पैरिस पैरालिंपिक्स 2024 में योगेश कथुनिया ने रजत पदक जीता

परिचय

पैरिस 2024 पैरालिंपिक्स में पुरुष पैरा डिस्कस थ्रो एफ56 श्रेणी में योगेश कथुनिया ने शानदार प्रदर्शन कर रजत पदक जीता। एफ56 उन खेल वर्गों का हिस्सा है, जहां एथलीट मांसपेशियों की शक्ति में कमी, सीमित गतिशीलता, अंगों की कमी या पैर की लंबाई में अंतर के कारण व्हीलचेयर या थ्रोइंग चेयर पर प्रतिस्पर्धा करते हैं। 27 साल के योगेश ने अपने पहले प्रयास में असाधारण कौशल और फॉर्म का प्रदर्शन करते हुए 42.22 मीटर का थ्रो किया, जो उनका सर्वश्रेष्ठ प्रयास रहा। इससे पहले टोक्यो पैरालंपिक्स 2020 में सिल्वर मेडल अपने नाम किया था। इस तरह उन्होंने लगातार दूसरे पैरालंपिक गेम्स में सिल्वर मेडल जीतकर बड़ा मुकाम हासिल किया है। वैश्विक मंच पर अपनी निरंतर उत्कृष्टता का प्रदर्शन करते हुए योगेश ने पैरिस में पैरा-डिस्कस थ्रो में शानदार प्रदर्शन कर एक प्रमुख दावेदार के रूप में खुद को साबित किया है।

 

चुनौतियों से विजय तक की यात्रा

हरियाणा के बहादुरगढ़ के रहने वाले योगेश कथुनिया का जन्म 3 मार्च 1997 को हुआ। उनकी मां मीना देवी गृहिणी हैं और पिता ज्ञानचंद कथुनिया भारतीय सेना में कार्यरत हैं। 9 साल की उम्र में योगेश को गिलियन-बैरे सिंड्रोम नामक बीमारी होने का पता चला। वह एक ऐसी स्थिति थी जिसने उनकी स्वतंत्र रूप से घूमने-फिरने की क्षमता को काफी प्रभावित किया। इस चुनौतीपूर्ण समय के दौरान उन्हें अपनी मां से महत्वपूर्ण सहयोग मिला। उनकी मां ने फिजियोथेरेपी तकनीक सीखी। 12 साल की उम्र तक योगेश की मांसपेशियों ने फिर से चलने-फिरने की पर्याप्त ताकत हासिल कर ली।

उन्होंने चंडीगढ़ के इंडियन आर्मी पब्लिक स्कूल से अपनी शिक्षा हासिल की, जहां उनके पिता चंडीमंदिर छावनी में सेवारत थे। इसके बाद योगेश ने दिल्ली के किरोड़ीमल कॉलेज में दाखिला लिया और वाणिज्य में स्नातक की डिग्री प्राप्त की। कॉलेज में पढ़ाई के दौरान छात्र संघ के महासचिव सचिन यादव से उनका संपर्क हुआ। सचिन ने उन्हें पैरा खेलों से परिचित कराया और पैरा-एथलीटों के विडियो दिखाकर उनको प्रेरित किया।

2016 में योगेश ने पैरा स्पोर्ट्स में अपना सफर शुरू किया। उनकी मेहनत रंग लाई और उन्होंने इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण छाप छोड़ी। बर्लिन में आयोजित 2018 विश्व पैरा एथलेटिक्स यूरोपीय चैंपियनशिप में उन्होंने 45.18 मीटर के डिस्कस थ्रो के साथ विश्व रिकॉर्ड बनाया। टोक्यो 2020 पैरालिंपिक्स में पुरुषों की डिस्कस थ्रो एफ56 स्पर्धा में रजत पदक के साथ उनका शानदार प्रदर्शन जारी रहा, वहां उन्होंने 44.38 मीटर की दूरी तक चक्का फेंका था।

लगातार उपलब्धियों के बाद योगेश को व्यापक रूप से मान्यता मिलने लगी। नवंबर 2021 में उन्हें राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से प्रतिष्ठित अर्जुन पुरस्कार भी मिला। पैरिस पैरालिंपिक्स 2024, विश्व चैंपियनशिप 2023 और एशियाई पैरा गेम्स 2022 सहित प्रमुख टूर्नामेंटों में उनकी लगातार सफलता ने पैरा-एथलेटिक्स में उनकी विरासत को मजबूत किया।

 

कैरियर की मुख्य बातें और उपलब्धियां

पैरा-एथलेटिक्स में योगेश कथुनिया का करियर उल्लेखनीय उपलब्धियों की एक शृंखला से सुसज्जित है, जो चक्का फेंक श्रेणी में उनके कौशल और समर्पण को दर्शाता है। 2019 में हैंडिस्पोर्ट ओपन में स्वर्ण पदक के साथ उन्होंने अपनी यात्रा शुरू की। इसके बाद 2019 में ही विश्व पैरा एथलेटिक्स चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीता। 2019 में इंडियन ओपन में स्वर्ण पदक के साथ उन्होंने अपना उत्कृष्ट प्रदर्शन जारी रखा। वैश्विक मंच पर उनकी सफलता 2020 में टोक्यो पैरालिंपिक्स में रंग लाई, जहां उन्होंने रजत पदक अपने नाम किया। उन्होंने 2022 में एशियाई पैरा खेलों में रजत पदक और उसी वर्ष इंडियन ओपन में एक और स्वर्ण पदक अपने नाम किया। 2023 में विश्व पैरा एथलेटिक्स चैंपियनशिप में उन्होंने रजत पदक हासिल किया और इंडियन ओपन में एक और स्वर्ण पदक प्राप्त किया। अब 2024 में उन्होंने पैरिस पैरालिंपिक्स में रजत पदक जीता, जो वर्षों से उनकी लगातार उत्कृष्टता का प्रदर्शन है।

 

प्रमुख सरकारी सहायता पहल

योगेश कथुनिया को सरकार की ओर से महत्वपूर्ण सहयोग मिला है, जो पैरा-एथलेटिक्स में उनकी उपलब्धियों के लिए काफी मायने रखती है। इस सहायता में विशेष खेल उपकरण और प्रशिक्षण के लिए वित्तीय सहायता शामिल है। इससे प्रतियोगी और प्रशिक्षण आवश्यकताओं से संबंधित खर्चों को पूरा करने में उनको मदद मिलती है। अपने प्रदर्शन को बेहतर बनाने के लिए उन्हें कोचिंग और खेल विज्ञान सहायता समेत विशेषज्ञ सेवाओं से भी काफी लाभ हुआ है। इसके अलावा योगेश को दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम में भोजन और आवास सहित व्यापक प्रशिक्षण सुविधाओं की सुविधा भी प्राप्त है। टारगेट ओलंपिक पोडियम स्कीम (टीओपीएस) के माध्यम से सरकार की सहायता दी जाती है। इसके तहत उन्हें आकस्मिक खर्चों को पूरा करने के लिए उनके द्वारा खर्च किए गए धन का पुनर्भुगतान हो जाता है, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि वह अपने खेल पर पूरा ध्यान केंद्रित कर सकें।

 

निष्कर्ष

व्यक्तिगत चुनौतियों पर काबू पाने से लेकर वैश्विक मंच पर उत्कृष्टता हासिल करने तक योगेश कथुनिया की उल्लेखनीय यात्रा उनके दृढ़ संकल्प और समर्पण का प्रमाण है। पैरिस पैरालंपिक्स 2024 में उनका हालिया रजत पदक उल्लेखनीय उपलब्धियों की एक श्रृंखला के साथ उनकी असाधारण प्रतिभा और पैरा-डिस्कस थ्रो में लगातार प्रदर्शन को रेखांकित करता है। सरकार की मान्यता और प्रोत्साहन ने उनकी सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जिससे उन्हें उत्कृष्टता हासिल करने के लिए आवश्यक संसाधन और प्रोत्साहन मिला है। योगेश की कहानी केवल उनकी व्यक्तिगत उपलब्धियों पर प्रकाश डालती है बल्कि एक प्रेरक उदाहरण के रूप में भी काम करती है कि कैसे दृढ़ संकल्प और प्रोत्साहन से पैरा-एथलेटिक्स की दुनिया में मुकाम हासिल किया जा सकता है। उनकी निरंतर सफलता खेल में अग्रणी शख्सियतों में से एक के रूप में उनकी विरासत को मजबूत करती है, जो पैरा-खिलाड़ियों की भावी पीढ़ियों को प्रेरित करती है।

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