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बस यूं ही बदनाम है, सड़क-गली-बाजार।
लूट रहे हैं द्रौपदी, घर-आँगन-दरबार॥
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कोई यहाँ कबीर है, लगता कोई मीर।
भीतर-भीतर है छुपी, सबके कोई पीर॥
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लाख चला ले आदमी, यहाँ ध्वंस के बाण॥
सर्जन की चिड़ियाँ करें, तोपों पर निर्माण॥
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अगर विभीषण हो नहीं, कर पाते क्या नाथ।
सोने की लंका जली, अपनों के ही हाथ॥
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एकलव्य जब तक करे, स्वयं अंगूठा दान।
तब तक अर्जुन ही रहे, योद्धा एक महान॥
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देख सीकरी आगरा, 'सौरभ' है हैरान।
खाली है दरबार सब, महल पड़े वीरान॥
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बन जाते हैं शाह वो, जिनको चाहे राम।
बैठ तमाशा देखते, बड़े-बड़े जो नाम॥
-डॉ. सत्यवान सौरभ
डॉo सत्यवान सौरभ,
कवि,स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार, आकाशवाणी एवं टीवी पेनालिस्ट,
333, परी वाटिका, कौशल्या भवन, बड़वा (सिवानी) भिवानी,
हरियाणा – 127045, मोबाइल :9466526148,01255281381
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