस से अधिक महत्व दिया और भगवान उनके प्रति बहुत दयालु थे। वह लंबे समय तक उच्च न्यायालय के न्यायाधीश नहीं रहे, शायद एक दशक तक रहे, लेकिन वह कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश बने, लगभग एक वर्ष तक कार्यवाहक राज्यपाल रहे। ऊपर वाला न्याय में कभी कमी नहीं रखता है।जो काम आज हुआ है, वह दोतरफा हैं, कुछ उनमें विरोधाभास है। मैंने आज से दो दशक पहले दिल्ली से दो ट्रक रवाना किए, वह मेरी लाइब्रेरी थी। साल 1940 में , अगर मैं गलत नहीं हूं तो, ऑल इंडिया रिपोर्टर सुधांशु जी मेरे पास थे। शुरू से क्रिमिनल लॉ जनरल थी, सुप्रीम कोर्ट के मामले थे 1669 से, लेबर लॉ जनरल थे बहुत सारे।उसके बाद मैं डिजिटलीकरण पर फोकस किया। मैंने अपने दफ्तर में मैंने कोई किताब नहीं रखी। हांलाकि तब टेक्नोलॉजी ज्यादा नहीं थी। आज के दिन टेक्नोलॉजी का आलम यह है, अगर हम कहें कि भारत एक-छठी जनसंख्या का घर हैं, वैश्विक डिजिटल लेनदेन का 5- प्रतिशत से ज्यादा लेनदेन हमारे देश में होता है। यदि आप इंटरनेट कंजंप्शन की बात करेंगे, तो एक भारतीय के लिए इंटरनेट कज़म्पशन की प्रति व्यक्ति डेटा खपत, चीन और अमेरिका दोनों को मिला दिया जाए, उसकी तुलना में भी अधिक है। हमारे यहां डिजिटल ट्रांजेक्शन तेज़ी से हो रहे हैं। अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी सभी के डिजिटल लेनदेन मिला दिए जाएं, फिर भी हमारे उनसे चार गुना है। ऐसे भारत में इसकी शुरुआत का बहुत बड़ा मतलब है। मैं बार के नेतृत्व और बार के सदस्यों को भी बधाई देता हूं।प्रौद्योगिकी को अपनाना अब विलासिता नहीं है, यह अब ज़रुरत नहीं, यह एकमात्र रास्ता है। आज के वक्त में नौजवान पीढ़ी इसका प्रयोग ज्यादा करती हैं। मेरी उम्र के लोग कम करेंगे। वे इस बात की सराहना करेंगे कि प्रौद्योगिकी का दायरा बढ़ गया है। एक नया इंडस्ट्रियल रिवॉल्यूशन आ गया है। हम आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, इंटरनेट ऑफ थिंग्स, मशीन लर्निंग, ब्लॉकचेन में बहुत बड़े बदलाव के मुहाने पर हैं। पहले अंग्रेजी के शब्द हुआ करते थे। हकीकत में जो उनका डाइमेंशन है बहुत दूर तक ले जाता है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आपकी बहुत मदद कर सकती है। बार के सदस्यों से मेरा अनुरोध है कि कार्य सत्र कराने चाहिए। ऐसे तकनीकी सत्र कराइए, जहां आपको इसके बारे में पता चले। जो समय आप इसमें लगाएंगे, आपको अंदाजा नहीं है कि आप आगे कितना समय बचा पाएंगे। आपकी गुणवत्ता बढ़ेगी और आपकी काबिलियत इसी चीज में है कि बदलाव के संकेतक बनो। जब यह सब कुछ अपने हाथ में है, उसको इस्तेमाल नहीं करना आपके खुद के साथ अन्याय होगा।इससे जो बहुत बड़ी क्रांति देश में आई है। लंबे समय से बड़ी मांग उठ रही थी कि अंग्रेजों के कानून को हम कब तक ढोते रहेंगे, कब तक बर्दाश्त करते रहेंगे, उनका कानून उनको बचाने के लिए था। दंड विधान से न्याय विधान तक की यात्रा हमें औपनिवेशिक मानसिकता और औपनिवेशिक विरासत से मुक्त करने वाली एक महत्वपूर्ण यात्रा है। जुलाई से ये बदलाव तो लागू हो गए हैं। यह युवा वकीलों के लिए एक वरदान है। अब आप भी इस यात्रा का हिस्सा बन सकते हैं।यदि अगर आप ऐसा करेंगे और इसमें तकनीक का इस्तेमाल करेंगे तो आपको बहुत फायदा मिलेगा। जब ये तीन कानून पारित हुए तो मुझे काउंसिल ऑफ स्टेट्स, हाउस ऑफ एल्डर्स, उच्च सदन की अध्यक्षता करने का सौभाग्य मिला। एक बहुत ही सशक्त समिति ने प्रत्येक प्रावधान की जांच की, सूक्ष्म स्तर पर उसका विश्लेषण किया। मैं आपको यही कह सकता हूं कि मैं तो अंदाजा नहीं लगा सकता था।

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