जीवन की चौसर
जीवन की चौसर पर हमने राजाओ को झुकते देखा।
झूठे छोटे प्यादों के आगे बड़े वजीरों को पिटते देखा।।
सच का घोड़ा जो इतराता था अपनी सच्ची ढाई चाल पर,
आड़ी टेढ़ी झूठी चाल चलने वाले कुबड़े ऊँट से पिटते देखा।
माना सच्चाई थी भारी भरकम,जैसे हो चौसर का हाथी,
क्या करेगा हाथी भी,जब झूठे प्यादों के हो बहुत से साथी।
एक किनारे खड़ा देख रहा राजा अपनी सेना के हश्र को,
उसने अपनी सच की सेना को काले सफेद फर्श पर ढहते देखा।
नीरज त्यागी ग़ाज़ियाबाद ( उत्तर प्रदेश ).
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