फिल्म पाताल-ती के निर्माता और निर्देशक मुकुंद नारायण ने गोवा में 53वें भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव के ‘इफ्फी टेबल टॉक्स’ सत्र को संबोधित किया। श्री मुकुंद नारायण ने कहा, "पाताल-ती मनुष्य बनाम प्रकृति और पर्यावरण से जुड़े संकट की कहानी है जो प्रकृति को नष्ट कर रहे हैं।" उन्होंने कहा कि यह फिल्म लोक-कथाओं की समृद्ध विरासत के इर्द-गिर्द घूमती है, जो हमारे देश में पीढ़ी-दर-पीढ़ी मौखिक तौर पर बताई जाती है और यह एक बच्चे के आने वाले भविष्य की कहानी है।
श्री मुकुंद नारायण ने कहा कि पाताल-ती भोटिया जैसी स्वदेशी भाषाओं की चुनौतियों पर भी प्रकाश डालती है जो विभिन्न सामाजिक दबावों के कारण लुप्तप्राय और गायब होती जा रही है।
फिल्म पर आगे बात करते हुए, सह-निर्देशक संतोष सिंह ने कहा कि फिल्म भोटिया जनजातियों पर आधारित है। निदेशक ने कहा, "हमने पर्यावरण संबंधी बातचीत के लिए पानी का एक रूपक के रूप में उपयोग किया है।" श्री संतोष सिंह ने कहा कि एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को मौखिक रूप से सुनाई जाने वाली लोक-कथाएं बाल नायक को पवित्र जल की खोज के दौरान जीवन, मृत्यु और इसके अन्य संदर्भों को समझने में मदद करती हैं। उन्होंने लोक कथाओं को समाज का विचार-विमर्श बताते हुए उनकी महत्ता पर बल देते हुए कहा कि वे हमारी संस्कृति की जड़ों की जानकारी प्रदान करती हैं।
निर्माण प्रक्रिया के बारे में मुकुंद नारायण ने कहा, “हम स्वतंत्र निर्माताओं के लिए बजट की समस्या होने के बावजूद पाताल-ती के माध्यम से भोटिया जनजातियों की कहानी बताना चाहते थे। रेसुल पुकुट्टी सहित बॉलीवुड के कई लोगों ने पोस्ट प्रोडक्शन में हमारी मदद की। हम उन सभी के आभारी हैं।"
सह-निर्देशक संतोष सिंह भारतीय भाषाओं की फिल्मों के भविष्य पर बोलते हुए, यह भी कहा कि हम एक ऐसे युग में प्रवेश कर रहे हैं जहां 'क्षेत्रीय' 'नया वैश्विक' बन गया है। “आज भारत की क्षेत्रीय फिल्में दुनिया में छा रही हैं, चाहे वह कांतारा हो या वाग्रो या फ्रेम। क्षेत्रीय फिल्म अब नई वैश्विक फिल्म बन गई है क्योंकि लोग पात्रों से जुड़ पा रहे हैं।"
फिल्म के बारे में
निर्देशक: मुकुंद नारायण और संतोष सिंह
निर्माता: मुकुंद नारायण और संतोष सिंह
पटकथा: मुकुंद नारायण और संतोष सिंह
सिनेमेटोग्राफर: बिट्टू रावत
संपादक: पूजा पिल्लई, संयुक्ता काज़ा
कलाकार: आयुष रावत, कमला देवी कुंवर, दमयंती देवी, धन सिंह राणा, भगत सिंह बुरफल
2021 | भोटिया | रंगीन | 24 मिनट
सारांश:
तेरह वर्षीय फग्नू अपने दादा के बिना इस संसार की कल्पना नहीं कर सकता। फग्नू अपने दादा के बीमार होने के बाद अपनी दादी की चेतावनियों के बावजूद उस कथित 'पवित्र जल', जिसके बारे में बताया जाता है कि यह मिथक और वास्तविकता के बीच एक हिमालयी भावना द्वारा संरक्षित स्थान पर मिलता है, की कठिन खोज में निकल पड़ता है।
निर्देशक और निर्माता:
मुकुंद नारायण और संतोष सिंह ऐसे कहानीकार हैं, जो सिनेमा को सबसे सुलभ माध्यम मानते हैं। वे ग्रामीण पृष्ठभूमि से आते हैं। उन्होंने फिल्म निर्माण में कोई औपचारिक प्रशिक्षण प्राप्त नहीं किया है। दोनों अपरिचित (जिसके बारे में जानकारी नहीं है) भारत में मिथकों के विभिन्न दृष्टिकोणों का पता लगाने के लिए व्याकुल हैं। पाताल-ती उनकी पहली फिल्म है।
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