महत्वाकांक्षी


 

विजयकांत मिश्रा

मेरा पोता पाचँवी कक्षा मेँ था।मैँ ही उसे समय समय पर पढ़ाता था।मुझे उस पर पूर्ण विश्वास था कि वह अपनी क्लास मेँ टाप पर रहेगा। मैँ उसके प्रति बहुत महत्वाकांक्षी था। जिस दिन रिजल्ट आया मैँ भी उसके साथ रिजल्ट लेने गया।
उसके नबँर तो अच्छे आये थे कितुँ वह क्लास मेँ तीसरे स्थान पर आया था।मैने उसे क्लास मेँ ही डाटँना आरभँ कर दिया।वो भी क्लास मेँ ही रोने लगा।
उसकी क्लास टीचर ओर  दूसरे साथी भी हमेँ घेर कर खड़े हो गए।
सभी साथी उसे समझाने लगे।  क्लास टीचर ने उसे भी उसे समझाया कि रोए नहीँ। वो मुझसे बोलीँ कि आप इसके दादु हेँ तो मैँ भी इनकी क्लास टीचर हूँ।जो पहले ओर दूसरे स्थान पर आए हेँ।उनके मात्र दो यह तीन नबँर ही ज्यादा हेँ।ये सभी क्लास मेँ साथ ही बेठते हे
आप स्वयँ ही पोते हेतु इतने महत्वाकांक्षी हे कि आपको इसके दूसरे साथी अच्छे ही नहीँ लग रहे  हेँ।आप इस बालक के प्रति अपनी  महत्वाकांक्षा कम कीजिये।।इसमेँ पढ़ाई की जितनी  क्षमता हे,उसने पढ़ा भी हे।उसकी क्षमता पर पर उगँली मत उठाइये। उसने मुझे समझाया कि उपरोक्त के बारे घर जाकर   आराम से सोचेँ।मुझे भी भान होरहा था कि कि कभी भी अपनी महत्वाकांक्षा अपने पोते पर नहीँ लागु करना चाहिए।आजकल तो अधिकांश माता पिता का यह हाल हे कि प्राय: बच्चों हेतु ज्यादा महत्वाकांक्षी होते हेँ,उन्हें बच्चों की क्षमता की परवाह ही नहीँ होती हे।जब बच्चे माता पिता की महत्वाकांक्षा पूर्ण नहीँ कर पाते हेँ तो फिर वो गलत कदम उठा लेते हेँ।

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