दलबदल या बेदल ( व्यंग)

दलबदल या बेदल ( व्यंग)


 


           आज की वर्तमान राजनीती में दल बदलने की राजनीती] राजनितिक योद्धाओ के लिए ब्रम्हास्त का काम कर रही है। जो भी योद्धा अपने आप को कमजोर स्थिति में देखते हैं वो तुरंत ही अपनी जेब में हाथ डालते हैं] ब्रम्हास्त निकालते हैं] और फेंक देते हैं। अपने आप को मजबूत स्थिति में लाने का प्रयास करते है] जिसमें वो काफी हद तक सफल भी होते हैं।


आज पार्टी बदलने का यह काम भारतीय राजनीती के लिए अभिशाप के सामान है] जो रजनीति को निम्न से निम्नतम स्तर पर ले जा रही है। पार्टी के नेता अपने फायदे के लिए अपने ही पार्टी को] जिसने इन्हे धूल से फूल तक पहुंचाया। उसी को धोखा देने से नहीं चूकते हैं। धोखा तो सही है फिर पार्टी बदलने के बाद छोड़ी हुई पार्टी को खूब बुरा भला सुनते हैं वही दूसरी पार्टी इन्हे अपने आप में शामिल कर खुद को भी गन्दा करने से नहीं चुकती है।


आज की राजनीति में दल बदलू भी कई प्रकार के होते हैं कुछ तो मास्टर दलबदलू जोकि हर साल या यूं कि हर चुनाव में अपना दल बदल लेते हैं। कुछ जूनियर दल बदलू होते हैं जोकि हर दूसरे या तीसरे पंचवर्षीय में अपना दल बदलते हैं। और कुछ तो बिन पेंदी के लोटे के समान फ्रेशर्स दल बदलू  होते हैं जो आज तो इस पार्टी में रहेंगे और कल सुबह पार्टी में चले जाएंगे भाई पार्टी बदलने से पद बढ़ जाता है और दूसरा पार्टी के टिकट की आसार भी बढ़ जाते हैं।


आज की राजनीति में दल बदलने के कारण भी बहुत मजेदार होते हैं कुछ नेताओं को तो उस पार्टी के नेताओं की इत्र की खुशबू से परेशानी होती है। तो कुछ को तो अमुक पार्टी की कार्यशैली से समस्या होती है। और कुछ तो उसके झंडे से परेशान हैं। और कुछ तो रैलियों में पढ़ने वाले डंडे से परेशान है। पर इस सबकी निजात एक ही है इस तालाब से कूदकर उस तालाब में चले जाओ। दलबदलू की  एक चीज देखने लायक है और वह है मौका।  जो दल बदलू होते हैं वह मौके ढूंढने में बहुत ही माहिर होते हैं ये उस मौके का बखूबी उपयोग भी करते हैं इनको यह पता होता है कि चुनाव के कितने दिन कितने घंटे पहले पार्टी बदलनी हैं। और चुनाव के कितने दिन बाद पार्टी बदलनी है किस नक्षत्र में] किस ग्रह में] किस महीने में यह सभी चीजें दलबदलू की लगभग फिक्स ही होती हैं।


दल बदल की राजनीति को रोकने के लिए पार्टियों को ऐसे नेताओं को बाय काट करना चाहिए और किसी भी पार्टी में इन जैसे नेताओं को जगह नहीं दी जानी चाहिए। ऐसे नेताओं को चुनाव लड़ने पर रोक एवं राजनीतिक गतिविधियों से दूर रखना ही उचित है। ऐसे ही कुछ नेताओं की वजह से पूरी भारतीय राजनीति का नाम खराब हो रहा है ऐसे नेता जो थोड़ी सी लालच के लिए उन्हें सवार ने वाली पार्टी को ही धोखा दे सकती हैं तो भी जनमानस की सेवा क्या करेंगे। यह नेता अपने स्वार्थ सिद्धि के सिवा और कुछ नहीं कर सकते।


अभी पिछले कुछ वर्षों में दल बदलने वाले नेताओं की बाढ़ सी आ गई है] ये कुछ पैसे] तो कभी-कभी पद या मंत्री पद के लालच में स्वयं की इज्जत  एवं पद की गरिमा को भी लुटाने से नहीं हिचकते हैं। यह नेता राजनीतिक गलियारों के लिए सर्वथा अयोग्य हैं ] और अनावश्यक भी। दल बदलू के लिए भी सख्त कानून होना चाहिए ताकि यह अपने स्वार्थ के लिए सरकार को प्रभावित ना कर सके।


 


आनंद पी द्विवेदी


युवा लेखक एवं साहित्यकार


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