अफवाहों का लॉक डाउन 



अंकित सिंह "खड्गधारी "


अफवाहों का लॉक डाउन 

एक तरफ सोशल मीडिया जहाँ लोगो के अपने विचार दुनिया के सामने रखने का एक फ्री प्लेटफार्म है वही यह आज के भाग दौड़ भरे समय में एक दूसरे से जुड़ने का माध्यम है ,आज यदि यात्रा के लिए सब से तेज साधन हवाई जहाज है तो खबरे वायरल करने का जरिया सोशल मीडिया है 
और कई बार तो ऐसा होता है कि सोशल मीडिया के आगे हमारी मीडिया भी पीछे नज़र आने लगती है और कई बार सोशल मीडियल में फैली अफवाहों के जरिये सरकार और प्रशासन के नाक में भी दम हो जाता है और इन दिनों कुछ ऐसा ही हुआ भी , जब से प्रधानमंत्री जी ने नोबेल कोरोना वारयस से बचने के लिए देश को इक्कीस दिनों के लिए लॉक डाउन करने के निर्देश दिए ,तभी समाज का निम्न वर्ग रात दिन परेशान रहा कि यदि बंदी हो गयी तो फिर उनकी रोजी रोटी की भी बंदी ही हो जानी है ऐसे में उन्हें तत्काल वर्तमान जरुरत के बारे में सोचना पड़ता है और जैसे ही लोगो ने इक्कीस दिनों के लॉक डाउन के बारे में सुना वे बस दौड़ पड़े अपनी रोजी के जुगाड़ में कि कहाँ और कैसे कितने दिन का राशन जमा कर लिया जाए और जो राशन जमा नहीं कर सके उनके सामने एक ही रास्ता था कि अब अपने घर को लौटा जाए क्यूंकि अगर रोजगार नहीं तो काम नहीं और काम नहीं तो पैसा नहीं ,लेकिन अभी प्रधानमंत्री की घोषणा को एक दो दिन ही बीते थे कि सभी राज्य सरकारों ने समाज के इस वर्ग को सुरक्षा देने के लिए उनके खाने पिने और रहने के सब इंतज़ाम उसी जगह  में कर दिए जहाँ वे रह रहे है लेकिन इसी बीच सोशल मीडिया में गलत अफवाह वायरल हुए जिसके चलते हालात बेकाबू होते चले गए लोग अपने काम के आवास को छोड़कर अपने घर जाने को इक्कट्ठा होने लगे और सड़को पर लोगो का जमावड़ा लग गया 
और ये अफवाह थी कि ये बंदी सिर्फ इक्कीस दिनों के लिए नहीं है अपितु ये कई महीने चलने वाली है और इसी के चलते लोग फिर अपना सब्र खो बैठे ,उन्हें अब सिर्फ अपना घर दिखाई दे रहा था लिहाजा कोई रिक्शा ,कोई ऑटो ,कोई दुग्ध वहां ,तो कोई पैदल ही अपने गाँवों की ओर भागने लगे और नतीजा ये हुआ कि शहर से लेकर गाँव तक लॉक डाउन पूरी तरह फेल जैसा नजर आने लगा ,बस अड्डों पर लोगो का हुजूम उमड़ पड़ा 
बसे भर भर कर रवाना होती रही 
और जब सरकार ने देखा कि यह स्थिति संभलने का नाम नहीं ले रही तो फिर देशव्यापी लॉकडाउन को 21 दिनों से आगे बढ़ाने की आधारहीन खबरों का खंडन करने के लिए जिस तरह कैबिनेट सचिव को आगे आना पड़ा उससे यह भी पता चल रहा कि केंद्रीय सत्ता को अफवाहों से भी निपटने की जरूरत पड़ रही है। जब हर दिन हालात बदल रहे हैं और उनके हिसाब से कदम भी उठाने पड़ रहे हैं तब फिर ऐसी अटकलबाजी का कोई मतलब नहीं कि लॉकडाउन को 14 अप्रैल के बाद भी जारी रखने की तैयारी की जा रही है। यह अटकलबाजी एक तरह की शरारत ही है। और सरकार ने इस अफवाह को पूरी तरह से दूर कर दिया है लेकिन फिर भी हम लोगो से यही कहेंगे कि जब तक कोई बात पूरी तरह से सच और जानकारी में  न हो तब तक उस बात या फिर उस मुद्दे को आगे न भेजे और इन भयंकर अफवाहों से बचे जिनसे बेवजह भोलेभाले लोग परेशान हो जाते है और देशहित को भूलकर अपने प्राणो को बचाने के लिए दौड़ पड़ते है और वास्तव में उनकी जान को खतरा हो या फिर न हो 
इसीलिए सावधान रहे सचेत रहे और सरकारी आदेश को ही सही माने न कि इन आधारहीन अफवाहों को 


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