नईदिल्ली (पीआईबी)चिकित्सा उपकरण उद्योग को बढ़ावा देने के लिए, केंद्रीय रसायन एवं उर्वरक और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री श्री जगत प्रकाश नड्डा ने आज चिकित्सा उपकरण उद्योग को मजबूत करने के लिए योजना की शुरूआत की। इस अवसर पर केंद्रीय रसायन एवं उर्वरक राज्य मंत्री तथा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्य मंत्री श्रीमती अनुप्रिया पटेल और फार्मास्यूटिकल्स विभाग के सचिव श्री अरुणीश चावला के साथ-साथ विभाग के अधिकारी और उद्योग जगत के प्रतिनिधि भी उपस्थित थे।
यह एक समग्र योजना है, जो चिकित्सा उपकरण उद्योग के संवेदनशील क्षेत्रों को लक्षित करती है, जिनमें प्रमुख हिस्सों और सहायक उपकरणों का निर्माण, कौशल विकास, नैदानिक अध्ययन के लिए मदद,सामान्य बुनियादी ढांचे का विकास और उद्योग को बढ़ावा देना शामिल है।
केंद्रीय रसायन एवं उर्वरक मंत्री श्री जे.पी.नड्डा ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि यह योजना एक गेमचेंजर साबित होगी और इससे न केवल उद्योग जगत को मदद मिलेगी, बल्कि भारत को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में इससे एक लंबा फासला तय किया जा सकेगा। उन्होंने यह भी कहा, “ये कदम छोटे लग सकते हैं लेकिन इनके परिणाम बड़े होंगे। श्री नड्डा ने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ज़मीनी स्तर पर काम करने वाली सरकार है और पीएलआई योजना भी एक ऐसा कदम है, जिसने कई नए रास्ते खोले हैं। उन्होंने कहा कि "यह सिर्फ एक शुरुआत है"। श्री नड्डा ने इस पहल के लिए फार्मास्यूटिकल्स विभाग को बधाई दी और योजना की सफलता के लिए उद्योग जगत से समर्थन मांगा।
केंद्रीय रसायन और उर्वरक मंत्री ने उद्योग जगत से इस योजना का सही ढंग से उपयोग करने की अपील की और उद्योग जगत को सरकार की तरफ से हर तरह की मदद का आश्वासन दिया और कहा कि विभाग हर संभव सहायता प्रदान करने के लिए मौजूद है।
इस अवसर पर रसायन और उर्वरक राज्य मंत्री श्रीमती अनुप्रिया पटेल ने कहा, कि इस योजना से चिकित्सा उपकरणों के क्षेत्र को बढ़ावा मिलेगा। उन्होंने यह भी कहा कि “चिकित्सा उपकरण आज के वक्त में स्वास्थ्य सेवा उद्योग का एक महत्वपूर्ण स्तंभ बन गया है और हम उन्हें रोजमर्रा की जिंदगी में मौजूद पाते हैं। सभी इसके महत्व से अवगत है, क्योंकि इनकी मांग लगातार बढ़ रही है। सरकार इस उद्योग को बढ़ावा देने के लिए नीतियां और योजनाबद्ध समर्थन तैयार कर रही है।
चिकित्सा उपकरण, उद्योग स्वास्थ्य सेवा वितरण का एक ज़रुरी स्तंभ है।
डायग्नोस्टिक मशीनों से लेकर सर्जिकल उपकरणों तक,स्टेंट से लेकर प्रोस्थेटिक्स तक, चिकित्सा उपकरण बीमारियों की रोकथाम, निदान और उपचार सभी के लिए महत्वपूर्ण हैं। भारत का चिकित्सा उपकरण बाजार करीब 14 बिलियन डॉलर का है और वर्ष 2030 तक इसके 30 बिलियन डॉलर तक बढ़ने की उम्मीद है।
नई योजना का कुल परिव्यय 500 करोड़ रुपये है। इसमें पाँच उप-योजनाएँ शामिल हैं जो इस प्रकार हैं-
क्रमांक |
चिकित्सा उपकरण उद्योग को मजबूत करने की योजना |
परिव्यय(रुपए करोड़ में) |
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चिकित्सा उपकरण समूह के लिए सामान्य सुविधाएं |
110 |
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आयात निर्भरता कम करने के लिए सीमांत निवेश योजना |
180 |
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चिकित्सा उपकरणों के लिए क्षमता निर्माण और कौशल विकास |
100 |
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चिकित्सा उपकरण नैदानिक अध्ययन सहायता योजना |
100 |
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चिकित्सा उपकरण प्रोत्साहन योजना |
10 |
सरकारी समर्थन मिलने के बावजूद,भारत में चिकित्सा उपकरण विनिर्माण क्षेत्र को चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। इन प्राथमिक चुनौतियों में से एक बुनियादी ढांचे की कमी है। चिकित्सा उपकरण समूहों के लिए सामान्य सुविधाओं के लिए उप-योजना के माध्यम से, केंद्र सरकार समूह में स्थित निर्माताओं के लिए अनुसंधान एवं विकास प्रयोगशालाएं, डिजाइन और परीक्षण केंद्र, पशु प्रयोगशालाएं आदि जैसी सामान्य बुनियादी सुविधाएं बनाने के लिए चिकित्सा उपकरण समूहों को वित्तीय सहायता प्रदान करेगी। मौजूदा परीक्षण सुविधाओं को मजबूत करने या नई सुविधाएं स्थापित करने के लिए राष्ट्रीय/राज्य/निजी संस्थानों को सहायता प्रदान की जाएगी। सामान्य सुविधाओं के लिए 20 करोड़ रुपये तक का अनुदान तथा परीक्षण सुविधाओं के लिए 5 रुपए करोड़ तक के अनुदान का प्रावधान किया जाएगा।
सीमांत निवेश सहायता प्रदान करने वाली दूसरी उप-योजना देश के भीतर प्रमुख हिस्सों, कच्चे माल और सहायक उपकरण के विनिर्माण पर ध्यान केंद्रित करके, देश में मेडटेक आपूर्ति श्रृंखला को और वृहद करने के लिए डिज़ाइन की गई है। इस उप-योजना का मकसद आयातित हिस्सों पर निर्भरता को कम करना है। वर्तमान में, अधिकांश कच्चे माल और प्रमुख घटकों का आयात किया जाता है, जिससे भारतीय निर्माता, चिकित्सा उपकरण उत्पादन के लिए बाहरी आपूर्ति पर निर्भर हो जाते हैं। यह उप-योजना 10-20% की एकमुश्त पूंजी सब्सिडी प्रदान करती है, जिसकी अधिकतम सीमा प्रति परियोजना 10 करोड़ रुपये है।
तीसरी उप-योजना, चिकित्सा उपकरण क्षेत्र के लिए क्षमता निर्माण और कौशल विकास पर केंद्रित है। इसका लक्ष्य मेडटेक उत्पादों को डिजाइन और विकसित करने में सक्षम एक कुशल तकनीकी कार्यबल विकसित करना है। केंद्र सरकार विभिन्न परास्नातक और अल्पकालिक पाठ्यक्रम चलाने के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करेगी। उप-योजना के तहत केंद्र सरकार के संस्थानों में मास्टर पाठ्यक्रमों के लिए 21 करोड़ रुपये तक का समर्थन और अल्पकालिक पाठ्यक्रमों के लिए प्रति उम्मीदवार 10,000 रुपए तथा एनसीवीईटी अनुमोदित संस्थानों में डिप्लोमा पाठ्यक्रमों के लिए प्रति उम्मीदवार 25,000 रुपये मिलेंगे।
चौथी उप-योजना एक अग्रणी पहल है, जिसे स्थापित कंपनियों और स्टार्ट-अप दोनों को नैदानिक अध्ययन आयोजित करने में सहायता करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। यह योजना चिकित्सा उपकरण विकासकर्ताओं और निर्माताओं को पशु अध्ययन हेतु वित्तीय सहायता के लिए आवेदन करने और उसके सफल होने पर मेडटेक उत्पादों को मान्य करने के लिए मानव परीक्षणों के लिए आवेदन करने में सक्षम बनाती है। पशु अध्ययन के लिए 2.5 करोड़ रुपये तक की वित्तीय सहायता प्रदान की जाएगी। जांच उपकरणों की क्लिनिकल जांच और अनुमोदित उपकरणों पर पोस्ट-मार्केट क्लिनिकल फॉलो-अप के लिए, क्लिनिकल डेटा उत्पन्न करने हेतु अधिकतम 5 करोड़ रुपये उपलब्ध हैं। इसके अतिरिक्त, नए इन-विट्रो डायग्नोस्टिक उत्पादों के नैदानिक प्रदर्शन मूल्यांकन के लिए 1 करोड़ रुपये तक दिए जा सकते हैं। इस उप-योजना से नैदानिक अध्ययनों में मदद की लंबे समय से चली आ रही ज़रुरत को संबोधित करके उद्योग जगत को बड़ा लाभ होने की उम्मीद है। यह भारत में उत्पादित चिकित्सा उपकरणों की सुरक्षा और उनके प्रभाव को बढ़ावा देगा और भारतीय निर्माताओं को अंतरराष्ट्रीय बाजारों में उत्पादों का पंजीकरण प्राप्त करने में भी मदद करेगा।
अंतिम उप-योजना का मकसद चिकित्सा उपकरणों से संबंधित गतिविधियों को बढ़ावा देने वाले सम्मेलनों और अन्य कार्यक्रमों को आयोजित करने के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करके उद्योग संघों और निर्यात परिषदों की मदद करना है। यह सर्वेक्षण और अध्ययन के संचालन में भी सहायता करेगा।
भारतीय चिकित्सा उपकरण उद्योग का भविष्य बेहद आशाजनक है। भारतीय कंपनियां पहले से ही अपने अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धियों की तुलना में बेहद कम लागत पर आगे बढ़ रही हैं और नए समाधान दे रही हैं। भारत सरकार देश के भीतर उच्च गुणवत्ता वाले चिकित्सा उपकरणों के विकास के लिए अनुकूल वातावरण बनाने के लिए सक्रिय रूप से काम कर रही है।
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