यूएनएफसीसीसी-कॉप29 के समापन सत्र में भारत का हस्तक्षेप

भारत ने बाकू, अज़रबैजान में संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन शिखर सम्मेलन के कॉप29 के समापन सत्र में जलवायु परिवर्तन के लिए वित्त की पर्याप्त उपलब्धता से ध्यान हटाकर केवल शमन पर ध्यान केंद्रित करने पर निराशा व्यक्त की। भारत ने समान विचारधारा वाले विकासशील देशों (एलएमडीसी) की ओर से बोलीविया द्वारा दिए गए बयान के अनुरूप अपना रुख स्‍पष्‍ट किया और दोहराया कि जलवायु परिवर्तन के विरुद्ध उपाय यूएनएफसीसीसी और उसके पेरिस समझौते के अनुसार होने चाहिए क्योंकि वैश्विक दक्षिण पर जलवायु परिवर्तन का अत्‍यधिक प्रभाव पड़ रहा है।

भारत की ओर से वक्तव्य देते हुए, सचिव (पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय) और प्रतिनिधिमंडल की उप नेता सुश्री लीना नंदन ने कहा, "हम इससे निराश हैं कि हम तब भी ध्यान बदलना जारी रखते हैं जबकि यह सुनिश्चित करने का समय आ गया है कि सीबीडीआर-आरसी और हिस्‍सेदारी के अनुसार पर्याप्त वित्त के प्रावधानों के माध्यम से शमन उपायों का पूरी तरह से समर्थन किया जाए। कॉप के बाद कॉप, हम शमन उपायों के बारे में बात करते रहते हैं - क्या किया जाना है इस बारे में बात किए बिना कि यह कैसे किया जाना है - दूसरे शब्दों में, शमन उपायों को सक्षम बनाना। इस कॉप की शुरुआत नए सामूहिक मात्रात्मक लक्ष्यों (एनसीक्यूजी) के माध्यम से सक्षमता पर ध्यान केंद्रित करने के साथ हुई लेकिन जैसे-जैसे हम समापन की ओर बढ़ रहे हैं, हम देख रहे हैं कि ध्यान शमन उपायों पर हो रहा है।"

भारत ने दृढ़ता से कहा कि वित्त से पुन: ध्यान हटाकर शमन उपायों पर बार-बार जोर देने का कोई भी प्रयास स्वीकार नहीं किया जा सकता है। वक्‍तव्‍य में कहा गया है, "सभी देशों ने अपने एनडीसी प्रस्तुत कर दिए हैं और हम अतीत में साथ मिलकर लिए गए विभिन्न निर्णयों के साथ-साथ अपनी राष्ट्रीय परिस्थितियों और सतत विकास लक्ष्यों तथा गरीबी उन्मूलन के संदर्भ में राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी) के अगले दौर के बारे में चर्चा करेंगे। जलवायु परिवर्तन के उपायों हेतु वित्त पर हम जो निर्णय लेंगे, उसका निश्चित रूप से अगले वर्ष हम जो चर्चा करेंगे, उस पर प्रभाव पड़ेगा। कुछ पक्षों द्वारा शमन उपायों के बारे में आगे बात करने का प्रयास मुख्य रूप से वित्त प्रदान करने की अपनी जिम्मेदारियों से ध्यान हटाने का एक तरीका है।" वक्‍तव्‍य में 'जलवायु परिवर्तन पर बातचीत में संतुलन' का आह्वान किया गया और कहा गया, "यदि ऐसा सुनिश्चित नहीं किया जाता है तो हम शमन उपायों के बारे में निरंतर बात ही करते रहेंगे जिसका कोई मतलब नहीं है जब तक कि जलवायु परिवर्तन के उपायों को वास्‍तविक स्तर पर करने के लिए आवश्यक इन उपायों का वित्त उपलब्‍ध नहीं कराएंगे।"

भारत ने जलवायु परिवर्तन के विरुद्ध महत्वपूर्ण उपायों पर निम्नलिखित मुद्दों पर अपना रुख सामने रखा। वे हैं:

एनसीक्यूजी

भारत ने बताया कि चूंकि अनुदान आधारित रियायती जलवायु परिवर्तन के उपायों हेतु वित्त नए एनडीसी को तैयार करने और लागू करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण है इसलिए लागू करने के पर्याप्त साधनों के अभाव में ये उपाय अत्‍यधिक प्रभावित होंगे। वक्‍तव्‍य में कहा गया है, “दस्तावेज में व्‍यवस्‍था, मात्रा, गुणवत्ता, समय सीमा, पहुंच, पारदर्शिता और समीक्षा का स्‍पष्‍ट उल्‍लेख होना चाहिए। इसके लिए वित्त व्‍यवस्‍था का लक्ष्य 1.3 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर होना चाहिए जिसमें से 600 बिलियन अमेरिकी डॉलर अनुदान और अनुदान समकक्ष संसाधनों के माध्यम से आएंगे। योगदानकर्ता का आधार बढ़ाना, व्यापक आर्थिक और राजकोषीय उपायों जैसी शर्तों को दर्शाना, कार्बन मूल्य निर्धारण के लिए सुझाव, निवेश के रूप में संसाधन प्रवाह को बढ़ाने के लिए निजी क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित करना - लक्ष्य के उद्देश्‍य के विपरीत है। एनसीक्यूजी एक निवेश का लक्ष्य नहीं है। हमें यह स्वीकार करना चाहिए कि विकासशील देशों द्वारा जलवायु परिवर्तन के उपाय देश द्वारा उनकी परिस्थितियों के अनुरूप और देश की प्राथमिकताओं के लिए सबसे उपयुक्त तरीके के अनुसार होने चाहिए।

शमन उपाय

भारत ने मसौदा पाठ में शमन कार्य कार्यक्रम (एमडब्‍ल्‍युपी) के दायरे को बदलने का कड़ा विरोध किया। भारत ने तापमान लक्ष्यों को बदलने के विरुद्ध भी चेतावनी दी। यह लक्ष्‍य पेरिस समझौते के अनुसार होना चाहिए। भारत ने प्रस्तावना में 2030, 2035 और 2050 के लक्ष्यों को शामिल करने को पूरी तरह से निर्देशात्मक बताया।

भारत ने पाठ में कुछ तथ्‍यों को जोड़ने का आग्रह किया जैसे कि अनुलग्नक-I पक्षों द्वारा 2020 से पहले शमन उपायों हेतु वित्त की कमी को नोट करना; इस बात पर गहरी चिंता व्यक्त करना कि अनुलग्नक-I पक्षों का उत्सर्जन कम करने की अवधि 2020 से 2030 तक बढ़ रही है आदि। भारत ने जलवायु परिवर्तन उपायों पर विशेष रूप से शमन उपायों और उनको लागू करने के लिए बलपूर्वक एकतरफा उपायों के नकारात्मक प्रभावों को याद करने का आग्रह किया।

न्यायसंगत परिवर्तन

भारत ने दुबई के निर्णय में ‘न्यायसंगत परिवर्तन’ पर प्रचलित साझा समझ पर किसी भी तरह की पुनर्बातचीत को स्वीकार करने से दृढ़तापूर्वक इनकार कर दिया। वक्‍तव्‍य में कहा गया हैन्यायसंगत परिवर्तन की व्याख्या संकीर्ण घरेलू शब्दों में की जाती है जिसका अर्थ है कि राष्ट्रीय सरकारों को घरेलू न्यायसंगत परिवर्तन सुनिश्चित करने के लिए उपाय करने होते है। हालांकि, हमने बार-बार यह मुद्दा उठाया है कि न्यायसंगत परिवर्तन वैश्विक स्तर पर विकसित देशों द्वारा शमन उपायों में अग्रणी भूमिका निभाने और यह सुनिश्चित करने के साथ शुरू होते हैं कि वे सभी विकासशील देशों को इन उपायों को लागू करने के साधन प्रदान करें।

भारत ने वक्‍तव्‍य में आगे कहा, “हमने बार-बार यह मुद्दा भी उठाया है कि हमारे घरेलू परिवर्तन, विकास के हमारे अधिकार और सतत विकास को आगे बढ़ाने की हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता की संभावना विकसित देशों की बार-बार और निरंतर निष्क्रियता से बाधित हो रही है। वर्तमान पाठ इस बिंदु की पूरी तरह से अवहेलना करता है जिसका उल्‍लेख हम न्यायसंगत परिवर्तनों की अपनी समझ के बारे में करते रहे हैं। यह दुबई के निर्णय में भी परिलक्षित होता है। हम इन अनुच्छेदों को बिल्कुल स्वीकार नहीं कर सकते है। वे निर्देशात्मक हैं और न्यायसंगत परिवर्तनों की पूरी तरह से पुनर्व्याख्या करते हैं।

जीएसटी

जीएसटी पर भारत ने निम्नलिखित कहा:

  1. भारत जीएसटी परिणामों के आगे की कार्रवाई के लिए सहमत नहीं है। पेरिस समझौते के अनुसार जीएसटी को केवल जलवायु परिवर्तन के उपाय करने के लिए पक्षों को सूचित करना है।
  2. उपाय करने, समर्थन और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग बढ़ाने पर नया अध्याय बिना किसी पर्याप्त संबंध या पाठ को मिलाकर तैयार किया गया है। इसके कुछ हिस्सों पर यूएई वार्ता में बातचीत चल रही है।
  3. पक्षों द्वारा की गई वार्ता का अंतिम पाठ ऐसा था जिसमें सभी पक्षों के विचार शामिल थे और यह आगे की बातचीत के लिए एक व्यावहारिक आधार था। यूएई वार्ता के तौर-तरीकों नामक भाग के तहत नए विकल्प में इसे बिल्कुल भी शामिल नहीं किया गया है।
  4. नए अध्याय में वित्त व्‍यवस्‍था के बारे में कोई उल्‍लेख नहीं है जो यूएई वार्ता का मुख्य उद्देश्य है।
  • इसके अलावा, "विकसित देशों के साथ (द्विवार्षिक रिपोर्ट की संकलन रिपोर्ट के अनुसार) 2020 से 2030 तक अपने उत्सर्जन में 0.5 प्रतिशत की वृद्धि करने के" वाक्यांश को "2019 के स्तर की तुलना में 2030 तक 2.6 प्रतिशत करने" वाक्यांश के बाद जोड़ा जा सकता है।
  • हालाँकि नए अध्‍याय का शीर्षक सामान्य है लेकिन जो पाठ जोड़ा गया है वह पूरी तरह से शमन उपायों पर केंद्रित और पूरी तरह से असंतुलित है। भारत इस पाठ को स्वीकार नहीं करता है।
  • भारत यूएई वार्ता के समय और प्रारूप भागों में विकल्पों को जिस तरह से तैयार किया गया है उसे स्वीकार नहीं करता है।

अनुकूलन

भारत ने निम्नलिखित पाँच बिंदु साझा किए जो मसौदा निर्णय पर विचार करने के लिए आवश्यक हैं:

  • अंतिम परिणाम में लागू करने के साधनों को शामिल करना चाहिए ताकि अनुकूलन पर वैश्विक लक्ष्य पर यह कार्य सार्थक हो सके।
  • परिवर्तनकारी अनुकूलन पर आगे ध्यान केंद्रित करने की कोई आवश्यकता नहीं है। इसके बजाय, राष्ट्रीय परिस्थितियों के संदर्भ में वृद्धिशील अनुकूलन, दीर्घकालिक अनुकूलन जैसे अन्य दृष्टिकोणों पर ध्यान केंद्रित करना महत्वपूर्ण है।
  • संकेतकों पर रिपोर्टिंग के लिए उपयोग किए जाने वाले डेटा को पक्ष द्वारा प्रस्तुत रिपोर्टों से लिया जाना चाहिए न कि किसी तीसरे पक्ष के डेटाबेस से। इसलिए, इस पाठ को हटाया जाए।
  • अनुकूलन पर वैश्विक लक्ष्य से संबंधित कार्य जारी रखने के साधन के रूप में बाकू योजना बनाने का उल्‍लेख करना आवश्यक है।
  • संकेतक जीजीए लक्ष्यों में प्रगति को दर्शाए। इनको आगे अलग-अलग करने की आवश्यकता नहीं है।

निष्कर्ष में, दोहराया गया कि यह कॉप वित्त व्‍यवस्‍था से संबंधित कॉप है - संतुलन कॉप, सक्षम कॉप। वक्‍तव्‍य में कहा गया, "अगर हम यहां विफल होते हैं तो हम जलवायु परिवर्तन के उपायों में विफल होंगे इसकी जिम्मेदारी उन पर होनी चाहिए जो जलवायु परिवर्तन के उपायों को लागू करने के लिए वित्त प्रदान करने के लिए बाध्य हैं।"

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