वन रैंक वन पेंशन को आज ही के दिन देश में लागू किया गया था। यह सही मायनों में हमारे भूतपूर्व सैनिकों और पूर्व-सैन्य कर्मियों के साहस एवं बलिदान के सम्मान में दी गई एक श्रद्धांजलि थी, जो अपने राष्ट्र की रक्षा के लिए अपना जीवन न्यौछावर करते हैं। वन रैंक वन पेंशन-ओआरओपी को लागू करने का निर्णय लंबे समय से चली आ रही मांग को पूरा करने और अपने सैनिकों के प्रति राष्ट्र की कृतज्ञता प्रकट करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था।
-प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी
भारत सरकार ने पेंशन भत्तों में लंबे समय से चली आ रही असमानताओं को दूर करने के उद्देश्य से एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए वन रैंक वन पेंशन (ओआरओपी) योजना शुरू की, यह एक ऐसा निर्णय है जो अपने सेवानिवृत्त होने सैन्य कर्मियों के जीवन में महत्वपूर्ण बदलाव ला रहा है। सेवानिवृत्त सैनिकों ने वर्षों तक न केवल युद्ध के मैदान में लड़ाई लड़ी थी, बल्कि अपनी सेवा देने के बाद के जीवन में भी समान अधिकार के लिए संघर्ष किया, विशेषकर जब पेंशन में मिलने वाले लाभ की बात आई। केंद्र सरकार ने वन रैंक वन पेंशन की शुरुआत के साथ ही यह सुनिश्चित करने के लिए एक साहसिक कदम उठाया कि जिन सैनिकों ने अटूट समर्पण के साथ देश की सेवा की है, उनके साथ उचित व्यवहार किया जाएगा।
इस पहल ने उन सिपाहियों के बलिदान एवं सेवा का सम्मान करने की एक महत्वपूर्ण प्रतिबद्धता को व्यक्त किया, जिन्होंने देश की रक्षा की थी। इस शुरुआत ने पूर्व सैनिकों को वह सम्मान और वित्तीय सुरक्षा देने का वादा किया था, जिसके वे हकदार थे।
अब वन रैंक वन पेंशन योजना वर्ष 2024 में अपने 10 साल पूरे कर रही है, ऐसे में इस योजना से सशस्त्र बल समुदाय को होने वाले तमाम फायदों पर विचार करना आवश्यक है। इस पहल ने न केवल वर्तमान और पूर्व सेवानिवृत्त सैनिकों के बीच पेंशन के अंतर को पाट दिया है, बल्कि अपने भूतपूर्व सैनिकों के कल्याण हेतु देश के समर्पण को भी विस्तारित किया है। ओआरओपी ने पेंशन लाभों में समानता और निष्पक्षता लाकर भारत सरकार तथा देश के सैन्य कर्मियों के बीच संबंधों को सशक्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
वन रैंक वन पेंशन योजना की शुरूआत लाखों पूर्व सैनिकों और उनके परिवारों के लिए परिवर्तनकारी साबित हुई है, जिससे यह सुनिश्चित हुआ है कि सेवानिवृत्ति के बाद के पूरे जीवन में सैन्य कर्मियों के साथ सम्मान के साथ व्यवहार किया जाएगा।
वन रैंक वन पेंशन का अवलोकन
इसके मूल में जाकर देखें तो वन रैंक वन पेंशन (ओआरओपी) एक सरल लेकिन गहन विचार है: समान रैंक और समान सेवा अवधि के साथ सेवानिवृत्त होने वाले सैन्य कार्मिकों को उनकी सेवानिवृत्ति की तिथि की परवाह किए बिना समान पेंशन मिलनी चाहिए। यह सिद्धांत मुद्रास्फीति, वेतनमान में परिवर्तन और समय के साथ सेवा शर्तों की बदलती प्रकृति के कारण पूर्व सैनिकों के समक्ष पेंशन लाभों में आने वाली असमानता को दूर करता है।
यह योजना वर्तमान और सेवानिवृत्त कर्मियों के बीच पेंशन अंतर को समय-समय पर पाटना सुनिश्चित करके पूर्व सैनिकों तथा उनके परिवारों को सीधे लाभ पहुंचाती है। साल 2014 में वन रैंक वन पेंशन का सफल कार्यान्वयन न केवल एक नीतिगत बदलाव था, बल्कि देश की सेवा करने वालों के प्रति सरकार की कृतज्ञता व सम्मान प्रकट करने का एक महत्वपूर्ण माध्यम भी था।
वन रैंक वन पेंशन योजना की मुख्य विशेषताएं
सरकार द्वारा 7 नवंबर, 2015 को जारी किये गए आदेश ने सभी सेवानिवृत्त रक्षा कर्मियों के लिए एक समान पेंशन प्रणाली लागू की गई, जिससे यह सुनिश्चित हुआ कि समान रैंक और समान सेवा अवधि के साथ समान पेंशन लाभ मिलेगा। इस नीति के प्राथमिक तत्वों में शामिल हैं:
- पेंशन का पुनर्निर्धारण: सभी पूर्व पेंशनभोगियों की पेंशन 2013 में सेवानिवृत्त हुए कार्मिकों की पेंशन के आधार पर 1 जुलाई 2014 से पुनः निर्धारित की गई है। इससे पेंशन के लिए एक नया मानक स्थापित हुआ, जिसमें सभी सेवानिवृत्त हुए सैनिकों को उनकी सेवा के लिए समान लाभ मिलेगा।
- आवधिक संशोधन: पेंशन को हर पांच साल में पुनः निर्धारित किया जाएगा, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि यह वेतन और पेंशन संरचना में परिवर्तन को प्रतिबिंबित करती रहे।
- बकाया भुगतान: पेंशन की बकाया राशि का भुगतान समान अर्ध-वार्षिक किश्तों में किया जाना था, हालांकि पारिवारिक पेंशनभोगियों और वीरता पुरस्कार विजेताओं के लिए बकाया राशि का भुगतान एक ही किश्त में किया गया।
- औसत से अधिक पेंशन की सुरक्षा: औसत से अधिक पेंशन पाने वाले कार्मिकों की पेंशन सुरक्षित रखी जाती है, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि वे ओआरओपी के लाभ से वंचित न हो जाएं।
- सभी पूर्व सैनिकों का समावेशन: यह आदेश 30 जून, 2014 तक सेवानिवृत्त हुए सभी कार्मिकों हेतु लागू था और इसमें पारिवारिक पेंशनभोगियों सहित सभी रैंकों के लिए पेंशन संशोधन के उद्देश्य से एक सशक्त ढांचा प्रदान किया गया था।
लंबे समय से चली आ रही मांग को पूरा करना
वन रैंक वन पेंशन (ओआरओपी) की मांग लंबे समय से चला आ रहा एक मुद्दा था, जो 40 वर्षों से अधिक समय से लंबित रहा था। कई सरकारी समितियों और आयोगों ने इस मामले में कार्य किया था, लेकिन हर बार मुख्य रूप से वित्तीय बाधाओं व प्रशासनिक जटिलताओं के कारण प्रस्ताव को खारिज कर दिया जाता था। तीसरा केंद्रीय वेतन आयोग इस मुद्दे पर पहला ऐसा आयोग था, जिसने मामले को गंभीरता से समझा तथा पेंशन के लिए अर्हकारी सेवा में महत्व की सिफारिश की। इन वर्षों में, केपी सिंह देव समिति (1984) और शरद पवार समिति (1991) जैसे समूहों ने भी इस मामले का अध्ययन किया, लेकिन ये भी कोई निश्चित समाधान पेश करने में विफल रहे। इन असफलताओं के बावजूद, मांग लगातार बनी रही और रक्षा संबंधी स्थायी समिति तथा अन्य मंचों पर इसके कार्यान्वयन की वकालत जारी रही।
16वीं लोकसभा के आते-आते और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में सरकार ने पूर्व सैनिकों की मांगों का सम्मान करने का निर्णय लिया। साल 2014 के बजट में इस योजना के कार्यान्वयन के लिए 1,000 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे और फिर व्यापक विचार-विमर्श के बाद सरकारी आदेश 7 नवंबर, 2015 को पारित हो गया था, जिसके अंतर्गत 30 जून, 2014 तक सेवानिवृत्त हुए सभी सैन्य कर्मियों को शामिल किया गया था।
पूर्व सैनिकों और उनके परिवारों पर योजना का प्रभाव
ओआरओपी योजना से 25 लाख से अधिक भूतपूर्व सैनिकों और उनके परिवारों को लाभ मिला है, जिससे भूतपूर्व सैनिक समुदाय को अत्यंत आवश्यक वित्तीय सुरक्षा प्राप्त हुई है। इस योजना से न केवल सेवानिवृत्त सैन्य कर्मियों के जीवन स्तर में सुधार हुआ है, बल्कि राष्ट्र के प्रति उनकी सेवा का सम्मान भी सुनिश्चित हुआ है। कई भूतपूर्व रक्षा कर्मियों के लिए यह उनके योगदान की लंबे समय से प्रतीक्षित मान्यता थी, जो उनके बलिदान और सेवानिवृत्ति के बाद प्राप्त पुरस्कारों के बीच की खाई को पाटती थी।
ओआरओपी का आवश्यक रूप सामाजिक एवं भावनात्मक महत्व भी है। इसने भारत सरकार और इसके सैन्य कर्मियों के बीच सशक्त संबंध स्थापित करने में अपना योगदान दिया है, जो देश की संप्रभुता की रक्षा एवं सेवा करने वाले लोगों के प्रति राष्ट्र की वचनबद्धता को दर्शाता है। सैनिकों के ऐसे परिवारों के लिए जिनमें से तो कई अपने प्रियजनों के बलिदान के साथ जी रहे हैं, यह नीति पूर्णता और स्वीकृति की भावना लेकर आई है।
योजना का भविष्य : ओआरओपी की निरंतर प्रासंगिकता
एक दशक पहले जिस तरह से आज के ही दिन ओआरओपी को लागू किया गया था, तो रक्षा बलों के लिए इस नीति के निरंतर महत्व को समझना महत्वपूर्ण है। जैसा कि स्वयं प्रधानमंत्री मोदी ने जोर देते हुए कहा है कि ओआरओपी योजना केवल पेंशन से ही संबंधित नहीं है, बल्कि यह सशस्त्र बलों को मजबूत करने और राष्ट्र की निस्वार्थ सेवा करने वालों के कल्याण को बढ़ाने के लिए सरकार की प्रतिबद्धता की पुष्टि भी है।
हर पांच साल में पेंशन का पुनर्निर्धारण यह सुनिश्चित करता है कि यह योजना पूर्व सैनिकों और उनके परिवारों की बढ़ती आवश्यकताओं के अनुकूल बनी रहे। यह देश के सैन्य कर्मियों की चिंताओं को दूर करने के लिए सरकार के समर्पण का एक शक्तिशाली हस्ताक्षर भी है, जिनमें से कई भारत की सीमाओं तथा हितों की रक्षा में सबसे आगे हैं।
निष्कर्ष में यह कहा जा सकता है कि जब हम वन रैंक वन पेंशन के प्रभाव पर विचार करते हैं, तो यह स्पष्ट हो जाता है कि इस नीति ने भारत के भूतपूर्व रक्षाकर्मियों को बहुत आवश्यक लाभ और सम्मान प्रदान किया है। निरंतर परिशोधन व आवधिक संशोधनों के साथ वन रैंक वन पेंशन-ओआरओपी योजना अपने सशस्त्र बलों के लिए देश के समर्थन की आधारशिला बने रहने का वादा करती है और यह सुनिश्चित करती है कि भारत की संप्रभुता की रक्षा करने वाले सैन्य नायकों को उनकी सेवानिवृत्ति के बाद भी सम्मानित किया जाता है तथा उनकी देखभाल की जाती है।
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