सत्ता का  संरक्षण


सत्ता का  संरक्षण



अंकित सिंह "खड्गधारी "
कानपुर देहात के चौबेपुर के बिकरू गांव में मुठभेड़ के दौरान सीओ समेत आठ पुलिस कर्मियों के शहीद होने की घटना ने न सिर्फ पूरे देश को झकझोर दिया है बल्कि ये सोचने पर भी मजबूर कर दिया है ,कि ये किस प्रकार राजनीति है जिसने ,विकास दुबे जैसे आपराधिक प्रवृति के व्यक्ति को इतने दिनों तक कानून के शिकंजे से बचाये रखा,और पुलिस का क्षमता और कार्यवही पर भी कई गंभीर सवाल उठते है कि क्या उन्होंने ताबिश देने से पहले क्या कोई खास जानकारी की थी या फिर नहीं ,या फिर उन्हें जिस भी जगह से जानकारी मिली सही नहीं मिली ,क्यूकी पुलिस के मुठभेड़ तो यही इशारा करती है कि पुलिस विकास दुबे के पास नहीं गयी थी बल्कि वह खुद तैयारी के साथ पुलिस का इंतज़ार कर रहा था , और जैसे ही पुलिस वहां आयी उसने ज़हर उगला और हमारे 08 जवान मृत्यु को प्राप्त हो गए फिलहाल विकास दुबे की तलाश में एक सघन तलाशी अभियान शुरू कर दिया है  घटना स्थल पर एक यूपी पुलिस के आलाधिकारी और फॉरेंसिंक टीम भी मौजूद है और साथ ही वहां पर एसटीएफ भी तैनात कर दी गई है. बात करें हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे की तो उसका एक लंबा आपराधिक इतिहास है. साल 2001 में उसके खिलाफ बीजेपी नेता की हत्या का भी मामला दर्ज हुआ था लेकिन इस मामले में उसको सजा नहीं हो पाई थी. भारतीय राजनीति में अपराधियों और नेताओं का गठजोड़ कोई नई बात नहीं है. विकास  दुबे 90 के दशक में जब इलाके में एक छोटा-मोटा बदमाश हुआ करता था तो पुलिस उसे अक्सर मारपीट के मामले में पकड़कर ले जाती थी. लेकिन उसे छुड़वाने के लिए स्थानीय रसूखदार नेता विधायक और सांसदों तक के फोन आने लगते थे. विकास दुबे को सत्ता का संरक्षण भी मिला और वह एक बार जिला पंचायत सदस्य भी चुना जा चुका था. उसके घर के लोग तीन गांव में प्रधान भी बन चुके हैं. अगर कुछ मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो विकास दुबे ऊपर कैबिनेट मंत्रियों तक का हाथ थाकानपुर के जिस इलाकों से  विकास दुबे का रिश्ता था. दरअसल वह ब्राह्मण बहुल इलाका है लेकिन यहां की राजनीति में पिछड़ी जातियों को नेता भी हावी थे. इस हनक को कम करने के लिए नेताओं ने विकास दुबे का इस्तेमाल किया. उधर विकास की नजर इलाके में बढ़ती जमीन की कीमतों और वसूली पर था. फिर क्या था यहीं से शुरू सत्ता के संरक्षण में विकास दुबे के आतंक की शुरुआत हुई.  हालांकि बाद में उसका नाम कई ऐसे मामलों में सामने आया जिसमें निशाने पर अगड़ी जाति के भी नेता थे. दरअसल तब तक विकास दुबे का आतंक बढ़ गया था और कई नेता जिनसे विकास दुबे की पटरी नहीं खाती थी वो उसके निशाने पर आ गए थे क्योंकि उस समय इलाके में जमीनों की कीमत बढ़ने लगी थी.और जब जब ज़मीन के दाम बढ़ते है तो फिर उस पर राजनीति होना तो लाज़मी है और इसी बढ़ी राजनीति की कुछ खिचड़ी पकी और उसकी का नतीजा सभी पुलिस वालो को झेलना पड़ गया
 फिलहाल मौजूदा सरकार की ओर से एक सख्त आदेश जारी हुआ जो साफ़ दर्शता है सरकार की मंशा स्पष्ट है कि वे ऐसे लोगो को अब नहीं बख्शेगी और यही होना चाहिए क्यूंकि  मौजूदा प्रदेश राजनीति की राजनीति जनसेवा के मार्ग से भटकर कहीं बाहुबलियों के हाथ में न चली जाए ऐसे ये बहुत जरुरी है इस मामले को बहुत ही गंभीरता से लिया जाए और जल्दी से जल्दी इस विषय के परिणाम सभी के सामने आये 


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