हम दूसरों की आर्थिक स्थिति
पर ज्यादा ध्यान देते हैं। अपनी स्थिति से असंतुष्टि ही हमें बेईमानी की
तरफ धकेलती है। गरीब लोग अमीर बनने के चक्कर में और अमीर लोग अधिक अमीर
बनने के चक्कर में छोटा रास्ता पकड़ते हुए धड़ाधड़ सब कुछ पा लेना चाहते हैं।
छोटे रास्ते का अंकुर ही भविष्य में बेईमानी का पौधा बन जाता है। चाहे
गाँवों में जमीन-जायदाद के विवाद हों या फिर शहरों में लोगों का अपने
पड़ोसियों से छोटी-छोटी बातों पर होने वाले झगड़े हों, सभी जगह हम दूसरों का
हक छीनना चाहते हैं। यह कभी-कभी भौतिक लाभ में मदद करता है; यह सजा आदि से
बचने में मदद करता है। वहीं, झूठ बोलना भी परेशानी खड़ी कर सकता है। झूठ
बोलना संज्ञानात्मक रूप से क्षीण हो सकता है, यह इस जोखिम को बढ़ा सकता है
कि लोगों को दंडित किया जाएगा, यह लोगों को खुद को अच्छे लोगों के रूप में
देखने से रोककर उनके आत्म-मूल्य को खतरे में डाल सकता है, और यह आम तौर पर
समाज में विश्वास को नष्ट कर सकता है। जब आप झूठ बोलते हैं, तो आप जो कह
रहे हैं उस पर विश्वास करने के लिए खुद को धोखा देते हैं।
-डॉ सत्यवान सौरभ
हमारे
समाज में अक्सर ईमानदारी और बेईमानी को लेकर चर्चाएं होती रहती हैं।
बेईमान व्यक्ति भी आखिरी दम तक स्वयं को ईमानदार साबित करने की कोशिश करता
है। जब हम दूसरों का हक छीनने की कोशिश करते हैं तो हमारे अंदर बेईमानी के
अंकुर अपने आप पैदा हो जाते हैं। पैसे के पीछे पागल होना ही ऐसी स्थिति के
लिए जिम्मेदार होता है। ईमानदारी केवल सच बोलने के बारे में नहीं है। यह
अपने और दूसरों के साथ वास्तविक होने के बारे में है कि आप कौन हैं, आप
क्या चाहते हैं और आपको अपना सबसे प्रामाणिक जीवन जीने के लिए क्या चाहिए।
ईमानदारी खुलेपन को बढ़ावा देती है, हमें सशक्त बनाती है और हमें तथ्यों को
प्रस्तुत करने के तरीके में निरंतरता विकसित करने में सक्षम बनाती है।
ईमानदारी हमारी धारणा को तेज करती है और हमें अपने आस-पास की हर चीज को
स्पष्टता से देखने की अनुमति देती है।
ईमानदारी आत्मविश्वास,
विश्वास पैदा करती है, हमारी इच्छा शक्ति को सशक्त करती है और दूसरों के
लिए हमारे उदाहरण को देखने और देखने के लिए सबसे अच्छे तरीके से हमारा
प्रतिनिधित्व करती है। ईमानदारी हमारे जीवन शक्ति में सुधार करती है।
ईमानदारी चरित्र के प्रमुख घटकों में से एक है और किसी भी सफल, जिम्मेदार
व्यक्ति के सबसे प्रशंसनीय गुणों में से एक है। ईमानदारी एक मूलभूत कारक
है, यह किसी के चरित्र के निर्माण में मदद करती है। एक ईमानदार व्यक्ति
अपने व्यावहारिक और आध्यात्मिक जीवन में हमेशा सफल होता है। वास्तविकता यह
है कि अभावग्रस्त लोग पैसे के पीछे नहीं भागते। वे अपनी न्यूनतम जरूरतों के
लिए संघर्ष करते हुए सिर्फ इतना कमाना चाहते हैं कि जिससे समय-समय पर उनकी
जिंदगी के सभी कार्य पूर्ण होते रहें। हो सकता है कि उनमें ज्यादा पैसा
कमाने की थोड़ी-बहुत चाह होती हो लेकिन उनकी इस चाहत में एक सकारात्मकता
होती है
यहां तक कि एक छोटा सा झूठ बोलने से भी हमारी प्रतिष्ठा को
नुकसान पहुंचाने का जोखिम होता है, लेकिन दूसरों के हम पर भरोसा करने की
प्रवृत्ति भी कम हो जाती है। इसके अलावा, एक झूठ अक्सर दूसरे, अधिक
महत्वपूर्ण झूठ को बोलने की आवश्यकता की ओर ले जाता है, जो खोजे जाने पर और
भी अधिक नकारात्मक परिणामों का जोखिम उठाता है। अंत में, हम आवश्यक रूप से
एक छोटे से झूठ को भी बोलने के परिणामों की भविष्यवाणी नहीं कर सकते हैं,
और यदि इस तरह के परिणाम हमारे अनुमान से अधिक महत्वपूर्ण रूप से प्रतिकूल
हो जाते हैं, तो हमारी जिम्मेदारी की भावना और इसलिए अपराधबोध हमें कल्पना
से कहीं अधिक परेशान कर सकता है आदि।
सवाल यह है कि हम ईमानदारी से
बेईमानी की तरफ कैसे खिंचे चले आते हैं? समाज बेईमानी को एक बड़ी बुराई के
रूप में देखता है, इसके बावजूद समाज के एक बड़े हिस्से का झुकाव बेईमानी की
तरफ रहता है। बेईमानी का गरीबी और अमीरी से कोई लेना-देना नहीं है। हां, यह
जरूर है कि हम गरीबों में बेईमानी ढूंढने लगते हैं लेकिन अमीरों की
बेईमानी हमें दिखाई नहीं देती है। दरअसल हम अपनी आर्थिक स्थिति से कभी
संतुष्ट नहीं होते हैं। यह लोगों को अपने बारे में बेहतर महसूस करने,
दूसरों की नज़रों में खुद को बेहतर दिखाने और अच्छे रिश्ते बनाए रखने की
अनुमति देता है। बेईमानी किसी ऐसे व्यक्ति के लिए एक अच्छी रणनीति है जो
अल्पकालिक लाभ को अधिकतम करने की कोशिश कर रहा है।
हम दूसरों की
आर्थिक स्थिति पर ज्यादा ध्यान देते हैं। अपनी स्थिति से असंतुष्टि ही हमें
बेईमानी की तरफ धकेलती है। गरीब लोग अमीर बनने के चक्कर में और अमीर लोग
अधिक अमीर बनने के चक्कर में छोटा रास्ता पकड़ते हुए धड़ाधड़ सब कुछ पा लेना
चाहते हैं। छोटे रास्ते का अंकुर ही भविष्य में बेईमानी का पौधा बन जाता
है। चाहे गाँवों में जमीन-जायदाद के विवाद हों या फिर शहरों में लोगों का
अपने पड़ोसियों से छोटी-छोटी बातों पर होने वाले झगड़े हों, सभी जगह हम
दूसरों का हक छीनना चाहते हैं। यह कभी-कभी भौतिक लाभ में मदद करता है; यह
सजा आदि से बचने में मदद करता है। वहीं, झूठ बोलना भी परेशानी खड़ी कर सकता
है। झूठ बोलना संज्ञानात्मक रूप से क्षीण हो सकता है, यह इस जोखिम को बढ़ा
सकता है कि लोगों को दंडित किया जाएगा, यह लोगों को खुद को अच्छे लोगों के
रूप में देखने से रोककर उनके आत्म-मूल्य को खतरे में डाल सकता है, और यह
आम तौर पर समाज में विश्वास को नष्ट कर सकता है। जब आप झूठ बोलते हैं, तो
आप जो कह रहे हैं उस पर विश्वास करने के लिए खुद को धोखा देते हैं।
इस
सारे माहौल में अच्छी बात यह है कि समाज की मूल भावना ईमानदारी के साथ है।
आज स्वयं गलत काम करने वाला कोई पिता अपने बच्चों को बेईमानी की शिक्षा
नहीं देता है। इस सच्चाई के बावजूद हमारे मन में बेईमानी और ईमानदारी को
लेकर अंतर्द्वंद्व चलता रहता है। हमें यह मानना होगा कि ईमानदारी की वजह से
ही देश और दुनिया में बहुत कुछ अच्छा भी हो रहा है। ईमानदारी की वजह से ही
यह दुनिया चल रही है। भविष्य में हम कैसी दुनिया चाहेंगे, यह हमें ही तय
करना है। ईमानदारी का अर्थ है सच्चा और खुला होना। यह नैतिक चरित्र का एक
पहलू है जो सत्यनिष्ठा, सत्यवादिता, आचरण में सरलता सहित, झूठ, धोखाधड़ी,
चोरी आदि के अभाव के साथ-साथ सकारात्मक और गुणी गुणों को दर्शाता है। यह
कहा जाता है कि एक नीति के रूप में ईमानदारी हमेशा एक मूल्य के साथ आती है।
.यह सत्य है। ईमानदारी के रास्ते में समाज और व्यवस्था द्वारा बनाई गई
बाधाओं का सामना करने के लिए ईमानदारी बलिदान और साहस की मांग करती है।
लेकिन यह भी सच है कि सच्चा ईमानदार व्यक्ति तमाम बाधाओं के बावजूद आगे
बढ़ता रहता है।
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