वन्य जीव सप्ताह 2 से 8 अक्टूबर 2024 |
फर्रुखाबाद। आज दिनांक 7 अक्टूबर को कृष्णा देवी बालिका पीजी कॉलेज में वाइल्डलाइफ वीक के उपलक्ष में एक सेमिनार का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की शुरुआत सरस्वती माता की पूजा और दीप प्रज्वलन से हुई, जिसके पश्चात देवी सरस्वती से आशीर्वाद प्राप्त किया गया। इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य पर्यावरणीय संतुलन और वन्य जीवों के महत्व को उजागर करना था।सेमिनार का शुभारंभ वनस्पति विज्ञान विभाग की प्रोफेसर डॉक्टर तहसीन फातिमा ने किया। उन्होंने ‘फॉरेस्ट एंड इट्स लाइवलीहुड’ और ‘वाइल्डलाइफ एंड इट्स इंपोर्टेंस’ पर छात्राओं को एक विस्तृत व्याख्यान दिया। उन्होंने बताया कि पारिस्थितिक संतुलन (Ecological Balance) को बनाए रखने के लिए फूड वेब और फूड चेन का सही संचालन कितना महत्वपूर्ण है। अगर इसमें कोई भी कड़ी टूटती है, तो इसका प्रभाव पूरे पारिस्थितिकी तंत्र पर पड़ सकता है। डॉक्टर तहसीन फातिमा ने बायोडायवर्सिटी को संरक्षित रखने के लिए राष्ट्रीय कानूनों और संस्थाओं जैसे कि वाइल्डलाइफ प्रोटक्शन एक्ट 1972 और नेशनल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड की स्थापना के बारे में भी बताया। उन्होंने यह भी बताया कि पर्यावरण प्रदूषण, मृदा प्रदूषण, प्लास्टिक प्रदूषण, ग्लोबल वार्मिंग, और ग्रीनहाउस इफेक्ट से होने वाले नुकसान से वातावरण को कैसे बचाया जा सकता है।
कार्यक्रम का दूसरा व्याख्यान जंतु विज्ञान विभाग की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. रूबी यादव ने प्रस्तुत किया। उन्होंने ‘वाइल्डलाइफ एंड इट्स इंट्रोडक्शन’ पर पावरपॉइंट प्रेजेंटेशन के माध्यम से छात्राओं को जानकारी दी। उन्होंने वाइल्डलाइफ के सकारात्मक और नकारात्मक पहलुओं पर चर्चा की, जिसमें फ्री लिविंग एनिमल्स, कैप्टिव एनिमल्स और फेरल एनिमल्स शामिल थे। उन्होंने वन्य जीवों के संरक्षण में पौराणिक और सांस्कृतिक महत्व के बारे में भी बताया। उदाहरणस्वरूप, सर्प को भगवान शंकर, मूषक और हाथी को भगवान गणेश, और गिद्ध को रामायण में दर्शाया गया है, जो दर्शाता है कि प्राचीन काल से ही जानवरों के संरक्षण पर ध्यान दिया गया है।
डॉ. यादव ने यह भी बताया कि कैसे मानव ने वन्य जीवों से प्रेरणा लेकर तकनीकी अविष्कार किए। चमगादड़ से प्रेरित होकर रडार का निर्माण हुआ, मछली से पनडुब्बी और किंगफिशर पक्षी से बुलेट ट्रेन का डिज़ाइन लिया गया। पक्षियों से विमान के निर्माण की प्रेरणा मिली। इसके अतिरिक्त, जंतुओं की माइग्रेशन प्रक्रिया से क्रॉस पोलिनेशन और बीजों के फैलाव में मदद मिलती है, जो पर्यावरण के लिए अत्यधिक उपयोगी है।
उन्होंने साइंटिफिक रिसर्च में मस्क डियर, टाइगर फैट, स्नेक वेनम और कबूतरों का उपयोग बताते हुए जंतुओं के वैज्ञानिक महत्व पर प्रकाश डाला। स्कैवेंजर्स जैसे गिद्ध और अन्य जीवों की भूमिका, जो श्वसन रोगों से मनुष्यों की रक्षा करते हैं, पर भी जानकारी दी। इसके साथ ही, पर्यटन उद्योग में राष्ट्रीय उद्यान और सेंचुरी जैसे संरक्षित क्षेत्रों का भारतीय अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान बताया। फिशिंग और प्रॉन कल्चर के माध्यम से भी आर्थिक लाभ के साथ पर्यावरण संरक्षण का महत्व बताया गया।
सेमिनार के अंत में कॉलेज की प्राचार्य डॉक्टर प्रेमलता श्रीवास्तव ने छात्राओं को संबोधित किया। उन्होंने छात्राओं को वन्य जीवों के साथ छेड़छाड़ न करने और उनके संरक्षण हेतु उठाए गए कदमों, जैसे वाइल्डलाइफ प्रोटक्शन एक्ट, पर जागरूक किया। उन्होंने वन्य जीवों और पर्यावरण संरक्षण के महत्व को समझाने पर जोर दिया और छात्राओं को इसके प्रति जिम्मेदारी निभाने के लिए प्रेरित किया।
इस सेमिनार ने छात्राओं को पर्यावरण और वन्यजीव संरक्षण के विभिन्न पहलुओं से परिचित कराते हुए एक महत्वपूर्ण संदेश दिया, जिसमें मानव और प्रकृति के बीच के संतुलन को बनाए रखने की आवश्यकता पर बल दिया गया।
Post a Comment